बीगोद@ स्मार्ट हलचल/पुरानी संस्कृति के अनुसार भाई अपनी बहन के ससुराल गांव में भात यानी मायरा भरने बैलगाड़ी से पहुंचे। होड़ा गांव से एक दर्जन से ज्यादा बैलगाड़ियों में मायरा लेकर भाई शुक्रवार को बहन के ससुराल श्रीपुरा गांव पहुंचे। बैलगाड़ियों को खींचने वाले बैलों का विशेष श्रृंगार किया गया। बैलों के गले में घुघरू बांधे गए। परिजन ओर रिश्तेदार गाजे बाजे के साथ नाचते गाते चल रहे थे। अपनी संस्कृति से जुड़े रहने के लिए परम्परागत बैलगाड़ियों में मायरा लेकर गए। होड़ा से भाई नारायण गुर्जर, सत्यनारायण गुर्जर (अध्यक्ष देवनारायण शिक्षा समिति मांडलगढ़) एवं कैलाश गुर्जर परिजन एवं रिश्तेदारों के साथ एक दर्जन से ज्यादा बैलगाड़ियों पर सवार होकर बहन के घर श्रीपुरा मायरा भरने पहुंचे। लग्जरी गाड़ियों की जगह सजी धजी बैलगाड़ियों में मायरा भरने जा रहे भाइयों की तस्वीर राहगीरों ने मोबाइल कैमरे में कैद की। लोगों ने बैलगाड़ियों के साथ सेल्फी भी ली। बैलों के गले मे बंधे घुंघरू, गाजे बाजे और बैलगाड़ियों के पहियों की आवाज सुनकर लोगों ने कहा कि समाज में अपनी पुरानी संस्कृति से ही सामाजिक संस्कृति जीवित है। सभी को अपनी संस्कृति से जुड़े हुए रहना चाहिए। नारायण गुर्जर, सत्यनारायण गुर्जर, कैलाश गुर्जर ने इस वर्तमान दौर में भी पुरानी परंपरा को निभाया। जहां ये भाई अपनी बहन के ससुराल के सामाजिक समारोह में बैलगाड़ियों में सवार होकर मायरा भरने पहुंचे। करीब एक दर्जन से ज्यादा बैलगाड़ियों में सवार होकर आए सभी लोगों ने राजस्थानी साफा बांधा हुआ था। गांव की गलियों से गुजर रहे बैलगाड़ी को देख कर लोगों की पुरानी यादें ताजा हो गई। होड़ा गांव से मायरा लेकर बहन के ससुराल श्रीपुरा गांव में पहुंचने पर बहन के ससुराल वालों ने कुमकुम का टीका लगाकर स्वागत किया। भाइयों एवं परिवार जनों ने राजस्थानी परिधान पहन रखे थे।