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दिल्ली जा रही स्लीपर बस में लगी आग, 5 यात्रियों की तड़प-तड़प कर मौत!

दो मासूम जिंदा जले, गर्भवती मां बेहोश, चीखती रही भीड़, जलते रहे सपने!

 शीतल निर्भीक
लखनऊ।स्मार्ट हलचल|उत्तर प्रदेश की राजधानी के मोहनलाल गंज में किसान पथ पर आज सुबह का मंजर ऐसा था, जिसे देखकर रूह कांप उठे। बेगूसराय से दिल्ली जा रही एक स्लीपर बस (यूपी 17 एटी 6372) अचानक आग का गोला बन गई और देखते ही देखते बस में सवार यात्रियों की चीख-पुकार से किसान पथ गूंज उठा। इस भीषण हादसे में दो मासूम बच्चों समेत पांच लोगों की दर्दनाक मौत हो गई।

हादसा सुबह करीब पांच बजे हुआ जब बस हरिकंशगढ़ी के पास पहुंची। तभी बस के एसी कंप्रेसर और डीजल टैंक में धमाका हुआ और आग की लपटें चारों तरफ फैल गईं। जब तक लोग कुछ समझ पाते, पूरा बस जलकर राख हो चुकी थी।

बिहार के रामबालक अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ मजदूरी के लिए दिल्ली जा रहे थे। लेकिन यह सफर उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा गम बन गया। हादसे में उनके दो बच्चे—देवराज (4) और साक्षी (2)—जिंदा जल गए। उनकी पत्नी गुड्डी देवी, जो सात महीने की गर्भवती हैं, सदमे में बेहोश हो गईं।

बस में सवार लख्खी देवी (60) और उनकी बेटी सोनी (26) की भी मौत हो गई। सोनी विधवा थीं और उनका ढाई साल का बेटा अब अनाथ हो गया।

एक और युवक, मधुसूदन (26), अपने दोस्तों के साथ दिल्ली नौकरी की तलाश में जा रहा था, लेकिन वह भी इस हादसे में आग की लपटों का शिकार हो गया। उसके साथी रविकिशन के मुताबिक, वे कुछ नहीं कर सके, बस सब कुछ अपनी आंखों के सामने जलता देखते रहे।

बस में सवार कई यात्रियों के कपड़े, दस्तावेज, राशन और जेवर भी जलकर राख हो गए। चांदनी और उनकी मां मधु दिल्ली में नौकरी के लिए जा रही थीं, लेकिन उनके सपने और जरूरी कागजात भी इस आग में भस्म हो गए।

घटना की सूचना मिलते ही आरटीओ प्रवर्तन अधिकारी संदीप कुमार पंकज मौके पर पहुंचे और जांच शुरू की। परिवहन आयुक्त बीएन सिंह के निर्देश पर एमवीआई विष्णु कुमार ने तकनीकी जांच की। बस के कागजात तो ठीक पाए गए, लेकिन तकनीकी स्तर पर गंभीर खामियां उजागर हुई हैं।

दमकल अधिकारियों ने बताया कि डीजल टैंक फटने से आग तेजी से फैली, जिससे पूरा बस जल उठा। एफएसओ माम चंद बडगूजर के अनुसार जब जली हुई बस को खींचा जा रहा था, तब रगड़ से दोबारा आग भड़क गई।

ये हादसा सिर्फ पांच मौतों की कहानी नहीं है, ये उन सपनों की राख है जो एक बेहतर जिंदगी की तलाश में निकले थे। किसान पथ पर उस सुबह मौत नहीं, एक-एक उम्मीदें जली थीं।

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