उत्तरप्रदेश चुनाव में छोटे दल दिखा सकते है बड़ा कमाल !
>अशोक भाटिया
स्मार्ट हलचल/उत्तरप्रदेश के आगामी लोकसभा चुनाव में जब भी पार्टियों के बारे में समाचार लिखे जाते है तब समाचारों की धुरी बड़े दलों के आस-पास ही घूमती नजर आती है जिनका प्रतिनिधत्व अभी लोक सभा में है पर हम छोटे व स्थानीय दलों को भूल जाते है जिनका थोडा बहुत भी प्रभाव कुछ मतदाताओं पर है और जो किसी भी बड़ी पार्टी का खेल बना सकते है और बिगाड़ भी सकते है । समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने पिछले दिनों जब यह ऐलान किया कि अपना दल (कमेरावादी) के साथ समाजवादी पार्टी का अब कोई गठबंधन नहीं है। इसके कुछ ही दिन हुए हैं और अब पल्लवी पटेल की पार्टी ने नए मोर्चे का ऐलान कर दिया । पल्लवी पटेल की पार्टी ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) से हाथ मिला लिया है।
इस नए मोर्चे में बाबूराम पाल की राष्ट्रीय उदय पार्टी, प्रेमचंद बिंद की प्रगतिशील मानव समाज पार्टी भी शामिल है। इसे नाम दिया गया है पीडीएम न्याय मोर्चा यानि पिछड़ा दलित मुस्लिम न्याय मोर्चा। सवाल उठ रहे हैं कि यह नया मोर्चा लोकसभा चुनाव में किसका खेल बनाएगा या बिगाड़ेगा?
नए मोर्चे का नाम और ऐलान के मौके पर कही गई बात, दोनों पर गौर करें तो निशाने पर भारतीय जनता पार्टी से ज्यादा अखिलेश की समाजवादी पार्टी लग रही है। अखिलेश पिछले कुछ समय से पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) की बात करते आए हैं। पीडीए को ही आधार बनाकर राज्यसभा चुनाव के समय तेवर दिखाते हुए पल्लवी ने दो टूक कह दिया था कि किसी बच्चन-रंजन को वोट नहीं दूंगी। अब पल्लवी के नेतृत्व में बने इस मोर्चे का नाम ही पीडीएम रख दिया गया है जो यह बताने के लिए पर्याप्त है कि फोकस किस मतदाता वर्ग पर रहने वाला है।
पल्लवी ने कहा भी कि पीडीए के ए में बड़ी कन्फ्यूजन है। कहीं ये अल्पसंख्यक रहता है तो कहीं अगड़ा, कहीं आदिवासी बन जाता है। पल्लवी और ओवैसी की रणनीति पिछड़ा और मुस्लिम वोटों का नया समीकरण गढ़ने की है। अगर यह रणनीति तनिक भी सफल होती है तो रामपुर, मुरादाबाद, आजमगढ़ जैसी कई ऐसी सीटों पर सपा का खेल बिगाड़ सकती है जहां ओबीसी और मुस्लिम मतदाता ही जीत-हार का निर्धारण करते हैं।
ओवैसी की पार्टी मुस्लिम पॉलिटिक्स की पिच पर महाराष्ट्र से बिहार तक दम दिखा चुकी है लेकिन उत्तरप्रदेश यह वोटर अधिकतर सपा के साथ ही रहा है। ओवैसी ने खुद कहा भी कि 2022 के उत्तरप्रदेश चुनाव में 90 फीसदी मुस्लिम वोटर्स ने सपा को वोट किया था। सपा मुस्लिमों के साथ क्या कर रही है, यह सबने देखा है। मुरादाबाद में एसटी हसन के साथ क्या हुआ, किसी से छिपा नहीं है।
अब असदुद्दीन ओवैसी अगर मुस्लिमों के साथ सपा के व्यवहार का जिक्र कर रहे हैं, एसटी हसन की बात कर रहे हैं तो इसके पीछे भी सियासी रणनीति है। आजम खान, इरफान सोलंकी के खिलाफ कानूनी कार्रवाइयों को लेकर मुस्लिम वर्ग में सपा से नाराजगी की बातें होती रही हैं। कहा जाता है कि मुस्लिमों को सपा से नाराजगी की वजह यह है कि इन कार्रवाइयों का सपा जिस तरह का विरोध कर सकती थी, वैसा नहीं किया। अब ओवैसी और पल्लवी की कोशिश मुस्लिमों की नाराजगी को हवा देकर उसे वोट में कैश कराने की है।
राजनीतिक विश्लेषक बताते है कि उत्तरप्रदेश मेंभाजपा का वोट इंटैक्ट है। इस मोर्चे के आने से एंटी इनकम्बेंसी के वोट बंटेंगे और जिसका नुकसान विपक्ष को होगा। नीतीश कुमार एक सीट पर एक उम्मीदवार के जिस फॉर्मूले की बात कर रहे थे, उसका आधार यही था कि सत्ता विरोधी वोट एकमुश्त पड़ें। इनमें बंटवारा न हो। उत्तरप्रदेश में पहले ही बसपा अलग चुनाव लड़ रही है, अब नए मोर्चे के आने से भी विपक्ष का गणित ही गड़बड़ होगा। इस मोर्चे के उम्मीदवार चुनाव जीतें या नहीं लेकिन सपा-कांग्रेस गठबंधन के उम्मीदवारों की संभावनाओं को नुकसान जरूर पहुंचा सकते हैं।
पल्लवी की पार्टी का बेस वोटर कुर्मी हैं लेकिन 2014 और इसके बाद हुए चुनावों के नतीजे देखें तो इस समाज पर अपना दल (कमेरावादी) या कृष्णा पटेल के मुकाबले अपना दल (सोनेलाल) और अनुप्रिया पटेल की पकड़ अधिक मजबूत नजर आती है। अनुप्रिया केंद्र सरकार में मंत्री हैं, अपनी पार्टी से दो बार की सांसद हैं।भाजपा में भी स्वतंत्र देव सिंह जैसे मजबूत नेता हैं जिनकी अपने समाज में मजबूत पैठ रखते हैं। सर्वे रिपोर्ट्स के मुताबिकभाजपा और अपना दल (सोनेलाल) के गठबंधन को 2022 के उत्तरप्रदेश चुनाव में कुर्मी बिरादरी के करीब 90 फीसदी वोट मिले थे। ऐसे में अगर पल्लवी अपने समाज के एक छोटे वोटर वर्ग को भी तोड़ पाती हैं तो येभाजपा के लिए झटका होगा।
अनुमानों के मुताबिक उत्तरप्रदेश की कुल आबादी में कुर्मी समाज की भागीदारी 6 फीसदी के करीब है। मुस्लिम भी करीब 20 फीसदी हैं। पूर्वांचल की मिर्जापुर, वाराणसी जैसी लोकसभा सीटों पर कुर्मी समाज प्रभावशाली तादाद में है तो दर्जनभर से अधिक सीटों पर मुस्लिम। वोटिंग पैटर्न की बात करें तो कुर्मी जहांभाजपा को अधिक वोट करते रहे हैं तो वहीं मुस्लिम समाज ज्यादातर सपा के साथ रहा है। अब नया मोर्चा उत्तरप्रदेश की सियासत में किस कदर नया विकल्प बन पाता है, ये देखने वाली बात होगी।
अब बताया तो यह भी जाता है कि ओवैसी-पल्लवी में अलायंस बनने के बाद भी उत्तरप्रदेश में अलायंस करने के बाद भी AIMIM चुनाव नहीं लड़ रही है। चुनाव से पहले 20 सीटों पर लड़ने की बात हो रही थी। लेकिन अचानक से मुरादाबाद लोकसभा सीट से AIMIM नेता वकी रशीद ने निर्दलीय नामांकन भरने के बाद वापस ले लिया। उत्तरप्रदेश AIMIM ने 20 सीटों की लिस्ट भेजी थी लेकिन ओवैसी ने हां-ना कुछ नहीं किया। ओवैसी की पार्टनर पल्लवी पटेल पहले ही अपने उम्मीदवार उतार चुकी हैं। अब सवाल उठेंगे कि, जब चुनाव लड़ना नहीं था तो हैदराबाद से आकर उन्होंने ऐसी पार्टी से अलायंस क्यों किया जिसका दायरा ही फूलपुर, मिर्जापुर, वाराणसी के आसपास तक सीमित है। हालांकि इसके पीछे ओवैसी कह रहे हैं कि,हमारा मकसद बड़ा है।
राष्ट्रीय लोकदल की बात करें तो वह इस समय एनडीए के साथ है । देखा जय तो कभी ‘अजगर’ (अहीर, जाट, गुर्जर और राजपूत) और फिर ‘मजगर’ (मुस्लिम, जाट, गुर्जर और राजपूत) समीकरण के तहत पश्चिमी उत्तरप्रदेश में धाक जमाने वाली रालोद वर्तमान में जाटों की पार्टी मानी जाती है। बागपत, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, कैराना, नगीना, गाजियाबाद, मेरठ, नोएडा, अलीगढ़, आगरा, मथुरा और बुलंदशहर लोकसभा सीटों पर रालोद का मजबूत वोट बैंक माना जाता है। पिछले दो लोकसभा सभाओं के चुनावों में रालोद का खाता भी नहीं खुला था। लेकिन 16वीं लोकसभा के अंतिम दौर में कैराना लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में रालोद प्रत्याशी तबस्सुम हसन सपा के सहयोग से जीती थी। वर्तमान में रालोद एनडीए के साथ है। नए गठबंधन के तहत रालोद को आगामी लोकसभा चुनावों में बागपत और बिजनौर की सीटें भी मिली हैं।
अपना दल (सोनेलाल) की बात करें तो वह गैर यादव पिछड़ा वर्ग की कई जातियों की राजनीति करता है। कुर्मियों में अपना दल एस की संयोजक अनुप्रिया पटेल की मजबूत पकड़ मानी जाती है। इस वोट बैंक के जरिए अपना दल(एस) का मीरजापुर, सोनभद्र और उसके आस-पास की कई लोकसभा सीटों पर दबदबा है। उत्तरप्रदेश में पार्टी एनडीए सरकार का प्रमुख घटक है। पार्टी की संयोजक अनुप्रिया पटेल केंद्रीय मंत्री हैं। उनके पति आशीष सिंह पटेल उत्तरप्रदेश सरकार में मंत्री हैं। एनडीए के गठबंधन में अपना दल एस 2014 और 2019 में दो-दो लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा और जीता है। हालांकि, इस बार अभी तक अपना दल एस की सीटें घोषित नहीं हुई हैं। लेकिन, माना जा रहा है कि भाजपा उन्हें दो ही सीटें देने की तैयारी में हैं।
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ( सुभासपा ) के मुखिया और अति पिछड़ों की राजनीति करने वाले ओम प्रकाश राजभर पूर्वांचल की गाजीपुर, बलिया, आजमगढ़, लालगंज, संत कबीर नगर, अंबेडकर नगर, जौनपुर, घोसी, चंदौली और मछलीशहर सीटों पर असर डालने की स्थिति में हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा के साथ मिल कर लड़ी सुभासपा ने छह सीटें जीती थी। लेकिन, चुनाव के तुरंत बाद राजभर ने सपा का साथ छोड़ दिया और एक बार फिर एनडीए के साथ आ गए। एनडीए में शामिल होने के साथ ही राजभर को योगी मंत्रिमंडल में जगह मिली और लोकसभा चुनाव में भी एनडीए ने सुभासपा को घोसी लोकसभा सीट दी है।
निषाद पार्टी इस बार कमल के निशान पर अपना चेहरा लेकर आने वाली है । देखा जाय तो घाघरा के किनारों से लेकर गंगा और यमुना के कछार तक की करीब तीन दर्जन लोकसभा सीटों पर निषाद और उससे जुड़ी हुई जातियों का वोटबैंक नतीजों की दिशा तय करने में सक्षम है। गोरखपुर, बांसगांव, चंदौली, मीरजापुर, भदोही, इलाहाबाद, जालौन, बांदा, फैजाबाद, संतकबीर नगर जैसी सीटों पर इनकी संख्या प्रभावी है। इन वोटों की राजनीति करने वाली निषाद पार्टी एनडीए का हिस्सा है। 2019 की तरह भाजपा ने निषाद पार्टी के नेता प्रवीण निषाद संतकबीर नगर सीट से भाजपा के सिंबल पर उतारा है। हालांकि, निषाद पार्टी की अपेक्षा अधिक की थी।
प्रदेश के अन्य छोटे दल भी किसी न किसी के साथ चुनावी गठजोड़ की कवायद में जुटे हैं। प्रतापगढ़, कौशांबी में असर रखने वाले रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया को भाजपा का करीब माना जाता है। लेकिन, अभी तक उनकी पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक ने चुनाव को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं। रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (ए) उत्तरप्रदेश में गठबंधन के तहत टिकट न मिलने से चुनाव में एनडीए प्रत्याशियों का समर्थन करेगी। स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी अपनी नवगठित पार्टी के बैनर तले अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। आजाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर भी नगीना से चुनाव लड़ रहे हैं। महान दल ने बसपा के समर्थन का ऐलान किया है तो जनवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय चौहान ने सपा प्रमुख पर वादा न निभाने का आरोप लगाते हुए पिछले दिनों अपने बल पर 11 लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया है।
अशोक भाटिया,