पवन वर्मा
स्मार्ट हलचल|गुलाबगंज में विधवा महिला और पांच बच्चे, एक कमरे का कच्चा कबेलू और पन्नी का घर। सरकार के राशन पर निर्भर परिवार। बिजली बिल पहले सौ-डेढ़ सौ रुपए आता था। स्मार्ट मीटर लगने के बाद सात हजार तीन सौ का बिल आया। सरकार विद्युत मंडल में सुधार करो…। यह लिखा है विदिशा भाजपा के वरिष्ठ नेता मनोज कटारे ने अपनी फेसबुक वॉल पर।
विदिशा कांग्रेस के प्रवक्ता अरुण अवस्थी राजू कहते हैं कि यह सरकार की खुली लूट है। स्मार्ट मीटर ने लोगों की आर्थिक स्थिति पर बड़ा प्रहार किया है। लोग बिजली के बड़े हुए बिल भरे या अपने यहां दो वक्त की रोटी की व्यवस्था करें। बहुत कठिन स्थिति में भाजपा सरकार की स्मार्ट मीटर लगाने की योजना गरीबों को ले आई है, जिनके यहां पर सौ-दो सौ रुपए के बिल आ रहे थे, अब उनके यहां पर पांच-दस हजार रुपए के बिल भेजे जा रहे। शिकायतों पर कोई सुनवाई नहीं हैं।
विदिशा वह जिला है, जिसका प्रतिनिधित्व लोकसभा में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान करते हैं। स्मार्ट मीटर लगने के बाद बिजली बिल की यह परेशानी सिर्फ विदिशा अकेले शहर की नहीं है, बल्कि प्रदेश में जहां-जहां बिजली के स्मार्ट मीटर लगे हैं वहां पर यह समस्या है। बिजली के बड़े हुए बिल आ रहे हैं। हर दिन कहीं न कहीं इसके विरोध में धरने-प्रदर्शन किए जा रहे हैं।
मध्य प्रदेश में विदिशा अकेला ऐसा शहर नहीं हैं, जहां स्मार्ट मीटर को लेकर विरोध हो रहा है, बल्कि राजधानी भोपाल में भी इसका लगातार विरोध हो रहा है। हालात यह हो गए हैं कि इन मीटरों को अब लोग अपने घर पर लगाने नहीं दे रहे हैं। वहीं सिवनी में स्मार्ट मीटर के विरोध को लेकर बंद हो चुका है। प्रदेश में जहां-जहां स्मार्ट मीटर लगाए गए हैं, वहां विरोध हो रहा है। इसमें इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, सागर, सतना, रीवा जैसे मध्य प्रदेश के बड़े शहर शामिल हैं तो विदिशा, सीहोर, बुरहानपुर जैसे छोटे शहरों में भी इसका विरोध तेजी से हो रहा है। भोपाल में कांग्रेस का दावा है कि 508 उपभोक्ताओं को 1.5 करोड़ रुपए के बिल थमाए जा चुके हैं। इसे लेकर कांग्रेस ने धरना भी दिया था।
स्मार्ट मीटर का विरोध क्यों?
पहले के मीटर में बिजली की जो खपत आती थी, उसके मुकाबले स्मार्ट मीटर दोगुना और तीन गुना खपत बता रहे हैं। बिजली घर के दफ्तरों में हर जगह इन मीटर को लेकर शिकायतों का अंबार लग गया है, अफसर भी इन शिकायतों पर ज्यादा काम नहीं कर रहे, नतीजे में चाहे ऑन लाइन शिकायतें हों या ऑफ लाइन शिकायत, या टोल फ्री नंबर 1912 किसी का कोई निराकरण ही नहीं किया जा रहा है। यानि मध्य प्रदेश का बिजली विभाग एक तरफा चल रहा है। शिकायतों का निपटारा होने तक उपभोक्ता बिल भरने से गुरेज करते हैं, इसी बीच बिना पूर्व सूचना या चेतावनी के बिजली काट दी जाती है। मजबूरी में शिकायत का निपटारा हो या न हो उपभोक्ता को बिजली का बिल भरना ही पड़ता है।
मध्य प्रदेश में गैर राजनीतिक तरीके से विरोध अमूमन नहीं होते हैं, लेकिन बिजली के इन मीटरों के प्रदेश के अधिकांश शहरों में ऐसे विरोध शुरू हो गए हैं, जो बिना किसी राजनीतिक दल के झंड़े के हो रहे हैं। इसके चलते भाजपा और कांग्रेस दोनों के नेता ही उपभोक्ताओं के साथ दिखाई दे रहे हैं।
मध्य प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र में स्मार्ट मीटर को लेकर उज्जैन जिले के कांग्रेस विधायक महेश परमार ने सदन में नियम 142 क के तहत ‘किसानों पर विद्युत प्रकरण बनाकर पेनाल्टी लगाने’ पर हुई चर्चा में कहा कि जहाँ जहाँ स्मार्ट मीटर लग रहे हैं वहां वहां प्रदर्शन हो रहे है। हेल्पलाइन नम्बर लगता नहीं और सरकार ने ऑनलाइन शिकायत की व्यवस्था की नहीं।
कुछ शहरों में कांग्रेस इसके विरोध में उतरी है। फिलहाल सरकार का ध्यान इस ओर नहीं हैं, नतीजे में बिजली विभाग लगातार स्मार्ट मीटर लगाने के काम में जुटा हुआ है। दरअसल देश भर में 25 करोड़ पुराने मीटर बदलकर उनकी जगह स्मार्ट मीटर लगाए जा रहे हैं, सरकार का दावा है कि स्मार्ट मीटर लगाए जाने से 2031-32 तक करीब 11 लाख करोड़ रुपए के राजस्व घाटे की बचत होगी। देश में अब तक साढ़े ग्यारह करोड़ स्मार्ट मीटर लगाए जा चुके हैं।
कांग्रेस नहीं बना सकी मुद्दा
नए मीटरों की कथित तेजी के साथ राज्य की राजनीति गरमाने की संभावना थी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। मध्य प्रदेश में कांग्रेस इसे राज्य स्तरीय मुद्दा बनाने में अब तक सफल नहीं हो सकी है, उसके बड़े नेता इस मामले में सिर्फ बयान देने तक तक सिमट कर रहे गए हैं। जबकि प्रदेश में जनता जिस तरह से इसका विरोध कर रही है, उसे देखकर यह लगता है कि यह मुद्दा मध्य प्रदेश में कांग्रेस को जनता के बीच मजबूती दे सकता है, लेकिन कांग्रेस के नेता इसे अब तक नहीं समझ सके हैं। कुल मिलाकर जिस तरह से प्रदेश के लगभग हर शहर में जनता का विरोध स्मार्ट मीटर को लेकर हो रहा है,यह भविष्य में सरकार के लिए सिरदर्द साबित हो सकता है।