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राज कपूर की फिल्मों में सामाजिक संवेदना, प्रेम, और आम आदमी की पीड़ा की झलक

राज कपूर
(14 दिसंबर 1924 – 2 जून 1988)
@शाश्वत तिवारी

स्मार्ट हलचल|2 जून 1988 को राज कपूर का निधन हो गया, लेकिन उनका सिनेमा आज भी जीवित है। उनकी फिल्मों ने भारतीय समाज को आइना दिखाया, उम्मीद दी, और सिनेमा को एक संवेदनशील माध्यम के रूप में प्रस्तुत किया।
राज कपूर—भारतीय सिनेमा का शोमैन, एक ऐसा नाम जो सिर्फ एक अभिनेता या निर्देशक नहीं, बल्कि एक युग था। उनका जन्म 14 दिसंबर 1924 को पेशावर (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। उनके पिता प्रथ्वीराज कपूर, भारतीय रंगमंच और फिल्म जगत के दिग्गज थे, और उन्हीं की विरासत को राज कपूर ने न केवल आगे बढ़ाया, बल्कि उसे नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया।
राज कपूर ने मात्र 10 वर्ष की उम्र में फिल्मों में कदम रखा। लेकिन 24 साल की उम्र में ही उन्होंने RK Films नाम से अपनी प्रोडक्शन कंपनी शुरू की और फिल्म “आग” (1948) का निर्देशन किया। यही से शुरू हुआ एक नया दौर, जहाँ वह अभिनेता, निर्देशक, निर्माता और संगीतप्रेमी के रूप में उभरकर सामने आए।
राज कपूर की फिल्मों में सामाजिक संवेदना, प्रेम, और आम आदमी की पीड़ा की झलक मिलती थी।

उनकी प्रसिद्ध फिल्मों में शामिल हैं:
आवारा (1951) – जिसमें उनका “आवारा हूं…” गीत आज भी गूंजता है।
श्री 420 (1955) – “मेरा जूता है जापानी…” गीत ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई।
बॉबी (1973) – जिसमें उन्होंने युवाओं की प्रेम कहानी को नया अंदाज़ दिया। सत्यम शिवम सुंदरम, प्रेम रोग, राम तेरी गंगा मैली जैसी फिल्में भी समाज के सवालों से टकराती रहीं।
राज कपूर को “भारत का चार्ली चैपलिन” कहा जाता है, क्योंकि वे फिल्मों में हँसी के पीछे छिपे दर्द को बड़ी खूबसूरती से दिखाते थे। उनकी फिल्मों में संगीत की बेहद खास भूमिका होती थी। शंकर-जयकिशन, हसरत जयपुरी, मजरूह सुल्तानपुरी और मुकेश उनके करीबी सहयोगी थे।
राज कपूर के तीन बेटे हुए—रणधीर कपूर, ऋषि कपूर, और राजीव कपूर, जिनमें से ऋषि कपूर ने भी हिंदी सिनेमा में बड़ी सफलता पाई। राज कपूर खुद कपूर खानदान की वह नींव हैं, जिस पर आज भी बॉलीवुड टिका हुआ है।
कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान उनके हिस्से आए।
1987 में उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
रूस में उनकी लोकप्रियता किसी राष्ट्रनायक से कम नहीं थी।
राज कपूर की कहानी सिर्फ एक अभिनेता की कहानी नहीं है, बल्कि वह एक ऐसे कलाकार की दास्तान है जिसने कैमरे को ज़ुबान दी, पर्दे पर दिल की धड़कनें उतारीं और भारतीय सिनेमा को आत्मा दी।

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