14 जनवरी मकर संक्रांति पर्व पर विशेष-Special on Makar Sankranti festival-
मकर संक्रांति हिंदू परंपरा का विशेष पर्व
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”
हर साल 14 जनवरी को धनु से मकर राशि व दक्षिणायन से उत्तरायण में सूर्य के प्रवेश के साथ यह पर्व संपूर्ण भारत सहित विदेशों में भी अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। पंजाब व जम्मू-कश्मीर में ‘लोहड़ी’ के नाम से प्रचलित यह पर्व भगवान बाल कृष्ण के द्वारा ‘लोहिता’ नामक राक्षसी के वध की खुशी में मनाया जाता है। इस दिन पंजाबी भाई जगह-जगह अलाव जलाकर उसके चहुंओर भांगड़ा नृत्य कर अपनी खुशी जाहिर करते हैं व पांच वस्तुएं तिल, गुड़, मक्का, मूंगफली व गजक से बने प्रसाद की अग्नि में आहुति प्रदान करते हैं। हमारी भारतीय संस्कृति में त्योहारों, मेलों, उत्सवों व पर्वों का महत्वपूर्ण स्थान है। भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है, जहां हर दिन कोई न कोई त्योहार मनाया जाता है। यह कहें तो भी अतिशयोक्ति नहीं होगी यहां दिन कम और त्योहार अधिक हैं अर्थात् यहां हर दिन होली और हर रात दिवाली है।
दरअसल, ये त्योहार और मेले ही हैं जो हमारे जीवन में नवीन ऊर्जा का संचार करने के साथ परस्पर प्रेम और भाईचारे को बढ़ाते हैं। मकर संक्रांति ऐसा ही ‘तमसो मा ज्योर्तिगमय’ का साक्षात् प्रेरणापुंज, अंधकार से उजास की ओर बढ़ने व अनेकता में एकता का संदेश देने वाला पर्व है। इसी तरह गुजरात में मकर सक्राति का पर्व उतरोन के नाम से मनाया जाता है, तो महाराष्ट्र में इस दिन लोग एक-दूसरे के घर जाकर तिल और गुड़ से बने लड्डू खिलाकर मराठी में ‘तीळ गुळ घ्या आणि गोड गोड बोला’ कहते हैं। जिसका हिन्दी में अर्थ होता है तिल और गुड़ के लड्डू खाइए और मीठा-मीठा बोलिए। वहीं असम प्रदेश में इस पर्व को ‘माघ बिहू’ के नाम से जाना जाता है।
इसी तरह प्रयागराज में माघ मेले व गंगा सागर मेले के रूप में मनाए जाने वाले इस पर्व पर ‘खिचड़ी’ नामक स्वादिष्ट व्यंजन बनाकर खाने की परंपरा है। जनश्रुति है कि शीत के दिनों में खिचड़ी खाने से शरीर को नई ऊर्जा मिलती है।
मकर संक्रांति को मनाने के पीछे अनेक धार्मिक मान्यताएं भी हैं। सूर्य के उत्तरायण की दिशा में यह पर्व भारतीय ज्योतिष के अनुसार पिता सूर्य और पुत्र शनि की मुलाकात के रूप में भी मनाया जाता है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार गुरु की राशि धनु में विचरने वाले सूर्य ग्रह जब मकर यानी की शनिदेव राशि में प्रवेश करते हैं तो माना जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने खुद उनके घर जाते हैं। यही वजह है कि इस खास दिन को मकर संक्रांति के नाम से पहचाना जाता है।
दूसरी मान्यता के अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जा मिली थीं। कहा जाता है कि गंगा को धरती पर लाने वाले भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस खास दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद इस दिन गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थी। यही वजह है कि मकर संक्रांति पर गंगा सागर में मेला लगता है।
महाभारत के भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागने के लिए, सूर्य के मकर राशि मे आने का इंतजार किया था। सूर्य के उत्तरायण के समय देह त्याग करने या मृत्यु को प्राप्त होने वाली आत्माएं कुछ काल के लिए ‘देवलोक’ में जाती हैं। जिससे आत्मा को ‘पुनर्जन्म’ के चक्र से छुटकारा मिल जाता है और इसे ‘मोक्ष’ प्राप्ति भी कहा जाता है। अतः इस पर्व को मनाने के पीछे यह मान्यता भी है। कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा करते हुए सभी असुरों के सिर को मंदार पर्वत के नीचे दबा दिया था। इस प्रकार यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता के अंत का दिन भी माना जाता है। माता यशोदा ने जब कृष्ण जन्म के लिए व्रत रखा था तब सूर्य देवता उत्तरायण काल में पदार्पण कर रहे थे और उस दिन मकर संक्रांति का दिन था। माना जाता है कि उसी दिन से मकर संक्रांति के व्रत को रखने का प्रचलन भी शुरू हुआ।