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आज पितृ दिवस पर विशेष ,तो फिर क्यों करते पितृ दिवस मनाने का ढोंग !


आज पितृ दिवस पर विशेष
 तो फिर क्यों करते पितृ दिवस मनाने का ढोंग !


स्मार्ट हलचल/पिता शब्द पर लेखकीय अभिव्यक्ति उस दुख दर्द और अंतः पीड़ा का भी एहसास कराती है जो और कहीं हो ना हो लेकिन भारत जैसे देश में काफी हद तक दुखद और निंदनीय भी है। इस कथन का संदर्भ उन सभी बुजुर्गों से है जिनके बच्चे अधिक उम्र की वजह से असहाय और लाचार हो चुके माता-पिता की उसे तरह से सेवा और देखभाल नहीं करते जिस तरह की सेवा और देखभाल उनकी उसे उम्र में की जानी चाहिए।
उनकी उपेक्षा करने वालों में सर्वाधिक संख्या उन महिलाओं लड़कियों की होती है ,जो उनके साथ बहू के रूप में जुड़ी होती है। जीवन के अंतिम कालखंड में अगर उन्हें यानी माता-पिता को सर्वाधिक कष्ट होता है ,सर्वाधिक परेशानी होती है तो उसकी सर्वाधिक वजह भी अधिकांश बहुएं ही होती हैं ,जिसकी पुष्टि इस संदर्भ में पुलिस में की जाने वाली शिकायतों और रिपोर्ट आदि से भी होती है। यही नहीं वृद्धाश्रमों से भी इसकी पुष्टि होती है। मतलब अधिकांश बुजुर्ग अपने बच्चों की वजह से ही वहां रहने को मजबूर हैं। इस हिसाब से देखा जाए तो भारत में पितृ दिवस लगभग दिखावे का ही प्रतीक है। मतलब एक ढोंग और नाटक ही है।

दुनिया में हर दिन मनाया जाने वाले किसी न किसी दिवस की तरह आज 16 जून को पितृ दिवस को मनाया जा रहा है। पिता शब्द पर लेखकीय अभिव्यक्ति उस दुख दर्द और अंतः पीड़ा का भी एहसास कराती है जो और कहीं हो ना हो लेकिन भारत जैसे देश में काफी हद तक दुखद और निंदनीय भी है। इस कथन का संदर्भ उन सभी बुजुर्गों से है जिनके बच्चे अधिक उम्र की वजह से असहाय और लाचार हो चुके माता-पिता की उसे तरह से सेवा और देखभाल नहीं करते जिस तरह की सेवा और देखभाल उनकी उसे उम्र में की जानी चाहिए।
उनकी उपेक्षा करने वालों में सर्वाधिक संख्या उन महिलाओं लड़कियों की होती है ,जो उनके साथ बहू के रूप में जुड़ी होती है। जीवन के अंतिम कालखंड में अगर उन्हें यानी माता-पिता को सर्वाधिक कष्ट होता है ,सर्वाधिक परेशानी होती है तो उसकी सर्वाधिक वजह भी अधिकांश बहुएं ही होती हैं ,जिसकी पुष्टि इस संदर्भ में पुलिस में की जाने वाली शिकायतों और रिपोर्ट आदि से भी होती है। यही नहीं वृद्धाश्रमों से भी इसकी पुष्टि होती है। मतलब अधिकांश बुजुर्ग अपने बच्चों की वजह से ही वहां रहने को मजबूर हैं। इस हिसाब से देखा जाए तो भारत में पितृ दिवस लगभग दिखावे का ही प्रतीक है।
अब पिता दिवस की आगे चर्चा करें तो इस वर्ष की थीम “सेलिब्रेटिंग फादरवुड: स्ट्रेंथ, लव एंड सैक्रीफाइस” पर केंद्रित है। भारत में पितृ दिवस का मूल रिवाज नहीं है, बल्कि इसे पश्चिमी देशों के प्रभाव से आज भारत में भी पितृ सम्मान के लिए मनाया जाने लगा। दुनिया भर के विभिन्न हिस्सों में फादर्स डे की तारीख भी अलग-अलग है, लेकिन भारत के साथ ही अमेरिका, कनाडा, इंग्लैण्ड, ग्रीस, मैक्सिको, पाकिस्तान, आयरलैंड, वेनेजुएला और अर्जेंटीना आदि देशों में भी जून महीने के तीसरे रविवार के दिन पितृ दिवस मनाया जाता है। अगर पिता के संदर्भ में एक कवि भाव को माध्यम बनाएं तो फिर लिखा जा सकता है कि ‘पिता की तस्वीर बनाने को मैंने एक पेंसिल उठाई, स्केच बनाया पहले उनका, चेहरे पर घनी मूँछ लगाई, जिम्मेदारी के रंग भरे और कठोर भाव भंगिमाएँ बनाई, पुराना उनका कुर्ता उकेरा, उस पर कड़क कलफ चढ़ाया, रौबदार दो आँखे खींची, आँखों को चश्मा पहनाया, पिता के मन को लेकिन मैं हूबहू न रंग पाया.. पिता को गढ़ सकूँ मैं, इतना बड़ा न बन पाया.?’ हमेशा से ही पिता की छवि एक कठोर दिल वाले इंसान के रूप में हुई है। ऐसे में ज्यादातर बच्चे अपने पिता से बात करने से कतराते हैं, परंतु पितृ दिवस पर आप अपने प्यार को खुलकर जाहिर कर सकते हैं, इस दिन आप उन्हें दिल खोल कर बता सकते हैं कि आप उनसे कितना प्यार करते हैं। दुनिया भर में पितृ दिवस अपने पिता को यह बताने के लिए होता है कि वे उनके जीवन में कितना महत्व रखते हैं साथ ही यह दिन पिता को धन्यवाद करने और उन्हें सम्मानित करने के मकसद से मनाया जाता है। अपने पापा को विशेष महसूस कराने के लिए, या मृत पिता को श्रध्दांजलि देने के लिए या उन्हें याद करते हुए भी पिता दिवस मनाया जा सकता है। पितृ दिवस के दिन बच्चे अपने पापा को यह एहसास दिलाते हैं कि वह हमारे जीवन में उतना ही महत्व रखते हैं जितना कि उनकी मां। पितृ दिवस मनाने के पीछे एक ऐतिहासिक कहानी है यह स्टोरी अमेरिका की एक युवती सोनोरा स्मार्ट डोड की है। बताया जाता है कि एक चर्च में मदर्स डे पर धर्म उपदेश सुनने के बाद सोनोरा स्मार्ट डोड ने पितृ दिवस को भी मान्यता दिलवाने का प्रण लिया। जिसके जरिए वह अपने पिता विलियम स्मार्ट और उनके जैसे अन्य पिताओं को सम्मान दिलवाना चाहती थी, क्योंकि उनके पिता ने उन्हें और उनके 5 भाइयों को उनकी माता की मृत्यु होने के बाद अकेले पाला था। जब उनकी मां की मृत्यु हुई तो सोनोरा केवल 16 वर्ष की थी और उनके पिता एक सेवानिवृत्त सैनिक थे। और जिस प्रकार से उनके पिता विलियम स्मार्ट ने उन्हें और उनके 5 भाइयों को पाला था, वह इससे काफी ज्यादा प्रभावित थी। उन्होंने 5 जून को अपने पिता के जन्मदिन को फादर्स डे मनाने के रूप में मनाने का सुझाव दिया था। इससे चर्च के पादरी भी काफी ज्यादा प्रभावित हुए और उन्होंने भी इसका समर्थन किया। जिसके फलस्वरूप 19 जून-1910 को प्रथम फादर्स डे मनाया गया। हालांकि लोगों ने पिताओं को समर्पित इस दिन को मदर्स डे की तरह सीरियस नहीं लिया और इसका मजाक बनाने लगे, फादर्स डे को अधिकारी छुट्टी बनाने में कई वर्षों का समय लग गया। सन 1966 में राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने जून के तीसरे रविवार को पिता को सम्मान देने के लिए यह दिन तय किया और इसके 6 साल बाद 1972 में राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने एक कानून पास कर इस दिवस को हर साल मनाए जाने की घोषणा की।
‘जीवन की कहानी कितनी ही लंबी क्यूँ न हो जाये, लेकिन इस कहानी का सारांश हमेशा पापा जी आप ही रहोगे…’ के भाव को दुनियां का दूसरा कोई रिश्ता भर नहीं सकता। पिता की शख्सियत के बारे में जितना भी लिखा जाए उतना ही कम है, लेकिन केवल आपका पिताजी नहीं आपकी पिता जैसी उम्र वाला कोई भी अगर असहाय और लाचार है और आप उसकी सहायता नहीं करते तो फिर यह पितृ दिवस मनाना एक ढोंग और नाटक ही है।

स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर 31 जनवरी 2025, Smart Halchal News Paper 31 January 2025
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स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  01 अगस्त  2024, Smart Halchal News Paper 01 August 
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