भक्ति ही संसार सागर से पार लगाने का साधन: विभाश्री माता जी
वीतरागी और सर्वज्ञ ही पूज्य: गणिनी आर्यिका विभाश्री माता जी
कोटा। स्मार्ट हलचल|रिद्धि सिद्धि नगर में विराजमान गणिनी आर्यिका श्री 105 विभाश्री माताजी ससंघ ने सोमवार को भक्तामर स्तोत्र की कक्षा में प्रवचन देते हुए पूज्य के स्वरूप और भक्ति के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जो प्रादुर्भूत दोषों से रहित है, वीतरागी, हितोपदेशी और सर्वज्ञ है, वही पूज्य है।
वीतरागता और सर्वज्ञता के लक्षण
माताजी ने समझाया कि भगवान वीतरागी हैं, इसीलिए सैकड़ों इंद्र उन्हें नमस्कार करते हैं। वे सर्वज्ञ हैं क्योंकि उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हो चुकी है। वे संसारी प्राणियों को हित का उपदेश देने वाले हितोपदेशी हैं। उन्होंने श्रद्धालुओं से आह्वान किया कि चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, प्रतिदिन जिनेंद्र भगवान की आराधना अवश्य करनी चाहिए।
भक्ति ही मोक्ष का मार्ग
गणिनी आर्यिका ने कहा कि भगवान की भक्ति ही संसार रूपी सागर से पार लगाने वाली है। छोटों और बड़ों दोनों को देखकर आगे बढ़ना चाहिए। भक्त का संकल्प इतना दृढ़ होना चाहिए कि वह सोचे—”मैं भगवान की ऐसी भक्ति करूंगा कि लोग देखने आएंगे।”
जिनवाणी से ज्ञानावरणी कर्म का क्षय
माताजी ने बताया कि जिनवाणी के पठन से ज्ञानावरणी कर्म का क्षय होता है और बुद्धि में चातुर्य का विकास होता है। आत्मा में परिणामों की निर्मलता और विशुद्धि से ज्ञानावरणी कर्म का नाश होता है तथा बुद्धि का विकास होता है।
विनम्रता भक्ति का मूल
उन्होंने कहा कि भक्त को सदैव विनम्र रहना चाहिए, अहंकारी नहीं होना चाहिए। “हे भगवन! आपके गुणों की छाया मुझे दिखाई देती है, इसलिए मैं आपकी भक्ति करने के लिए तत्पर हो रहा हूं,” ऐसा भाव रखना चाहिए। माताजी ने स्पष्ट किया कि भगवान को हमसे कुछ नहीं चाहिए, वे तो कृतकृत्य हो चुके हैं।”इस अवसर पर सकल दिगंबर समाज के महामंत्री पदम बड़ला, मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, मंत्री पंकज खटोड, कोषाध्यक्ष ताराचंद बड़ला, पारस कासलीवाल, पारस लुहाड़िया, पारस आदित्य, सेवानिवृत्त न्यायाधीश जितेन्द्र कुमार, निर्मल अजमेरा, महावीर बड़ला, राजकुमार पाटनी, नरेन्द्र कासलीवाल, अजीत गोधा, वर्धमान कासलीवाल, अनिल मित्तल, मनीष सेठी, संजय लुहाड़िया सहित बड़ी संख्या में जैन समाज के श्रद्धालु उपस्थित रहे।


