शाहपुरा। मूलचन्द पेसवानी
शिक्षाविद अनुराग बाला पाराशर की स्मृति में मालिनी वाटिका में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा का रविवार को भावपूर्ण वातावरण में समापन हुआ। कथा के अंतिम दिन मथुरा के सुप्रसिद्ध कथावाचक पं. अरुणाचार्य महाराज ने सुदामादृकृष्ण मित्रता का मार्मिक प्रसंग सुनाकर श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया। उन्होंने कहा कि सच्ची मित्रता कैसी होती है, यह भगवान श्रीकृष्ण और उनके बालसखा सुदामा के चरित्र से सीखी जा सकती है। भागवत कथा के अंतिम दिन आज खानिया के बालाजी मन्दिर के महंतश्री रामदास जी त्यागी के सानिध्य में हुई कथावाचन के दौरान पं. अरुणाचार्य महाराज ने बताया कि निर्धन ब्राह्मण सुदामा पत्नी के आग्रह पर अपने मित्र श्रीकृष्ण से मिलने द्वारिका पहुंचे। महल के द्वार पर द्वारपालों ने उन्हें भिक्षुक समझकर रोक लिया, लेकिन जैसे ही सुदामा का नाम भगवान के कानों तक पहुंचा, प्रभु “सुदामा-सुदामा” कहते हुए द्वार की ओर दौड़ पड़े और सखा को गले लगा लिया। इस दृश्य का मंचन होते ही पंडाल में मौजूद श्रद्धालुओं की आंखें नम हो गईं और सुदामा-कृष्ण की झांकी पर फूलों की वर्षा की गई।
कथा के मुख्य यजमान डा. कमलेश पाराशर ने आयोजन के सफल समापन पर सभी श्रद्धालुओं, सहयोगियों और कथा मंडली का आभार प्रकट किया। इस अवसर पर यजमान परिवार की ओर से कथावाचक पं. अरुणाचार्य महाराज एवं उनकी मंडली का शॉल ओढ़ाकर, स्मृति चिन्ह और स्व अनुराग बाला पाराशर द्वारा लिखित पुस्तक 60 सोपान भेंट कर सम्मान किया गया। वहीं धर्मवीर विकास चोधरी परिवार की ओर से भी सम्मान समारोह आयोजित किया गया। कार्यक्रम में सेवानिवृत्त उपनिदेशक डा. कमलाकांत शर्मा ‘कमल’, डा. रविकांत सनाठ्य, शाहपुरा के एसीबीईओ डा. सत्यनारायण कुमावत, डा. परमेश्वर कुमावत, भाजपा नगर अध्यक्ष पंकज सुगंधी, महामंत्री जितेंद्र पाराशर सहित विभिन्न सामाजिक संगठनों के पदाधिकारी मौजूद रहे।
कथा के अंतिम दिन भी श्रीमद् भागवत का रसपान करने के लिए श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। पं. अरुणाचार्य महाराज ने समापन सत्र में भगवान श्रीकृष्ण की 16 हजार शादियों, सुदामा प्रसंग और परीक्षित मोक्ष की कथाओं का सारगर्भित वर्णन किया। उन्होंने कहा कि सात दिनों तक श्रद्धा से भागवत श्रवण करने से जीव का उद्धार होता है और इसे कराने वाले भी पुण्य के भागी बनते हैं। सुदामा चरित्र के माध्यम से उन्होंने समाज को समानता, विनम्रता और निस्वार्थ मित्रता का संदेश दिया।
इससे पूर्व सत्र में कथावाचक ने धर्मस्थलों में बढ़ती वीआईपी संस्कृति पर कटाक्ष करते हुए कहा कि अहंकार व्यक्ति को प्रभु से दूर कर देता है, जबकि सच्ची भक्ति विनम्रता और समर्पण से जन्म लेती है। गोपियों के उदाहरण से उन्होंने अहंकार त्यागकर भगवत् चिंतन को ही मुक्ति का मार्ग बताया। कंस वध, जरासंध युद्ध और रुक्मणी विवाह के प्रसंगों के दौरान पंडाल “श्रीकृष्ण-बलराम की जय” के जयकारों और भजनों से गूंज उठा, जिससे समूचा वातावरण कृष्णमय हो गया। कथावाचक ने आज के दौर में सनातन संस्कृति को अक्षुण्य बनाये रखने का आव्हान करते हुए कहा कि जेहादी तत्वों से सावधान रहने की जरूरत है।


