- लीपापोती: जांच अधिकारी दे गए ‘क्लीन चिट’, पर व्यवस्थापक बोले- ‘टैगिंग तो करनी पड़ेगी’।
- लूट: 266.50 रुपये का यूरिया 350 में बेचा जा रहा, बिल मांगने पर मनाही।
- गुंडागर्दी: सवाल पूछने पर पत्रकार से अभद्रता, धक्के मारकर निकाला।
स्मार्ट हलचल/शिवलाल जागिड़ (विशेष रिपोर्ट)
लाडपुरा / यूरिया खाद वितरण व्यवस्था ‘अंधेर नगरी चौपट राजा’ की कहावत को चरितार्थ कर रही है। पूर्व में प्रमुखता से खबर प्रकाशित होने के बाद प्रशासन ने जांच का नाटक तो किया, लेकिन परिणाम शून्य रहा। अधिकारियों ने मामले की लीपापोती कर दी, जबकि धरातल पर किसान आज भी ‘टैगिंग’ (जबरन अन्य उत्पाद खरीदना) के जाल में फंसा हुआ है।
अधिकारियों के झूठ की पोल खोलता व्यवस्थापक का बयान
जांच अधिकारियों ने दावा किया था कि किसानों पर कोई दबाव नहीं है। लेकिन लाडपुरा ग्राम सेवा सहकारी समिति के व्यवस्थापक कैलाश चंद्र तेली ने खुद स्वीकार किया है कि “सहकारी समिति को सल्फर खाद व टैंगिग उत्पाद लेने पर ही खाद दिया जा रहा है।”
यह विरोधाभास साफ करता है कि जांच महज एक औपचारिकता थी और ऊपर से नीचे तक पूरा सिस्टम मिला हुआ है।

2 घंटे में खत्म हुआ खेल
शुक्रवार को यूरिया के 330 कट्टे बंटने थे। सुबह 6 बजे से ही लंबी लाइनें लग गईं। पुलिस और कृषि पर्यवेक्षक रामेश्वर गुर्जर की मौजूदगी में वितरण शुरू हुआ। एक जन-आधार पर सिर्फ 1 कट्टा दिया गया और 2 घंटे में खाद खत्म हो गया। जो किसान अतिरिक्त सामान (सल्फर आदि) के 350 रुपये नहीं दे पाए, उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा।
“बाजार में एक बीघा जोतने का रेट 350 रुपये है, समिति का ट्रैक्टर भी यही रेट मांग रहा है। फिर सरकारी सुविधा का क्या फायदा? खाद के लिए भी जबरदस्ती दूसरा आइटम दिया जा रहा है।” – पीड़ित किसान
पत्रकार से अभद्रता: सच से डर गए कर्मचारी?
भ्रष्टाचार इस कदर हावी है कि जब एक संवाददाता ने शुक्रवार को मौके पर जाकर कवरेज करनी चाही, तो समिति के एक कर्मचारी ने उन्हें धक्के मारकर बाहर निकाल दिया। यह व्यवहार बताता है कि समिति में पारदर्शिता नाम की कोई चीज नहीं बची है।
सरकार पर सवाल
सरकारी दर 266.50 रुपये है, लेकिन किसानों की जेब से 350 रुपये निकाले जा रहे हैं। क्या यह सब उच्च अधिकारियों और रसूखदारों की शह पर हो रहा है? किसानों ने प्रशासन से मांग की है कि जांच के नाम पर नाटक बंद हो और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए।


