Tamil Nadu and Karnataka
स्मार्ट हलचल/कावेरी नदी के जल बंटवारे का मुद्दा लगातार तूल पकड़ता जा रहा है। तमिलनाडु और कर्नाटक में लोग पानी के लिए धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। कावेरी जल विवाद के चलते मंगलवार को बेंगलुरु में बंद रहा। इसके साथ ही प्रदर्शनकारियों ने आज 29 सितंबर 2023 से पूरे राज्य में बंद करने आह्वान किया है जिसकों वहां के मुख्य विरोधी दल भाजपा व जे डी एस भी समर्थन कर रहे हैं ।
दरअसल दोनों राज्यों के बीच यह जंग लगभग 140 साल पुरानी है। मामला निचली अदालतों से लेकर देश की उच्चतम न्यायालय तक पहुंचा लेकिन विवाद खत्म नहीं हो सका। कावेरी नदी कर्नाटक के को डागू जिले से निकलती है और तमिलनाडु व पुडुचेरी से होती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है। कावेरी नदी की लंबाई तकरीबन 750 किलोमीटर है। ये नदी कुशालनगर, मैसूर, श्रीरंगापटना, त्रिरुचिरापल्ली, तंजावुर और मइलादुथुरई जैसे शहरों से गुजरती हुई तमिलनाडु से बंगाल की खाड़ी में गिरती है। कावेरी बेसिन का कुल जलसंभरण (वाटरशेड) 81,155 वर्ग किलोमीटर है जिनमें से कर्नाटक में नदी का जल संभरण क्षेत्र सबसे ज्यादा लगभग 34,273 वर्ग किलोमीटर है।
केरल में कुल जल संभरण क्षेत्र 2,866 वर्ग किलोमीटर है। तमिलनाडु और पांडिचेरी में शेष 44,016 वर्ग किलोमीटर जल संभरण क्षेत्र है। जब कावेरी तमिलनाडु की ओर आती है तो यहां नदी की मुख्यधारा में मेटुर बांध बनाया गया है। कावेरी के साथ कबिनी और मेटूर बांध के संगम के बीच केन्द्रीय जल आयोग ने मुख्य कावेरी नदी पर दो जीएंडडी स्थलों यानी कोलेगल और बिलीगुंडलू की स्थापना की है। बिलीगुंडुलू जीएंडडी स्थल मेटूर बांध के तहत लगभग 60 किलोमीटर है जहां कावेरी नदी कर्नाटक और तमिलनाडु के साथ सीमा बनाती है।
कावेरी जल बंटवारा विवाद लंबे समय से कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच एक भावनात्मक मुद्दा बना हुआ है। यह विवाद सबसे पहले 1881 में शुरू हुआ था, जब तत्कालीन मैसूर राज्य (अब कर्नाटक) ने कावेरी नदी पर बांध बनाने का फैसला किया। लेकिन मद्रास राज्य (अब तमिलनाडु) इस पर आपत्ति जताई। सालों तक ऐसे ही विवाद चलता रहा। फिर 1924 में ब्रिटिशर्स की मदद से एक समझौता हुआ। समझौते के तहत कर्नाटक को कावेरी नदी का 177 टीएमसी और तमिलनाडु को 556 टीएमसी पानी मिला। टीएमसी यानी, हजार मिलियन क्यूबिक फीट। इसके बाद भी विवाद पूरी तरह नहीं सुलझ सका।
आजादी के बाद 1972 में केंद्र सरकार ने एक कमेटी बनाई। कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर कावेरी नदी के पानी के चारों दावेदारों (तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, पुडुचेरी) के बीच 1976 में एक समझौता हुआ। लेकिन इस समझौते का पालन नहीं हुआ और विवाद चलता रहा। 90 के दशक में विवाद बढ़ता चला गया। तो 2 जून 1990 को कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल का गठन किया गया। कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल के 2007 में दिए गए फैसले से पहले कर्नाटक 465 टीएमसी पानी मांग रहा था, जबकि तमिलनाडु को 562 टीएमसी चाहिए था। ट्रिब्यूनल ने कहा कि कर्नाटक को सालाना 270 टीएमसी और तमिलनाडु को 419 टीएमसी पानी मिलेगा। केरल को 30 टीएमसी और पुडुचेरी को 7 टीएमसी पानी देने को कहा गया। जल शक्ति मंत्रालय के जलसंसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग के मुताबिक, किसी विशेष महीने के संदर्भ में चार बराबर किस्तों में चार सप्ताहों में पानी छोड़ा जाना होता है। यदि किसी सप्ताह में पानी की अपेक्षित मात्रा को जारी करना संभव नहीं हो तो उस कमी को पूरा करने के लिए बाद के सप्ताह में छोड़ा जाएगा। वहीं विनियमित तरीके से तमिलनाडु द्वारा पुडुचेरी के काराइकेल क्षेत्र के लिए जल दिया जाएगा।
सीडब्लूडीटी बनने के बाद भी तमिलनाडु और कर्नाटक में कई मुद्दों को लेकर विवाद जारी रहा। कोई भी राज्य खुश नहीं था। तमिलनाडु ने ट्रिब्यूनल के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। बाद में कर्नाटक सरकार भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। फरवरी, 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कर्नाटक को जून से मई के बीच तमिलनाडु के लिए 177 टीएमसी पानी छोड़ने का आदेश दिया था। कोर्ट ने अंतिम अदालती आदेशों के ढांचे के भीतर राज्यों के बीच विवादों का निपटारा करने के लिए कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (सीडब्ल्यूएमए) और कावेरी जल नियामक समिति (सीडब्ल्यूआरसी) के गठन का भी आदेश दिया था।
लेकिन इस बार तमिलनाडु ने कर्नाटक से 15 हजार क्यूसेक और पानी छोड़ने की मांग की। इस पर कर्नाटक के विरोध के बाद कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण ने 10 हजार क्यूसेक पानी छोड़ने के लिए कर्नाटक को कहा। लेकिन तमिलनाडु का आरोप है कि कर्नाटक ने 10 हजार क्यूसेक पानी भी नहीं छोड़ा है। कर्नाटक का कहना है कि इस बार दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के कमजोर रहने के कारण कावेरी नदी क्षेत्र के जलाशयों में पर्याप्त जल भंडार नहीं है। ऐसे में कर्नाटक ने पानी छोड़ने से इनकार कर दिया। जिससे यह मुद्दा गरमा गया। दोबारा उपजे विवाद के बाद 18 सितंबर 2023 को कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण ने कर्नाटक को आदेश दिया कि वह तमिलनाडु को 5,000 क्यूसेक पानी जारी करे। आदेश के तहत कर्नाटक को 28 सितंबर तक तमिलनाडु को पानी देना था।
हालांकि सूखे जैसी स्थिति का सामना कर रहे कर्नाटक ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जहां से कर्नाटक सरकार को झटका लगा। सुप्रीम कोर्ट ने प्राधिकरण के आदेश में कोई भी हस्तक्षेप से इनकार कर दिया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने प्राधिकरण को हर 15 दिन में बैठक करने का निर्देश दिया। अब कर्नाटक के कई किसान और संगठन तमिलनाडु को पानी दिए जाने के खिलाफ खड़े हो गए हैं।
कावेरी जल को लेकर कर्नाटक ब्रिटिश राज की दुहाई देते हुए कहता है कि उस वक्त तमिलनाडु ब्रिटिश शासन के अधीन था। ऐसे में 1924 में हुए समझौते के वक्त उसके साथ न्याय नहीं हुआ था। कर्नाटक का कहना है कि 1956 में नए राज्य बनने के बाद पुराने समझौतों को रद्द माना जाना चाहिए। इसके साथ ही कर्नाटक की खेती के विकास तमिलनाडु की अपेक्षा देर से होने और नदी पहले उसके पास आने की दुहाई देते हुए कहता है कि सारे पानी पर उसका अधिकार है। वहीं इस विवाद को लेकर तमिलनाडु 1924 के समझौते को सही ठहराता है। उसका कहना है कि उस वक्त हुए समझौते के तहत तय पानी उन्हें मिलना चाहिए। तमिलनाडु का कहना है कि उसे हर बार पानी के लिए कोर्ट में गुहार लगानी पड़ती है
गौरतलब है कि कर्नाटक सरकार ने दोनों राज्यों के बीच कावेरी नदी जल विवाद को निपटाने के लिए मेकेदातु संतुलन जलाशय परियोजना को एक समाधान के तौर पर पेश किया है। इससे यह भी संकेत मिला है कि राज्य परियोजना को साकार करने की दिशा में प्रक्रिया शुरू करेगा। शिवकुमार का कहना है कि तमिलनाडु में पहले से ही 3,000 से 3,500 क्यूसेक पानी बह रहा है और इसके साथ ही हम किसानों के हितों और पीने के पानी की आवश्यकताओं की रक्षा करने का भी प्रयास करेंगे, यह हमारा दृढ़ संकल्प है। यह पूछे जाने पर कि क्या कर्नाटक तमिलनाडु के साथ बातचीत के लिए तैयार है, उनका कहना था कि अभी नहीं… 15 दिन की अवधि समाप्त होने के बाद देखेंगे। हमने केंद्र से हस्तक्षेप करने और दोनों राज्यों के बीच बातचीत कराने का अनुरोध किया है। अभी तक तमिलनाडु में 3,000 से 3,500 क्यूसेक पानी बह रहा है, और प्रवाह लगभग 8,000 क्यूसेक है। मेकेदातु संतुलन जलाशय परियोजना का मुद्दा सर्वोच्च न्यायालय में प्रक्रिया के दौरान भी सामने आया था, लेकिन तमिलनाडु ने अतीत में मौखिक रूप से कहा है कि इस पर बात नहीं की जानी चाहिए। जबकि पिछली राज्य सरकार ने परियोजना के संबंध में एक हलफनामा दायर किया था। परियोजना के लिए 1,000 करोड़ रुपये अलग रखे जाने के बावजूद काम शुरू नहीं हो सका है।
अशोक भाटिया,