जैनाचार्य प्रज्ञा सागर जी का मंगल प्रवेश : भक्ति, वैराग्य और भावनाओं से सराबोर हुआ प्रज्ञालोक
चातुर्मास है धर्म, संयम, साधना, आत्मबल और ज्ञान का केंद्र – आचार्य श्री प्रज्ञा सागर जी मुनिराज
कोटा। स्मार्ट हलचल/कोटा की पावन धरा रविवार को आध्यात्मिक और भावनात्मक क्षणों की साक्षी बनी, जब पर्यावरण संरक्षक, तपोभूमि प्रणेता और राजकीय अतिथि के रूप में सम्मानित जैनाचार्य 108 श्री प्रज्ञा सागर जी मुनिराज अपने सम्पूर्ण संघ (8 पिच्छी) सहित वर्षायोग (चातुर्मास) हेतु प्रज्ञालोक, महावीर नगर प्रथम में मंगल प्रवेश किया। शोभायात्रा मार्ग में पूज्य गणिनी आर्यिका 105 श्री विभा श्री माताजी ससंघ ने गुरूदेव आचार्य श्री प्रज्ञा सागर जी मुनिराज की अगवानी की और पादपक्षालन कर गुरू वंदना भी की।
अध्यक्ष लोकेश जैन सीसवाली ने बताया कि कार्यक्रम में ऊर्जामंत्री हीरालाल नागर, विधायक संदीप शर्मा, रेडक्रॉस के स्टेट चेयरमैन राजेश कृष्ण बिरला,स्टेट सेक्रेट्ररी जगदीश जिंदल, चेयरमैन यतीश खेड़ावाला, सकल समाज के परम संरक्षक राजमल पाटौदी, विमल जैन, विनोद सकल समाज अध्यक्ष प्रकाश बज व मंत्री पदम बड़ला, गुरु आस्था परिवार महामंत्री नवीन जैन दोराया एवं कोषाध्यक्ष अजय जैन सहित सकल जैन समाज हजारों की संख्या में उपस्थित रहा।
पावन अनुष्ठान एवं सम्मान समारोह
चेयरमैन यतीश जैन खेड़ावाला ने बताया कि कार्यक्रम में पंडाल उद्घाटनकर्ता कमला देवी, लोकेश जैन सीसवाली परिवार द्वारा दीप प्रज्ज्वलन, पाद प्रक्षालन, शास्त्र जी भेंट कर्ता कंचन देवी, जम्बू जैन, नरेन्द्र जैन दमदमा वाला परिवार रहा। इस अवसर पर अतिथियों, गुरु आस्था परिवार, सकल दिगंबर जैन समाज पदाधिकारियों ने गुरुदेव को श्रीफल भेंट किया।
संयम, साधना और आत्मबल का संदेश
आचार्य श्री प्रज्ञा सागर जी मुनिराज ने कहा कि चातुर्मास केवल चार महीनों का प्रवास नहीं, बल्कि यह आत्मिक अनुशासन, संयम, साधना और धर्म प्रभावना का पर्व है। उन्होंने कहा “हमें धर्म की प्रतिस्पर्धा नहीं, प्रभावना करनी चाहिए। समाज को जोड़ना, दिशा देना और स्वयं को संयम में रखना—यही चातुर्मास की सार्थकता है।”
आचार्य श्री ने प्रज्ञालोक में हो रहे चातुर्मास को “कोटा का चातुर्मास” बताते हुए कहा कि “यह स्थल पर एक ओर भगवान महावीर विराजित हैं और दूसरी ओर भगवान आदिनाथ, ऐसे में यह स्थान ‘प्रज्ञालोक’ बन गया है। यहां का चातुर्मास दिव्य और मंगलकारी होगा।”
शिक्षा और साधना पुनर्स्थापित
आचार्य श्री ने विशेष रूप से कोटा की गौरवशाली शैक्षणिक छवि पुराने वैभव में पुनर्स्थापित करने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा—”हम सभी माँ सरस्वती से प्रार्थना करें कि कोटा पुनः ज्ञान, शिक्षा और चरित्र निर्माण का प्रमुख केंद्र बने। लाखों छात्र यहां पढ़ने आएं और संयम, संस्कार और सेवा का भाव लेकर लौटें।”
उन्होंने कहा कि कोटा में 60 मंदिर हैं, हमें हर मंदिर में चातुर्मास के प्रयास करने चाहिए। कोटा में इस बार 21 पिच्छी का चातुर्मास हो रहा है, यह गौरव की बात है।
अनुशासन और आध्यात्म का संगम
महामंत्री गुरु आस्था परिवार नवीन जैन दोराया एवं अजय जैन ने बताया कि प्रज्ञालोक में चातुर्मास के दौरान प्रतिदिन की गतिविधियाँ अत्यंत सुव्यवस्थित और आध्यात्मिक उन्नयन हेतु निर्धारित की गई हैं।प्रातः 5:30 बजे: मंगल पाठ,6:00 बजे: योग कक्षा,7:15 बजे: अभिषेक,8:15 बजे: गुरुपूजन,9:00 बजे: मंगल प्रवचन,10:00 बजे: आहार चर्या,दोपहर 3:00 बजे: स्वाध्याय,सांय 7:00 बजे: धर्म प्रभावना,रात्रि 8:00 बजे: आनंद यात्रा,रात्रि 9:00 बजे: वैया वृत्ति होगी।
श्रद्धा का सैलाब, भक्ति की गूंज
चेयरमैन यतीश जैन खेड़ावाला ने बताया कि सुबह 7:30 बजे अन्नतपुरा से प्रज्ञालोक तक निकाली गई विशाल शोभायात्रा में राजस्थानी परंपरा के अनुरूप हाथी, ऊँट, घोड़े, बग्घियाँ, रथ, कच्ची घोड़ी नृत्य और बैंड-शहनाई की मधुर स्वर लहरियाँ वातावरण को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर रही थीं। शोभायात्रा में पुरुषों के साथ पारंपरिक परिधान में सजी महिलाएं भी उत्साह से सम्मिलित हुईं।
51 स्वागत द्वारों से सुसज्जित मार्ग
अध्यक्ष लोकेश जैन सीसवाली ने बताया कि शहर के मार्ग 51 स्वागत द्वारों से सुसज्जित किए गए थे। कच्ची घोड़ी बैंड की लय और उत्साह के साथ महिला-पुरुष श्रद्धालु जयकारे लगाते हुए आगे बढ़ते गए। मार्ग में गुरुदेव के स्वागत में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ पड़ी। कहीं श्रद्धालु पाद प्रक्षालन कर रहे थे, तो कहीं भक्त चरणों की धूल को मस्तक पर लगाते हुए धन्य हो रहे थे।
“जय जय गुरुदेव”, “गुरुदेव की जय हो” के गगनभेदी जयकारों से नगर गूंज उठा। अनेक स्थानों पर दण्डवत प्रणाम करते श्रद्धालुओं की आंखों में श्रद्धा के साथ भावुकता भी छलक रही थी। गुरुदेव के शोभायात्रा मार्ग में विभिन्न स्थानों पर पादप्रक्षालन किया गया।