योगी सरकार में शिक्षा विभाग की साख पर दाग!
शीतल निर्भीक
स्मार्ट हलचल रायबरेली जिले में सरकारी नौकरी पाने के लिए जालसाजी का एक सनसनीखेज मामला सामने आया है। परिषदीय विद्यालय की प्रधानाध्यापिका प्रज्ञा अवस्थी ने फर्जी दिव्यांग प्रमाणपत्र के आधार पर नौकरी हथिया ली, और वर्षों से विकलांगता भत्ता भी ले रही हैं। इतना ही नहीं, सरकारी शिक्षक होते हुए भी वह एलआईसी और एचडीएफसी स्वास्थ्य बीमा का व्यवसाय कर रही हैं। वहीं, उनके पति श्रीप्रकाश अवस्थी भी शिक्षक की नौकरी के साथ-साथ बीमा एजेंट बनकर मोटी कमाई कर रहे हैं। शिकायत के बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है, जिससे शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
शिकायतकर्ता यतीश सिंह ने इस मामले की शिकायत जिलाधिकारी और जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) से की थी। जांच के आदेश भी जारी हुए, लेकिन शिक्षिका के रसूख के आगे पूरा तंत्र लाचार नजर आ रहा है। डीएम और बीएसए ने दो बार मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) को शिक्षिका की दिव्यांगता की जांच के लिए पत्र भेजा, लेकिन सीएमओ ने मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया। खंड शिक्षा अधिकारी (बीईओ) राही ने भी पत्र और अनुस्मारक भेजे, लेकिन कोई असर नहीं पड़ा। ऐसा लग रहा है जैसे पूरा तंत्र शिक्षिका के प्रभाव में दबा हुआ है और जांच से बचने की कोशिश कर रहा है।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि सरकारी नौकरी में रहते हुए भी प्रज्ञा अवस्थी बीमा व्यवसाय में सक्रिय हैं, जो सरकारी सेवा नियमों का सीधा उल्लंघन है। उनके पति श्रीप्रकाश अवस्थी, जो खुद प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक हैं, भी इसी गोरखधंधे में शामिल हैं। दोनों मिलकर सरकार को चूना लगा रहे हैं और विभागीय अधिकारी मूकदर्शक बने बैठे हैं।
शिकायतकर्ता ने मांग की है कि शिक्षिका के फर्जी दिव्यांग प्रमाणपत्र और उनके बीमा व्यवसाय की निष्पक्ष जांच कराई जाए। इसके लिए किसी अन्य मेडिकल कॉलेज की टीम गठित कर शिक्षिका की दिव्यांगता की जांच होनी चाहिए, ताकि सच्चाई सामने आ सके। सवाल यह है कि जब जिलाधिकारी और बीएसए के आदेशों को भी नजरअंदाज किया जा रहा है, तो फिर आखिर कार्रवाई कौन करेगा?
यह मामला सिर्फ फर्जी प्रमाणपत्र से नौकरी पाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भ्रष्टाचार के उस गहरे दलदल को दिखाता है जिसमें शिक्षा और चिकित्सा विभाग तक फंसे हुए हैं। अगर ऐसे मामलों पर सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो यह भविष्य में और भी बड़े घोटालों का रास्ता खोल सकता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भ्रष्टाचार मुक्त शासन की नीति को खुली चुनौती देने वाले इस मामले में प्रशासन कब जागेगा, यह देखना दिलचस्प होगा!