राकेश मीणा
गंगापुर@स्मार्ट हलचल/अक्सर हम देखते है कि हिन्दू समाज में व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी अस्थियों को परिवार के लोग गंगाजी या हरिद्वार में विसर्जित करते है। लेकिन गांव_ सोप, तहसील_ नादौती, जिला_ गंगापुर सिटी निवासी सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. अशोक हरसी पटेल और उसके आदिवासी किसान पटेल परिवार के सदस्यों देवीसिंह पटेल, रामराज मीणा, राजेंद्र मीणा, धर्मेंद्र मीणा ने मिलकर अपने परिवार के सदस्य रामनिवास मीणा जी पुत्र श्री दुल्ली पटेल सोप, जो कि 19 नवंबर को प्रकृति में विलीन हो गए थे। उनकी अस्थियों को गंगाजी, हरिद्वार की जगह अपने खेतों में ही विसर्जित करने और उनकी याद में पांच पेड़ लगाने का साहसिक निर्णय लिया है।
परिवार के सदस्य, “पाखंडवाद मुक्त समाज” के संस्थापक और जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. अशोक हरसी पटेल सोप ने बताया कि काकाजी ने जीवनभर खेतो में काम किया, खेतो की मिट्टी में उनका खून पसीना मिला हुआ है, उनको खेती किसानी से बहुत लगाव था। उनके लिए खेतो से पवित्र दूसरी कोई जगह नहीं हो सकती और खुद काकाजी की भी अंतिम इच्छा थी कि मृत्यु के बाद उनकी अस्थियों को उन खेतों में ही विसर्जित किया जाए जिनमें मैने जीवनभर काम किया है अपने परिवार का पालन पोषण किया है।
मीणा ने बताया कि हम आदिवासी समाज से संबंध रखते है आदिवासी और प्रकृति का संबंध सदियों पुराना है प्रकृति जल, जंगल, जमीन, खेती_ किसानी को बचाने और कबीले को सदियों पुराने अंधविश्वास, पाखंड से मुक्ति दिलाने के लिए ये आदिवासी पटेल परिवार ने ये साहसिक और क्रांतिकारी निर्णय लिया है। जो आगे चलकर “पाखंडवाद मुक्त समाज” का मार्ग प्रशस्त करेगा।
डॉ अशोक हरसी पटेल सोप ने बताया कि आज हम जो कुछ भी है, इन खेतो की वजह से है हमारे पुरुखों और मां बाप ने इन खेतो में रात दिन मेहनत करके अपना खून पसीना बहाकर हमारे हाथों में कलम थमाई है। खेतो में पैदा हुए अन्न, जल से हमारा और समस्त मानव जाति का पेट पालन होता है। किसान कमेरे वर्ग के लिए उसके खेतो से पवित्र दुनिया में दूसरी कोई जगह नहीं हो सकती।
डॉ. अशोक पटेल ने बताया कि हमारा परिवार काफी लंबे समय से समाज सुधार के कार्य कर रहा।
काकाजी की अस्थियों को गंगाजी, हरिद्वार की जगह खेतो में विसर्जन करने का निर्णय किसी परम्परा के खिलाफ नहीं समाज में व्याप्त अंध विश्वास, पाखंडवाद के खिलाफ हैं। समाज में व्याप्त अंध विश्वास को खत्म कर पाखंडवाद मुक्त समाज का निर्माण करने के लिए ये साहसिक और क्रांतिकारी निर्णय लिया है।
मृत्यभोज एक सामाजिक अभिशाप है जिसे सरकार ने भी प्रतिबंध कर रखा है। हमने काकाजी की मृत्यु पर मृत्यभोज का पूर्ण बहिष्कार किया है। अस्थि विसर्जन और मृत्यभोज में फालतू पैसा खर्च करने से समाज की आर्थिक बर्बादी होती है। उस पैसे को पाखंड पर खर्च करने के बजाय परिवार और समाज के जरूरत मंद लोगों की शिक्षा पर खर्च किया जाए। क्योंकि शिक्षित और जागरूक व्यक्ति ही समाज को इन कुरीतियों, पाखंड से मुक्ति दिला सकते है।