Homeसोचने वाली बात/ब्लॉगशिक्षा और आधुनिकता की चमक के भीतर पलते आतंक के कुटिल चेहरे

शिक्षा और आधुनिकता की चमक के भीतर पलते आतंक के कुटिल चेहरे

विवेक रंजन श्रीवास्तव

स्मार्ट हलचल|इतिहास के पन्ने पलटें तो यह भ्रम टूट जाता है कि आतंकवाद किसी अनपढ़ की देन है । दुनिया ने दो दशक पहले वह दिन देखा था जब अमेरिका की धरती पर आकाश की ऊंचाइयों में उड़ते हवाई जहाज पढ़े लिखे जाहिल लोगों के हाथों ही मौत के औजार बन गए थे । वे युवक मशहूर विश्वविद्यालयों में पढ़े थे, तकनीकी ज्ञान रखते थे, पश्चिमी समाज को समझते थे और उसी समझ का सहारा लेकर उन्होंने उस समाज पर वार किया था जिसने उन्हें प्रगति के अवसर दिए थे। शिक्षा और आधुनिकता की चमक के भीतर छिपे कट्टरपन और कुटिलता ने दिखा दिया कि पढ़ा लिखा होना विवेक का पर्याय नहीं होता, बल्कि कभी कभी यह कट्टर मानसिकता को और अधिक सुसंगठित कर देता है।
आज उसी कट्टरपंथी इतिहास की धमक हमारे दरवाजे तक आ पहुंची है। दिल्ली में लाल किले के पास जो ब्लास्ट की वारदात हुई उसने यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि घर का दीपक भी आग फैला सकता है।
डॉक्टर, जो जीवनदाता माने जाते हैं, जिनके पास जाते हुए मरीज अपना भय किनारे रख देता है, जिनके सफेद कोट को पवित्रता की पहचान माना जाता रहा है, वही अगर सामाजिक विश्वास को भेदने लगें तो यह न केवल सुरक्षा व्यवस्था के लिए चुनौती है, बल्कि समाज की आत्मा के लिए भी पीड़ादायक है। ऐसी वारदात किसी एक व्यक्ति के अपराध से आगे बढ़कर व्यवस्था के भीतर छिपी उन दरारों का संकेत देती है जिनसे होकर कट्टर विचार मन में प्रवेश कर जाते हैं और धीरे धीरे किसी को ऐसी राह पर ले जाते हैं जहाँ वह अपनी शिक्षा और ज्ञान को विनाशकारी उद्देश्य में लगा देता है। जहां वह खुद अपनी जान की परवाह नहीं करता। दुनिया की सारी व्यवस्था इसी सिद्धांत पर आधारित है कि हरेक को उसकी जान प्यारी होती है। सारी बीमा योजनाएं भी इसी सिद्धांत पर निर्भर हैं।
यह मामला अधिक गंभीर इसलिए है क्योंकि पढ़े लिखे लोग जब कट्टर भावनाओं के बहाव में आ जाते हैं तो वे योजनाएं बनाते हैं, नेटवर्क तैयार करते हैं और अपनी योग्यता का दुरुपयोग करके उस गलत रास्ते को मजबूत करते हैं जिस पर हिंसा की फसल उगती है। शिक्षा उन्हें साधन देती है, लेकिन यदि मन विचलित हो जाए तो वही साधन विनाश के सूत्र बन जाते हैं। डॉक्टरों जैसे पेशेवरों के पास सामाजिक प्रतिष्ठा, आर्थिक सुरक्षा और ज्ञान की शक्ति होती है। इस कारण वे अपने आसपास के लोगों को भी प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। उनके भीतर कट्टरता का बीज यदि पनपता है तो यह साधारण अपराध की तुलना में कहीं अधिक घातक है। ऐसे लोगों के अपराध ज्यादा बड़े इसलिए माने जाने चाहिए क्योंकि वे समझ बूझ कर अपने कुटिल मकसद को अंजाम देते हैं।
वास्तविक समस्या यह है कि हम शिक्षा को केवल डिग्री तक सीमित मान बैठे हैं। हमने यह मान लिया कि ज्ञान का होना अपने आप में नैतिकता और विवेक का प्रमाण है। जबकि सच्चाई यह है कि मन के भीतर पैदा होने वाले खालीपन को कोई डिग्री नहीं भर सकती। जब पहचान खो जाती है, जब जीवन के तनाव दिशाहीन करते हैं, जब समाज से संवाद टूट जाता है, तब व्यक्ति ऐसे विचारों के लिए संवेदनशील हो जाता है जो उसे असंतोष का कोई झूठा समाधान देकर आकर्षित करते हैं। यही वह घड़ी होती है जहां आतंकवादी संगठन अपनी धूर्तता से ऐसे दिमागों को जाल में फंसाते हैं।
समाज को अब यह स्वीकार करना होगा कि रोकथाम केवल सुरक्षा एजेंसियों का काम नहीं है। विश्वविद्यालयों को ऐसे वातावरण की आवश्यकता है जहां विचारों की पारदर्शिता हो, जहां संवाद की संस्कृति जीवित रहे, जहां असहमति को शत्रुता न समझा जाए।
शिक्षा संस्थानों में नैतिकता और मानवीय संवेदनाओं को उतना ही महत्व मिलना चाहिए जितना तकनीकी कौशल को। डॉक्टरों, इंजीनियरों और अन्य पेशेवरों के लिए मानसिक स्वास्थ्य सहायता और नियमित संवाद सत्र आवश्यक हैं ताकि भीतर जमा तनाव कट्टर सोच की खाद न बन जाए।
धर्म और समुदाय के क्षेत्र में भी पारदर्शिता की जरूरत है। पुरानी धार्मिक किताबों की सही व्याख्या आवश्यक है। धार्मिक गुरुओं का यह दायित्व है कि वे अपने अनुयायियों में संवाद की रीति विकसित करें, जिज्ञासाओं को दबाने के स्थान पर उन्हें विवेकपूर्ण दिशा दें। समाज के भीतर ऐसे मंच विकसित होने चाहिए जहां व्यक्ति अपने मन की उलझनें खुले रूप में व्यक्त कर सके। कट्टरपंथ किसी धार्मिक तर्क से नहीं, बल्कि अकेलेपन, अवसाद, या उपेक्षा से जन्म लेता है।
एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि डिजिटल दुनिया ने कट्टरताओं को पंख दे दिए हैं। पढ़ा लिखा व्यक्ति तकनीकी दक्षता के कारण गलत सूचनाओं और उग्र विचारों के प्रभाव में तेजी से आ सकता है। इसलिए डिजिटल साक्षरता केवल तकनीक सीखना नहीं, बल्कि यह समझना भी होना चाहिए कि कौन सी सूचना हमें विवेक से दूर ले जा रही है और किस विचार के पीछे छिपा उद्देश्य हमारी पहचान को गलत दिशा में मोड़ रहा है।
समाज में पुनर्स्थापन की व्यवस्था भी होनी चाहिए ताकि यदि कोई व्यक्ति गलत राह पर चल पड़ा है, तो उसे केवल दंड नहीं, बल्कि वापस लौटने की संभावना भी दी जाए। भय से नहीं, बल्कि पुनर्निर्माण से ही व्यवस्था मजबूत होती है।
दिल्ली की घटना एक चेतावनी है कि आतंकवाद अपने रूप बदल रहा है। अब वह वंचितों या हिंसा को पेशा बनाने वालों तक सीमित नहीं रहा। वह सम्मानित पेशों के भीतर भी घुस सकता है, उनके रूप में छिप सकता है और समाज के विश्वास को हथियार बना सकता है। इसीलिए हमें अपने घर, अपने शिक्षण संस्थानों और अपने समाज की उन दरारों को पहचानना होगा जिनसे होकर कट्टरता भीतर प्रवेश करती है।
तब ही हम उस भविष्य को सुरक्षित रख सकेंगे जहाँ डॉक्टर अस्पतालों में जीवन बचाते हुए दिखें, न कि विस्फोटक योजनाओं में संलिप्त हो। शिक्षा को ज्ञान का दीपक तब ही माना जा सकेगा जब उसके साथ मन का उजाला भी जुड़ा हो।

स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर 31 जनवरी 2025, Smart Halchal News Paper 31 January 2025
स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर 31 जनवरी 2025, Smart Halchal News Paper 31 January 2025
news paper logo
RELATED ARTICLES