बीस साल से खुद रही है तलाइया, करोड़ों का रुपए श्रम कार्य,
बूंदी/झालावाड़- स्मार्ट हलचल|पूर्व प्रधानमंत्री मन मोहन सिंह की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 2 फरवरी 2006 में इस उद्देश्य को लेकर मनरेगा योजना शुरू की थी ग्रामिण क्षैत्रो में रहने वाले लोगौ को सौ दिन का रोजगार प्राप्त हो, जिससे वे अपने परिवार का पालन पोषण कर सके। किन्तु यह जनहितकारी योजना पंचायत राज विभाग के अधिकारीयों व पंचायत राज विभाग के जनप्रतिनिधियों का निवाला बन कर रह गयी है। योजना का लाभ ग्रामीणों व किसानों तक नहीं पहुंच पा रही है।
यह कहने में कोई शंका नहीं है जिले की दो सौ चव्वन ग्राम पंचायतों में मनरेगा योजना में भ्रष्टाचार है। करोड़ों ,अरबों रुपए का गबन है, लेकिन ना तो सरकार की इस भ्रष्टाचार को रोकने की कोई दिलचस्पी है, ना ही प्रशासन से यह अपेक्षा की जाती सकती है की वो पंचायती राज विभाग में चल रहे घोटाले की जांच करवाएगी, क्योंकि मोटा माल उनकी तिजोरी तक जा रहा है। प्रदेश में मदन दिलावर के मंत्री बनने के बाद आशा बनी थी। योजना का लाभ ईमानदारी से लाभार्थियों को मिलेगा लेकिन वो भी पिछले दो सालों में फिसड्डी साबित हुए। फिर झालावाड़ जिला तो अलग माना जाता है यहां किसी की हुकूमत नहीं चलती।
इकलेरा पंचायत समिति में एक ग्राम पंचायत है नयापुरा कहने को तो दुबारा विधायक बने हैं गोविन्द रानीपुरिया जिनकी गृह ग्राम पंचायत नयापुरा है, जिसमें लाखों रुपए का ग्रेवल में हेर फेर हुई है। जिसके समाचार पुर्व में प्रकाशित किये थे,लेकिन न तो विकास अधिकारी ना ही जिला परिषद के कार्यकारी अधिकारी ने जांच के आदेश दिए। अब सरकार के ऑनलाइन सिस्टम में देखें तो ग्राम विकास अधिकारी व सरपंच ने मिली भगत कर तलाईयो के नाम पर करीब अस्सी बिलों के माध्यम से लगभग एक करोड़ रुपए का मात्र सामग्री का भुगतान उठाया है। यह तो ठिक मान लिया जाय तो भी इससे चार गुणा पांच गुणा राशि कम से कम पांच करोड़ रुपए श्रम कार्य भी दी होगी, इसके अतिरिक्त लाखों रुपए का श्रम कार्य का भी भुगतान हुआ है ,सौ फिसदी फर्जी वाड़ा है ,एस ओ जी या अन्य बड़ी एजेंसी जांच कर तो इतनी बड़ी राशि से पंचायत के प्रत्येक ग्राम में एक बड़ा जलाशय बनाया जा सकता है। जब पांच साल में सरपंच व ग्राम विकास अधिकारी ने कई तलाइयों विकसित कर रोजगार दिया है तो सन् दो हजार छः से दो हजार बीस तक याने पन्द्रह साल की तलाइयां कहा गई। उच्च स्तरीय जांच समिति का जांच करना भी इसलिए जरूरी है कि विगत छः सालों में नरेगा योजना में आठ आठ सौ श्रमिकों प्रतिदिन कार्य करना बताया है फोटो से फोटो खींचकर मस्टररोल चलाई जा रही है। राशि को दो सौ पचास रुपये प्रति श्रमिक की जोड़े तो एक दिन की करीब दो लाख होती है। सालभर व पांच साल की जोड़े तो आंखें खुली रह जायेंगी। यह कोई हवा में समाचार नहीं बल्कि सरकारी सिस्टम में है प्रमाण ऑनलाइन सिस्टम में है।
सवाल यह उठता है विधायक रानी पुरिया इस घोटाले को क्यों नहीं रोक पा रहे हैं। विकास अधिकारी ने अभी तक मस्टररोल जीरो कर पुर्व में चली फर्जी मस्टर रोल की भुगतान वसूली की कार्यवाही क्यों नहीं की।


