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देश की पहली स्वदेशी मलेरिया वैक्सीन तैयार,बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए एक प्राइवेट कंपनी के साथ साझेदारी की जाएगी

नई दिल्ली। मलेरिया की एक नई वैक्सीन उम्मीद की नई किरण दिखाती है। अफ्रीकी बच्चों पर इस टीके के फेज 2बी के क्लीनिकल ट्रायल किए गए। अंतरिम परिणाम बताते हैं कि वैक्सीन सुरक्षित और मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता पैदा करने के साथ आशाजनक प्रभावकारिता से लैस है।

दरअसल, आरएच 5.1/मैट्रिक्स-एम नामक इस वैक्सीन के परीक्षण के नतीजे द लैंसेट इंफेक्शस डिजीजेज में प्रकाशित हुए हैं। वैक्सीन ब्लड-स्टेज टाइप है, यानी जब मलेरिया की वजह बनने वाला पैरासाइट खून में मौजूद होता है, यह वैक्सीन उसे निशाना बनाती है।

भारत ने मलेरिया के खिलाफ बड़ी सफलता हासिल की है। देश की पहली स्वदेशी मलेरिया वैक्सीन अब तैयार हो गई है। इस वैक्सीन को आईसीएमआर ने विकसित किया है। अब इसके बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए एक प्राइवेट कंपनी के साथ साझेदारी की जाएगी। यह वैक्सीन आने वाले समय में लाखों लोगों की जान बचाने में मददगार साबित होगी। खासकर उन इलाकों में जहां मलेरिया अब भी एक बड़ी समस्या है। दरअसल, अब भारत में डेंगू से पहले मलेरिया का खात्मा होगा। भारतीय वैज्ञानिकों ने मलेरिया रोग के खिलाफ पहला स्वदेशी टीका तैयार कर लिया है जो न केवल संक्रमण बल्कि उसके समुदाय में प्रसार पर भी रोक लगाने में सक्षम है।  इस टीके के जल्द से जल्द उत्पादन के लिए नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने प्राइवेट कंपनियों के साथ समझौता करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। आईसीएमआर ने जानकारी दी है कि मलेरिया टीका की खोज पूरी कर ली है। इसे फिलहाल एडफाल्सीवैक्स नाम दिया है, जो मलेरिया परजीवी प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम के खिलाफ पूरी तरह असरदार पाया गया है। आईसीएमआर और भुवनेश्वर स्थित आरएमआरसी के शोधकर्ताओं ने मिलकर यह स्वदेशी टीका तैयार किया है।

करीब 800 रुपए तक प्रति खुराक

आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. राजीव बहल ने बताया कि मौजूदा समय में मलेरिया के दो टीके उपलब्ध हैं जिनकी कीमत करीब 800 रुपए तक प्रति खुराक है। हालांकि इनका असर 33 से 67 फीसदी के बीच है। इसके अलावा आॅक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से भी मंजूर आरटीएस और आर21/मैट्रिक्स-एम टीका दुनिया के कुछ देशों में दिया जा रहा है। इनकी तुलना में भारत का यह टीका पूर्व रक्ताणु यानी रक्त में पहुंचने से पहले के चरण और ट्रांसमिशन-ब्लॉकिंग यानी संक्रमण प्रसार को रोकने में दोहरा असर दिखाती है।

अध्ययन में बेहद असरदार साबित

अभी तक मलेरिया के इस स्वदेशी टीका पर पूर्व-नैदानिक सत्यापन हुआ है जिसे आईसीएमआर के नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान और राष्ट्रीय प्रतिरक्षा विज्ञान संस्थान (एनआईआई) के साथ मिलकर पूरा किया है। आरएमआरसी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सुशील सिंह ने बताया कि भारत का यह स्वदेशी टीका संक्रमण को रोकने वाले मजबूत एंटीबॉडी बनाता है। उन्होंने यह भी कहा कि 2023 में वैश्विक स्तर पर मलेरिया के 26 करोड़ अनुमानित मामले दर्ज हुए जो 2022 की तुलना में एक करोड़ मामलों की वृद्धि है।

देश के मलेरिया प्रभावित राज्य

मध्य प्रदेश: यहां के कुछ जिलों में मलेरिया के मामले अधिक हैं। विशेष रूप से ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में, मलेरिया के मामले अधिक पाए जाते हैं।

छत्तीसगढ़: यह राज्य देश में मलेरिया के मामलों में शीर्ष पर है। यहां की घनी वनस्पति और आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच सीमित होने के कारण मलेरिया का प्रकोप अधिक है।

ओडिशा: ओडिशा में भी मलेरिया के मामलों की संख्या अधिक है, विशेषकर आदिवासी बहुल क्षेत्रों में। राज्य सरकार ने मलेरिया मुक्त अभियान चलाया है, लेकिन चुनौतियां बनी हुई हैं।

झारखंड: झारखंड के दूरदराज के इलाकों में मलेरिया के मामले अधिक हैं। स्वास्थ्य सेवाओं की सीमित पहुंच और जागरूकता की कमी इसके प्रमुख कारण हैं।

गुजरात: गुजरात के कुछ हिस्सों में भी मलेरिया के मामले सामने आए हैं, हालांकि राज्य सरकार ने इसके नियंत्रण के लिए प्रयास किए हैं।

शोधकर्ताओं ने किया अध्ययन

यूके स्थित आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और बुर्किना फासो के इंस्टीट्यूट डी रिसर्च एन साइंसेज डे ला सैंटे के शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन में अफ्रीकी देश के 361 बच्चों को शामिल किया। इन्हें या तो आरएच5.1/मैट्रिक्स-एम वैक्सीन की तीन खुराकें या रेबीज नियंत्रण वैक्सीन दी गईं। खुराक देने की दो प्रणाली अपनाई गईं। पहली प्रणाली में दूसरी खुराक के चार माह बाद तीसरी खुराक दी गई। जबकि दूसरी प्रणाली मासिक थी, जिसमें दूसरी खुराक के एक माह बाद तीसरी खुराक दी गई।

वैक्सीन की प्रभावशीलता 55 प्रतिशत

पहली यानी देरी वाली प्रणाली में बच्चों में वैक्सीन की प्रभावशीलता या असर 55 प्रतिशत पाया गया, जबकि दूसरी या मासिक प्रणाली में यह 40 प्रतिशत मिला। अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि पहली प्रणाली में बच्चों में एंटीबाडीज और प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के ऊंचे स्तर देखने को मिले। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बच्चों के लिए मलेरिया के दो टीकों- आरटीएस,एस/एएस01 और आर21/मैट्रिक्स-एम की सिफारिश की है और ये टीके लिवर में मौजूद मलेरिया पैरासाइट को निशाना बनाते हैं।

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