अशोक भाटिया
स्मार्ट हलचल/पढ़ाई के लिए विदेश जाने वाले छात्रों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि चिंता का विषय है। सबसे ज्यादा चिंता इस बात की है कि इससे देश के समक्ष युवा शक्ति के पलायन की समस्या बढ़ रही है। इससे उद्योग-धंधों के लिए श्रम शक्ति की कमी की समस्या भी आ सकती है। इसके अलावा, देश की बहुमूल्य विदेशी मुद्रा विदेशों में जा रही है। यूक्रेन युद्ध में भारतीय छात्र फंसे तो नेताओं को पता चला कि इतने सारे भारतीय छात्र मेडिकल की पढ़ाई करने विदेश जाते हैं। उसके बाद मुख्यमंत्रियों से लेकर प्रधानमंत्री तक ने हैरानी जताई। इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि भारत से हरेक साल बड़ी संख्या में विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने के अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया आदि देशों में क्यों चले जाते हैं? यह सवाल कनाडा में जो भारत को लेकर हो रहा है उस रोशनी में पूछ जाना चाहिए। वहां जो कुछ भी घटित हो रहा है उससे पहले ही भारतीयों के साथ हिंसा के मामले सामने आने के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय अधिक जाग चूका है और अब विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था कि इजराइल में फिलहाल करीब 18 हजार भारतीय जबकि वेस्ट बैंक में करीब एक दर्जन और गाजा में तीन से चार भारतीय रह रहे हैं। जब यहाँ छात्र किसी कारण से फंसते है तो भारत सरकार को ‘एयर -लिफ्ट ‘का सहारा लेना पड़ता है जो परेशानी भरा होता हैं ।
बताया जाता है कि पिछले कुछ वर्षों से भारत से विदेशों में जाकर शिक्षा प्राप्त कर वहीं बसने की आकांक्षा का क्रेज़ बढ़ता जा रहा है। केन्द्र सरकार के अनुसार वर्ष 2016 और 2021 के बीच 26।44 लाख भारतीय विद्यार्थी विदेशों में पढ़ने के लिए गए। एसोसिएटेड चेम्बरर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) का अनुमान है कि वर्ष 2020 में 4.5 लाख भारतीय विद्यार्थी विदेशों में शिक्षा प्राप्त करने गए और उन्होंने 13.5 अरब डालर का खर्च किया।
वर्ष 2022 में यह खर्च 24 अरब डालर यानि लगभग 2 लाख करोड़ रूपए रहा और रेडसियर स्टार्टेजी कन्स्लटेंट की रिपोर्ट के अनुसार 2024 तक यह खर्च 80 अरब डालर यानि 7 लाख करोड़ रूपए तक पहुंच सकता है, जब अनुमानित 20 लाख भारतीय विद्यार्थी विदेशों में पढ़ने के लिए जाएंगे। केन्द्रीय मंत्री बी। मुरलीधरन ने 25 मार्च 2022 को लोकसभा को सूचित किया किया था कि वर्तमान में 13 लाख भारतीय विद्यार्थी विदेशों में पढ़ रहे हैं। यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। सरकार के इस वक्तव्य के अनुसार वर्ष 2021 में 4।44 लाख विद्यार्थी विदेशों में पढ़ने गए। एक अन्य सरकारी वक्तव्य के अनुसार नवंबर 30, 2022 तक विदेशों में पढ़ने जाने वाले विद्यार्थियों की संख्या 6।46 लाख थी, यानि 45 प्रतिशत की वृद्धि।
यदि राज्यवार ब्यौरा देखें तो वर्ष 2021 तक विदेशों में पढ़ने जाने वाले विद्यार्थियों में 12 प्रतिशत पंजाब से, 12 प्रतिशत से ही आंध्र प्रदेश से और 8 प्रतिशत गुजरात से थे। अगर युवाओं की कुल संख्या के अनुपात में देखा जाए तो पंजाब से प्रत्येक हजार में से 7 युवा, आंध्र प्रदेश में प्रति हजार में 4 युवा और गुजरात से प्रति हजार में से कम से कम 2 युवा विदेशों में हर साल पढ़ने जा रहे हैं। यदि वर्ष 2016 से 2022 के संचयी संख्या लें तो स्थिति काफी भयावह दिखाई देती है। पंजाब में यह संख्या 50 प्रति हजार, आंध्र प्रदेश में 30 प्रति हजार और गुजरात में 14 प्रति हजार है।
विदेशों में पढ़ने जाने वाले विद्यार्थियों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि के कारण देश की बहुमूल्य विदेशी मुद्रा विदेशों में जा रही है। ऐसा देखने में आ रहा है कि उनके माता-पिता अपनी परिसंपत्तियों को बेचकर इन युवाओं को विदेशों में पढ़ने के लिए भेज रहे हैं। एक समय था कि विदेशों में रह रहे भारतीयों के माध्यम से पंजाब के गांवों में बड़ी मात्रा में विदेशों से धन आता था। विदेशों में पढ़ाई के इस क्रेज़ के चलते यह प्रक्रिया उलट हो गई है, यानि अब विदेशों से धन आने के बजाय विदेशों को धन भेजा जा रहा है। ऐसे में जब वर्ष 2024 के अंत तक विदेशों में पढ़ने जाने वाले विद्यार्थियों की संख्या 20 लाख और उनके द्वारा खर्च की जाने वाली राशि 80 अरब डालर पहुंच जाएगी, तो यह देश के लिए अत्यंत संकटकारी स्थिति का कारण बनेगा।
गौरतलब है कि युवाओं का शिक्षा के लिए विदेशों में पलायन, देश में शिक्षा सुविधाओं की कमी की वजह से नहीं है। वास्तव में देश में पिछले दो-तीन दशकों में शिक्षा के क्षेत्र में भारी प्रगति हुई है। यदि उच्च शिक्षा में विद्यार्थियों का प्रवेश देखें तो 1990-91 में जहां मात्र 49.2 लाख विद्याार्थियों ने उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश लिया, यह संख्या वर्ष 2020-21 में 414 लाख तक पहुंच गई। मोटेतौर पर उच्च शिक्षा में प्रवेश लेने वाले विद्याार्थियों की संख्या पिछले 30 वर्षों में 10 गुणा से भी ज्यादा हो चुकी है। यदि उच्च शिक्षा संस्थानों की बात की जाए तो देखते हैं कि वर्ष 2021 में देश में 1113 विश्वविद्यालय और समकक्ष संस्थान, 43796 महाविद्यालय और अन्य स्वतंत्र संस्थान 11296 थे। इसी वर्ष देश में उच्च शिक्षा संस्थानों में 15।51 लाख शिक्षक कार्यरत थे।
देश में कई विश्वविद्यालय केन्द्रीय विश्वविद्यालय हैं और कई अन्य राज्य स्तरीय विश्वविद्यालय हैं। इसके अलावा बड़ी संख्या में निजी विश्वविद्यालय हैं और कई ‘विश्वविद्यालय सम’ यानि ‘डीम्ड विश्वविद्यालय’ हैं। देश में कई विश्वस्तरीय प्रबंधन एवं इंजीनियरिंग संस्थान हैं, जिनसे शिक्षा प्राप्त विद्यार्थी वैश्विक कंपनियों में उच्च पदों पर आसीन हैं।
जहां तक शिक्षा संस्थानों में प्रवेश के लिए फीस का सवाल है, अधिकांश भारतीय शिक्षा संस्थानों में फीस विदेशी संस्थानों में फीस से कहीं कम है और जिन विदेशी संस्थानों में भारतीय युवा प्रवेश ले रहे हैं, उनमें से अधिकांश का स्तर अत्यंत नीचा है।
तो सवाल उठता है कि भारी भरकम राशि खर्च कर भारत के युवा विदेशी शिक्षा संस्थानों में प्रवेश क्यों लेते हैं। इसका सीधा उत्तर यह है कि विदेशों में जाने वाले अधिकांश विद्यार्थी उच्च स्तरीय शिक्षा में प्रवेश लेकर वास्तव में कोई उच्च स्तरीय डिग्री प्राप्त करने के लिए जाते हैं, ऐसा नहीं है। आस्ट्रेलिया, कनाडा, और यहां तक कि इंग्लैंड समेत अन्य यूरोपीय देशों में जाने वाले भारतीय विद्यार्थियों का वास्तविक लक्ष्य शिक्षा प्राप्त करना नहीं, बल्कि वहां रोजगार प्राप्त करना है। लेकिन भारतीय युवा यह समझने के लिए तैयार नहीं है कि इन देशों में भी रोजगार की भारी कमी है। कई देशों में वहां के स्थानीय लोग भारतीय एवं अन्य देशों से आने वाले युवाओं के खिलाफ हिंसा की वारदातें भी देखने को मिल रही हैं। देश से जाने वाले अधिकांश युवा विद्यार्थी वहां रोजगार प्राप्त करने में असफल हो रहे हैं और उन्हें स्वदेश वापिस लौटना पड़ता है, जिसके कारण वे भारी कुंठा का भी शिकार हो रहे हैं।
चूंकि व्यक्तिगत तौर पर विदेशों में जाने वाले युवा विद्यार्थी, पूर्व में विदेशों में जाने वाले भारतीयों की सफलता की गाथाओं से प्रभावित होकर विदेशों की ओर रूख कर रहे हैं। लेकिन वे यह समझ नहीं पा रहे कि आज कनाडा, आस्ट्रेलिया और यूरोपीय देशों में, जहां वे शिक्षा संस्थानों में प्रवेश ले रहे हैं, वे शिक्षा संस्थान स्वयं के आस्तित्व को बचाने हेतु भारतीय विद्यार्थियों को आसानी से अपनी शिक्षण संस्थानों में प्रवेश दे रहे हैं। यही नहीं भारतीय और अन्य देशों के अति इच्छुक विद्यार्थियों से भारी फीस ऐंठने हेतु शिक्षा की कई दुकानें भी खुल रही हैं, जिनका वास्तविक शिक्षा से कोई सरोकार नहीं है।
ऐसे में केन्द्र और राज्य सरकारों को विदेशों में शिक्षा प्राप्त करने के इच्छुक युवाओं को इस हेतु वास्तविकता से अवगत कराने के लिए विशेष प्रयास करने की जरूरत है, ताकि वे विदेशों में जाकर अपने माता-पिता की गाढ़ी कमाई को यूं ही न गवा दें। गौरतलब है कि पिछले लगभग दो दशकों से भारत के कई नागरिक एजेंटों के माध्यम से विदेशों में, ख़ास तौर पर खाड़ी के देशों में रोजगार की तलाश में गए और वहां उन्हें कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ा। इन युवाओं के पासपोर्ट तक एजेंटों के द्वारा कब्जा लिए जाते थे और उनका तरह-तरह से शोषण भी किया जाता था। उन्हें अत्यंत अमानवीय परिस्थितियों में रहना पड़ता था, ऐसे में भारत सरकार द्वारा विविध प्रकार के प्रयासों से समझाने की कोशिश की गई और सरकार ने एजेंटों के पंजीकरण को अनिवार्य किया और विदेशों में जाने वाले भारतीयों के हित संरक्षण के लिए विभिन्न प्रकार के प्रयास भी किए।इसी तर्ज पर देश के अनभिज्ञ युवा जो विदेशों में शिक्षा के नाम पर ठगे जा रहे हैं, उन्हें इस समस्या से बचाने के लिए सरकार को प्रयास करने होंगे। समाज के प्रबुद्ध वर्ग को भी इस हेतु आगे आना होगा। भारत में शिक्षा का स्तर आस्ट्रेलिया या कनाडा जैसे देशों के बराबर बनाना होगा ताकि हमारे विद्यार्थियों को किसी अन्य देश में जाने की नौबत ही न आए!