गोगुन्दा 12 अगस्त
स्मार्ट हलचल/धर्म जीवन के अभ्युदय का एक साधन है।धर्म व्यक्ति को अपने आप में जोड़ता है।जो अपने आप से जुड़ा है,वह जीवन मे पूर्णतः प्रमाणिकता एवं नीति सम्म्मतता के साथ चलता है।यह विचार श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावकसंघ महावीर जैन गौशाला के स्थानकभवन में चातुर्मास कर रहे जिनेन्द्रमुनि मसा ने व्यक्त किये।संत ने कहा कि धार्मिक व्यक्ति क्रूर अथवा स्वार्थो का संपोषक नही होता।जो व्यक्ति अपने निजी स्वार्थों की सम्पूर्ति के लिए शोषक बनकर किसी के लिए घातक बन जाता है,वह धार्मिक होने की कसौटी पर खरा नही उतरता है।जिसके जीवन मे धर्म समाविष्ट हो गया ,वह एक विशिष्ट व्यक्तित्व का धारक होता है।उसकी प्रत्येक प्रवृति में लोकमंगल पुष्ट होता है।संत ने कहा धर्म कभी भी विकृतियों का पोषण नही करता।मुनि ने कहा दूध मीठा होता है।दूध की जो मिठास है,उसमें सुई की नोंक भर भी संशय नही है,पर उसे यदि कड़वी तुम्बी में रखा जाएगा तो वह खराब होगा ही।हमारी कथनी और करनी की एकरूपता अपेक्षित है।मुनि ने कहा किसके जीवन मे धर्म साधना की सुवास है ,वही जीवन सफलता की कसौटी पर खरा उतरता है।जिसमे प्रमाणिकता है,वही सच्चे अर्थों में धार्मिक है।प्रवीण मुनि ने कहा कि जो लोग अधर्म में समय बर्बाद कर देते है,उसका जीवन निरर्थक है।समय को निरर्थक रूप से व्यतीत न करना विवेक सम्मत दृष्टिकोण है।रितेश मुनि ने कहा कि जब अत्यंत पुण्योदय होता है,तब मनुष्य जन्म प्राप्त होता है।यह तो निर्विवाद सत्य है कि हमारा पुण्य उत्कृष्ट है,इसलिए मनुष्य का जन्म प्राप्त हुआ है। हमारे जीवन का धैर्य अधर्म नही,परन्तु धर्म है।धर्म त्याग और सदाचार ही हमे पशुत्व से अलग करता है।मुनि ने कहा कि भौतिकता के अंबार खड़ा कर देना जीवन का लक्ष्य नही है।जीवन मे धर्म अध्यात्म की सुवास है,वही जीवनधर्म और अध्यात्म का होना नितांत आवश्यक है।आज के भौतिकवादी युग मे मनुष्य ने भौतिक दृष्टि से काफी प्रगति की है,परन्तु इतना होने के बावजूद उसके जीवन मे सुख चैन और मानसिक शांति नही है।