दिलखुश मोटीस
सावर(अजमेर)@स्मार्ट हलचल|बीसलपुर बांध परियोजना की भराव क्षमता बढ़ाने का प्रस्ताव अब सरकार के लिए चुनौती बनता नजर आ रहा है। अजमेर, टोंक और भीलवाड़ा जिलों के ग्रामीण अंचलों में इस फैसले के खिलाफ जबरदस्त जनाक्रोश फूट पड़ा है। देवली उपखंड कार्यालय के बाहर प्रभावित गांवों का अनिश्चितकालीन धरना शुक्रवार को चौथे दिन भी पूरी ताकत और एकजुटता के साथ जारी रहा, जहां सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी हुई और आंदोलन को और तेज करने की रणनीति बनी।
धरना स्थल से उठ रही आवाज अब साफ शब्दों में दिखाई दे रही है—
“विकास के नाम पर उजाड़ बर्दाश्त नहीं, पहले अधूरे पुनर्वास का हिसाब दो!”
चार दिनों से लगातार जारी इस आंदोलन ने प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को दिखा दिया है कि ग्रामीण अपनी मांगों के प्रति पूरी तरह गंभीर और संगठित हैं।
गांव-गांव से उमड़ा जनसैलाब, देवली बना आंदोलन का केंद्र
कालेड़ा कंवरजी के सरपंच अर्पित जोशी ने बताया कि अजमेर जिले के पाड़लिया, नापाखेड़ा, चांदथली, कालाखेत सहित दर्जनों गांवों से रोजाना सैकड़ों ग्रामीण देवली पहुंचकर धरने को मजबूती दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि भराव क्षमता बढ़ाने का फैसला सीधे-सीधे किसानों की जमीन, घर और पीढ़ियों की मेहनत पर हमला है, जिसे ग्रामीण किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेंगे।
भराव यथावत रखने पर अडिग संघर्ष समिति
नापाखेड़ा निवासी एवं बीसलपुर बांध विस्थापन संघर्ष समिति के सदस्य सतीश वर्मा ने सरकार की नई पुनर्वास नीति पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि ईआरसीपी कैनाल से बीसलपुर बांध जुड़ने के बाद पेयजल और सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध रहेगा, ऐसे में भराव क्षमता बढ़ाने का कोई औचित्य नहीं है।
अधूरे पुनर्वास की टीस आज भी जिंदा
धरने में संघर्ष समिति ने वर्षों से लटके मुद्दों को जोरदार तरीके से उठाया।
अधूरी पुनर्वास कॉलोनियां,
छूटी हुई संपत्तियों का मुआवजा,
लंबित भूमि आवंटन,
चालान जमा न कर पाने वालों को भूमि से वंचित रखना,
और वंचित विस्थापितों के लिए तिथि विस्तार—
इन सभी मामलों को ग्रामीणों की सच्ची पीड़ा का सबूत बताया गया।
ग्रामीणों ने डूब क्षेत्र में गई कृषि भूमि के बदले समान कृषि भूमि और नहर से सिंचाई पानी की ठोस गारंटी की मांग भी दोहराई।
68 गांवों की एकजुट हुंकार, विधायकों तक पहुंचा विरोध
संघर्ष समिति के अध्यक्ष मुकुट सिंह राणावत ने बताया कि अजमेर, टोंक और भीलवाड़ा जिलों के 68 गांवों के ग्रामीणों ने एकजुट होकर जनप्रतिनिधियों को ज्ञापन देने का फैसला लिया है।
इसी कड़ी में केकड़ी विधायक शत्रुघ्न गौतम को भी भावनात्मक खत भेजा गया है, जिसमें विस्थापितों की पीड़ा, आशंकाएं और मांगें विस्तार से रखी गई हैं।
ग्रामीणों ने विधायक से आग्रह किया है कि वे विधानसभा में इस मुद्दे को मजबूती से उठाएं और सरकार से बीसलपुर बांध परियोजना की भराव क्षमता बढ़ाने का फैसला वापस लेने की कोशिश करें।
धरना स्थल से उठती आवाज अब सिर्फ नारा नहीं, आंदोलन का प्रतीक बन चुकी है—
“पानी चाहिए, पर उजाड़ नहीं; विकास चाहिए, पर विस्थापन नहीं!”


