आचार्य विद्यासागर महाराज की गुरु गौरव गाथा पर हुआ नाटिका मंचन
रणवीर सिंह चौहान
स्मार्ट हलचल/भवानी मंडी|भवानीमंडी में दशलक्षण महापर्व पर दिगंबर जैन समाज के बालिका मंडल व पाठशाला के बच्चों द्वारा आचार्य विद्यासागर महाराज के जीवन पर आधारित गुरु गौरव गाथा की नाटिका का मंचन किया गया, बालक बालिकाओं ने आचार्य विद्यासागर के जन्म से पूर्व की घटनाओं से लेकर उनके आचार्य पद धारण कर दीक्षा देने की गाथा को जीवंत रूप में नाटिका के माध्यम से प्रस्तुत किया, जिसका निर्देशन सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रभारी रमन जैन व रानी जैन द्वारा किया गया। दिगंबर जैन समाज अध्यक्ष विजय जैन जूली ने बताया कि दशलक्षण महापर्व के अंतर्गत नगर में विराजित मुनिद्वय निष्पक्षसागर व निस्पृहसागर महाराज के सानिध्य में प्रतिदिन धर्मगंगा बह रही है, महापर्व के चौथे दिन उत्तम शौच धर्म के अवसर पर समाजजनों द्वारा भक्ति भाव से श्रीजी की संगीतमय पूजा अर्चना की गई जिसमें महाआरती का लाभ अशोक जैन सरावगी परिवार, शांतिधारा का लाभ संजय पाटनी परिवार व सुनील सांवला परिवार, शास्त्र भेंट का लाभ अशोक जैन सरावगी परिवार, अमित जैन परिवार, सुधीर जैन श्रीमाल परिवार, चेतन जैन परिवार आरटीएम, प्रमोद जैन परिवार सागर द्वारा लिया गया। जिसके पश्चात मुनि निष्पक्षसागर महाराज व मुनि निस्पृहसागर महाराज की मंगल देशना व आहारचर्या संपन्न हुई, दोपहर में मुनि निस्पृहसागर महाराज के सानिध्य में आचार्य उमास्वामी महाराज की कालजयी कृति तत्वार्थ सूत्र का वाचन व स्वाध्याय करवाया गया। संध्याकाल में प्रतिक्रमण व भक्ति से ओतप्रोत कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।
इच्छा तो स्वर्ग जाने की फुर्सत मंदिर जाने तक की नहीं : मुनि निष्पक्षसागर महाराज
मुनि निष्पक्षसागर महाराज ने अपनी मंगल देशना में बताया कि दशलक्षण महापर्व का चतुर्थ दिवस पवित्रता को लेकर आया है, आंतरिक निर्मलता का भाव ही शौच धर्म है। संतोष भाव से स्वयं को अलंकृत करने से ही निर्मलता आएगी, लोभ से संपूर्ण अच्छाइयों का नाश हो जाता है, बहुत अधिक अपेक्षाएं होना लोभ का प्रथम लक्षण है, सब की इच्छा तो स्वर्ग जाने की है लेकिन फुर्सत घर से मंदिर आने तक की नहीं है। यदि मुनि नहीं बन सकते तो कम से कम संतोषी ही बन जाओ, शरीर साथ छोड़ देता है लेकिन इच्छाएं साथ नहीं छोड़ती, हम जो पाते हैं वह भाता नहीं जो भाता है वह पाते नहीं इसलिए जीवन में सुख साता नहीं है हम इस धरती पर निवासी बनकर नहीं प्रवासी बनकर आए हैं, सभी को एक दिन जाना है।
एक अभियान इंसानों के मन की स्वच्छता के लिए भी चलाना चाहिए : मुनि निस्पृहसागर महाराज
मुनि निस्पृहसागर महाराज ने अपनी मंगल देशना मे बताया कि जहां लाभ होता है वहां लोभी स्वंय तैयार होता है, हमारे भीतर में मौजूद गंदगी का मुख्य कारण हमारा मन और तन के प्रति मोहभाव है। आध्यात्मिकता की शुरुआत हुई समीचीन रचनात्मकता से होती है। लोभ का एक मुख्य कारण व्यसन भी है, लोभ हमसे क्या कुछ नहीं करा सकता है। हमारी समाज संपूर्ण रूप से व्यसन मुक्त होनी चाहिए, एक अभियान इंसानों व उनके मन की स्वच्छता के लिए भी चलाना चाहिए। आज के समय रिश्तो में बिल्कुल भी पवित्रता नहीं बची है, कई शादियां होने के कुछ समय बाद ही टूटने की कगार पर पहुंच जाती है। लोभ के ऑफर कभी भगवान द्वारा नहीं दिए जाते ऐसे कार्य केवल शैतान द्वारा किए जाते हैं।


