लूट का नियम वैश्विक ही है!
स्मार्ट हलचल/लूट का फंडा लगभग वैश्विक होता है,जैसे अमेरिका में,यूरोप में या दुनिया के किसी भी भाग में लूटा जाता हो,वैसे ही भारत में,वैसे ही किसी छोटे कस्बे में,वैसे किसी संस्थान में,वैसे ही कालेज में,वैसे ही परिवार में।एक नजीरन बात बता रहा हूं।इसका संबंध किसी जिंदा मुर्दा व्यक्ति से नही है।
मेरे कस्बे में एक कालेज है जिसका नाम है किसान पीजी कालेज,रक्सा,रतसड़,बलिया,यूपी। यहां एक कार्यक्रम होता है शिक्षक दिवस के एक दिन पूर्व यानी चार सितम्बर को!इसके सर्वे सर्वा हैं लल्लन सिंह जी।अब कार्यक्रम तय हो गया। इन्होंने अपना बजट बना लिया है कि दस लाख हमें खर्चे में शो करना है, दिखाना है और डेढ़ लाख तक में सारा खर्चा निपटा देना है,सो शोबाजी शुरू।किस तरह से अपने छोड़न व जूठन से भी आपने स्टाफ को खुश रखते व फंसाए रहते हैं,आगे पढ़िए?मान लिजिए २०० साल या दुपट्टा लाना है तो किसी स्टाफ को दे देंगे कि ऐ फलाने आपको साल लानी है। प्राचार्य से वो बात करके साल लाया दो सौ,जिसकी वास्तविक कीमत प्रति पीस डेढ़ सौ रुपए और कालेज कार्यक्रम मुखिया को बताया दो सौ रुपए प्रति पीस। उसमें उसकी पूरी बचत/दलाली हुई दस हजार।ऐसे कोई साग सब्जी लाया उसको भी बचत सात हजार,स्टेशनरी से पांच हजार,परिवहन चार्जेज से पांच हजार। ऐसे कुल करीब बाईस हजार और कुछ इधर-उधर का बाईस हजार और।राउंड फिगर में मान लिजिए पचास हजार।अब सब टीचिंग,नान टीचिंग स्टाफ इस रकम पर दीठ लगाए हैं कि दो चार सौ,दो चार हजार मिलेगा,मुख्य तौर पे चटूहों के चेयरमैन के दो भांट पहला प्राचार्य तो दूसरा डायरेक्टर,अब इन भांटों के भी कोई भांट हैं तो मुझे पता नही, चटूहों के चेयरमैन के परिवार से भी कोई हो सकता है। वैसे ही जैसे कार्तिक में कुत्ते इलेक्शन लड़ते हैं।एक चढ़ा है,दस खड़ा हैं,कोई वास्तविक मजे में है तो कोई देख के मजा ले रहा,कोई छू छा के मजा ले रहे हैं,कोई चाट के ले रहा है,लेकिन मजे,ले सब रहे हैं। वैसे ही सबके सब पचास हजार पर नजर फोकस किए हैं,का प्राचार्य,का प्रोफेसर,का लेक्चरर,का लिपिक लाइब्रेरियन,का डायरेक्टर।ये सभी पचास हजार पाके,चाटके खुश हो रहे हैं या हैं।किसी के लिए कुछ भी नैतिकता,आचार संहिता नही हैं।ये सब लाचार निरीह प्राणी हैं जो चटूहों के चेयरमैन के फेंके टूकड़ों पर आश लगाए हैं। इन्हें क्या मतलब है कि उन टूकड़ों में कितनों का खून शामिल है जिसका सफाया इन टूकड़ों के मुहैयादार ने करा है। मैं इस बहुरुपया को दुश्मन नही समझता लेकिन इनका आचरण दुश्मनों के अवगुणों से भरपूर है।ये पा रहे हैं पचास हजार और मुहैयादार की नजर तो दस लाख पर है और पाएंगे या पा जाएंगे यदि पचास हजार स्टाफ पाएगा तो? अब यदि किसी ने इसकी (खर्चे का ब्यौरा) विवरण मांगा भी तो देना किसको है? वही पचास हजार पाने वाले समूह को? खुद पचास हजार घोंटे हैं तो दिखा देंगे,दे देंगे दस लाख का ब्यौरा?इतनी तो नमक हलाली करनी ही पड़ेगी। मनुष्यता के कारण इतने के लिए सहज भाव से कर लेंगे लेकिन इनके इतनी ही दरियादिली से एक दैत्य को मिल रहा है लाखों जो समाज द्रोह,दिलद्रोह या मेरे जैसों के कतल के लिए इस्तेमाल होगा। ऐसे भी इस बात को समझा जा सकता है कि आतंकवादियों को कितने मिलते हैं बमुश्किल दो चार लाख इसी में इनको मरना भी है लेकिन जो इन्हें प्रायोजित करते हैं उनको करोड़ों मिलते हैं।आप स्टाफ के बल पर ही यह कालेज चल रहा है लेकिन कभी कभी बारीक गलतियों से दैत्य पैदा हो जाते हैं जो समद चाचा,खालिक चाचा और इनकी कंपनी ने किया।आज यह दैत्य मेरे ऊपर मुकदमा कर रहा तो बता दिजिए कि किसको छोड़ा है?धीरे-धीरे अपने भाईयों,चाचाओं, लालची समधियों,भिखमंगे मामों,सालों,लोभी बहनोइयों और कुछ लफुओं को सदस्यता सूची में घूसेड़ लिया,क्या उखाड़ लिए,जो उस वक्त थे?अब बांसडीह महाविद्यालय में भी अपने पिल्लों को घूसेड़ रहा है। कहने का मतलब है कि थोड़े लालच में आप दो चार दिन भोजन वाहन कर सकते हैं लेकिन जो इसे दैत्य रुप बख्श रहे हैं ये तो गुनाहे अजीम है।आप लोगों का शोषण दोहन तो हो ही रहा है लेकिन उसका गुलाम होना परिलक्षित होना लाजमी है क्या?
अंग्रेज ऐसे ही भाग गये,गांधी ने चरखा चला दिया और अंग्रेज चले गए,एक गाल चटियाया गया,दूसरा गाल परोस दिए,फिर अंग्रेज सरपट भाग गए सात समंदर पार? करीब पौने आठ लाख लोग शहादत दिए हैं तब जाके आजादी नसीब हुई। यदि भारत की आजादी को आधार बनाकर कालेज पर कुछ कहा जाए तो इस दैत्य के और इसके परिवार से कालेज को आजाद कराना है तो शहादत देनी ही पड़ेगी।आप लोग दें या कोई और दे।जो भी यहां से गए वो शहादत ही दिए हैं।नही तो चलाते रहें चरखा,कुछ नही होने वाला। चला जाए जेल रवि सिंह,क्या फर्क पड़ने वाला है।फरक पड़ेगा! पुछिए डा.ओम प्रकाश पाण्डेय जी से,जिन्होंने अपने बिमार पिता की दवाई के लिए कुछ पैसे मांगे तो इस धूर्तराष्ट्र न क्या कहा था और उसे भूल,इसके पिता-माता की मूर्ति पर माल्यार्पण कर रहे हैं?पूछ लिजिए डा.अवधेष चौबे से जो इसके जुल्म से अंधे हो गए,दवा के पैसे मांगे तो उनका कालर पकड़ के झकझोरा और इस दैत्य के मां को माल्यार्पण कर रहे हैं? नही तो पूछ लिजिए अपने व्यवस्था के कोषाध्यक्ष से जिसका हस्ताक्षर १५ साल बाद क्यों बैंक में प्रमाणित किया गया?इसकी दैत्यगीरी को जानिए ये किसी का नही है तो आपका कैसे होगा? नहीं तो पूछ लिजिए इस दैत्य के व्यवहार को कि अपनी चाची को घर से कैसे निकलवाया और कितना क्रूर जुल्म ढाया?? चाची को निकलवायेगा और चाचा को कालेज की समिति का सदस्य बनाएगा? चाचा इनके इतने ही प्रिय थे तो चाची को कहीं और रखकर भी भोजन पानी की व्यवस्था कर सकते थे? कहीं वृद्धा आश्रम में ही रखवा दिए होते?लेकिन जो दूसरे का घर फोड़ने का हूनर रखता है तो अपना घर कैसे छोड़ देगा? चाची के नाम से तो कुछ था नही सो उन पर अत्याचार होता रहा और संपत्ति तो चाचा के नाम थी और उसे कब्जा लिया,बिल्कुल यही सर्पिली सिद्धांत से कालेज कब्जाया इस दैत्य ने? लोगों की विनम्रता को इस दैत्य ने असमर्थता समझा और उनका इस्तेमाल सिर्फ व सिर्फ अपने व्यक्तिगत हित में किया। जिसने लोगों का सम्मान नही किया,उसका सम्मान करना अधर्म है,इस अधर्म से बचें।
एक शराबी मर के ऊपर पहुंचा।घूमते घूमते उसे कुछ दैत्य मिले।शराबी ने दैत्यों के आका से कहा/पूछा कि मैं तो सारा दिन शराब से टुन्ना रहता था फिर भी मुझे इतनी सुविधाएं क्यों दी जा रही हैं? दैत्यों के दादा ने समझाते हुए कहा कि आप जो शराब पीके,बिना भोजन किए,चखने के रुप में सलाद खाके सो जाते थे,उसे यहां तकनीकी रूप से यहां,उसे उपवास में गिन लिया गया है?
अपना बेटा दारु पिए और दारु पिने की सजा उसके साथ पीने वाले असिस्टेंट प्रोफेसर को मिले? विवाहेत्तर संबंध में माहिर आपका बेटा (…… को लेकर कालेज समय में उड़ता फिरे मस्त गगन में) और उसकी सजा मिले उसके साथ काम करने वाले असिस्टेंट प्रोफेसर को?तमंचे पर डिस्को करवाए असिस्टेंट प्रोफेसर को दौड़ाए,उसके लिए न मिटिंग करवाएं और न कोई विशेष चर्चा?वाह रे न्यायकर्ता?
मैं ऐसा नही कह सकता कि फ्राडों के फादर/चटूहों के चेयरमैन/चाची से चाचा को चुराने वाले संत चूड़ामल महाराज कैसे समाज में मुंह दिखाते हैं?कंश,हिरण्यकश्यप,रावण,सुर्पनेखा,सुरसा, कालनेमी बिना मुंह के थोड़े ही थे, जैसे वे घूमते थे,ये भी घूम रहे हैं?
ये दैत्य अब शराब नही पीते,पका मांस भी नही खाते (जिंदा जन जो स्वाद में शूमार हैं….)।आपको भोजन देंगे नही,सलाद दिखाके आपके सपने खाएंगे और सिर्फ यही स्वर्ग पधारेंगे?
आर्कमिडीज ने अपने बायोग्राफी में कहा है कि पृथ्वी के बाहर पांव धरने की जगह मिल गई तो मैं पृथ्वी को उठा दूंगा।कोई आर्कमिडीज मिला नही और पृथ्वी उठी नही,और आर्कमिडीज उठ गए लेकिन ये चटूहों का चेयरमैन तो कई करोड़ साल जियेगा? ये पृथ्वी से तो उठेगा नही? नही कुछ कर पाया तो,इस दैत्य को देखते हुए ही जीवन कटेगा। लेकिन मैं आग लगाने वालों के समूह में नही जा सकता।आप कलमदार हैं,कत्लकार नही हो सकते लेकिन कोई कलमकार इस दैत्य से कतल भी न हो,इस पर विचार करें।
दुनिया जानती है,पब्लिक डोमेन में ये बात जन जन में पैठा पड़ा है कि जिसका उदय हुआ है उसका अस्त होना निश्चित है, लेकिन यह भी स्थायी सत्य है कि है कि जो डूबता है उसका उदय होना भी निश्चित है।जिसे भी इस दैत्य ने दुत्कारा है उसकी तो हाय लगेगी ही!
एक बार चटूहों के चेयरमैन अपने भांटों के साथ नरपुर से सुरपुर पहुंचे,इन्हें देख इंद्र भगवान एकदम से भड़क गए और खौरीया के डांटने लगे,बोले इन्हें फरिश्तों के आका यमराज के पास भेजो ? यमराज एक फिल्ड में बैठा कर सभी भांटों को सजा दे रहे थे कि फलाने प्राचार्य तुम फिल्ड का तीस चक्कर लगाओ तो तुम डायरेक्टर तैंतीस चक्कर,तो तुम समधी एक सौ तैंतीस चक्कर लगाओ,तो तुम भूख्खड़ भिखमंगों सदस्य रिश्तेदार चार सौउन्नीस चक्कर लगाओ,तुम हरामखोर भाई चार सौ बीस चक्कर लगाओ,इसी में मौका ताड़के चटूहों के चेयरमैन गायब हो गए (चालाकी में तो लोमड़ी भी इन्हीं से दीक्षित है), पूरा अफरा तफरी मच गई सुरपुर /यमलोक में,लेकिन कुछ देर बाद आ गाए? यमराज तो गुस्से में थे ,तैस में डाटा कि तुम पूरा सिस्टम ही गड़बड़ कर दिए चल,बता कहां गायब हो गए थे?तो चटूहों के चेयरमैन ने कहा कि साहब मैं साइकिल लेने गया था?
अगर संभले नही तो हमेशा की तरह यह दैत्य आप सभी को (पूर्व में किए इनके आपके कर्मचारियों व सदस्यों के साथ व्यवहार जेहनों में हैं) बाढ़ में बहने वाले तिनकों की तरह बेवजन,बेसहारा और बेआसरा समझते रहेंगे और दंभी दोहन जारी रहेगा!
ऐसा नही है कि इनके बारे में पहली बार मैं कुछ कहा जा रहा है,इसके पूर्व में भी लोगों ने आवाज उठाई है,साइकिल रैली तो जबरदस्त हुई और उसका नतीजा- जितने भी साईकिल रैली का भाग बने,उनके सुख जीवन में भाग दे दिए और वक्त के साथ – साथ सभी को भगा दिए ! शासन प्रशासन तक को इनकी दैत्यगीरी का गीत गाना पड़ा। बच्चों ने इनके जितेजी इनका पुतला फूंका था। शासन प्रशासन के गैरजिम्मेदाराना रवैए ने इनके दानव प्रवृत्ति को आसमानी ही किया! शासन प्रशासन व विभाग के मिलीभगत ने ऐसा काम कर दिया है कि मानक अनुसार कमरा वगैरह न होने के बावजूद भी इन्हें मनमानी ही वाली बात करनी पड़ी। ऐसे ही भौकाली आधार पर नैक भी हासिल कर लिया तबसे तो ये और मतवाला भैंसा हो गया?
वही दो चार हजार में अपने पैर और मुंह समेटें,चादर और निवाला बड़ी नही होगी,पैर व मुंह काटके ही समायोजन करना पड़ेगा जो इस दैत्य के प्रभाव में आप लोग प्रयास कर रहे हैं।ये दैत्य अपने साईकिल से चक्कर काट लेगा और आप लोगों को पैदल रौंदवाएगा!सहयोग कुछ कब्जाने के लिए नही मांग रहा बल्कि कब्जा मुक्ति के लिए मांग रहा हूं।इस दैत्य का साथ देकर अधर्म को पुख्ता ना करें। कुटील के साथ प्रीति की आश सिर्फ बकवास है।इस धूर्तराष्ट्र के पास तो दुर्योधन जैसे पापी पुत्र,शकुनी जैसे पुतरों के मामा,कुंभकर्ण जैसे राक्षसी भाव के भाई,सब तो है लेकिन है नही तो,नैतिकता,सात्विकता और वास्तविकता! नही तो बता दो धूर्तराष्ट्र एक कालेज में दो लाइब्रेरी कहां है पूरे भारत में? बस सबके आंख में धूल झोंका और लिपिक पर अनुमोदन अपने बेटे का कराया और पेमेंट दे रहा …….? हस्तिनापुर तो लूट ही रहा है लेकिन आप पैदल ही घनचक्कर लगाएंगे। समझे तो ठीक,नहीं तो सब उसके तेगे के जद में है!
मैं बेकसूर हूं,इसका फैसला मैं नही कर सकता! लेकिन बेकसूरी की तमीज तो है साहब। हमारे जैसे लोग बड़े दिलचस्प होते हैं,कोई भी,कभी भी,कहीं भी शिकार कर सकता है जैसा आप चटूहों के चेयरमैन और फ्राडों के फादर ने किया है हमारा! हमारे जैसे लोग बिन खता किए भी शर्मिंदा हो जाते हैं,आप जैसे बेदर्द बेशरम नही हैं!धूर्तराष्ट्र जैसे लोग हमें क्या सुधारेंगे(शिवाय मेरी हत्या कराने के और क्या कर सकते हैं?),जो अपनी औलादों को भी ज्ञान नही दे सके।एक औलाद को चालिस लाख में रोटी मयस्सर कराई,दूसरे को पहले विद्यालय को निजी एटीएम समझ धूर्तई से लूटके दूसरी दुकान खोल ली और नाम रख दिया अपने भूत हुए पिता माई के नाम,उसका प्रोपराइटर बना दिया और तीसरे को अपने कब्जाए विद्यालय में कम्प्यूटर क्लर्क बना दिया तो चौथे को लिपिक पर नियुक्ति कराकर,लाइब्रेरियन का वेतन दिलवाने लगे जो इतना सब कर सकता है तो पांचवें को भी कहीं एडजस्ट करा दिया?आप ऐसे धृतराष्ट्र हुए जा रहे हैं जिसके घर का कोई सदस्य महाभारत में नहीं तड़पा। इस प्रकार कृष्ण की अधर्म पर धर्म की जीत की थ्योरी को धत्ता बताते हुए अपने मन से महाभारत कराया और माल कमाने का नुस्खा बनाया।
आप हमें गाली भी दो या अपने चटूहों से दिलवाओ या अपने पिल्लों से दिलवाओ,या किसी को हायर करके दिलवाओ,हम क्या,सभी आपको साहब ही कहके बुलाते थे। पूर्वजों की नसीहत है कि घोर से घोर घनघोर पाप कर लेना लेकिन किसी निश्छल या मजबूर का मजाक मत उड़ाना या बनाना।जो अपने जरुरतों से दबे हैं वो इतनी दगा के बाद भी,आपके सामने खड़े ही रह जाते हैं बस!आप जानते हैं कि जिसे कुछ चटा रहे हैं वो खामोश मकबरे जैसे हैं जिनसे न्याय की आवाज या आपके विरोध की आवाज की उम्मीद कैसी?आजादी से पहले अंग्रेज जिस तरह वर्ताव करते थे,आज लूट के सौदागरी में अव्वल होकर आप उनसे भी सुपर हूनरबाज समझने लगे,और उनसे भी और बर्बर व्यवहार करने लग गए।भगत सिंह ने कहा था कि बहरों को सुनाने के लिए धमाकों की जरूरत होती है।ये सब वही धमाका है सर!बस लोग आपके असल रुप को देख लें। धमाके से बस इतना ही एहसास कराना चाहते हैं कि जिसने भी आपको जमीन दिया,जेवर दिया,जज्बात गिरवी रखा,उनके साथ कितना रफ रवायत करी,वे गरीब जरूर होंगे,लेकिन अपनी मेहनत का खामोश हिस्सा आपको सौंप दिये और आपने क्या किया?वे इज्जत से जीना चाहते हैं,लेकिन इज्जत तो आप जैसे धोखे से,धूर्तई से,अमीर हुवों के थाली के पकवान हैं,और उनकी इज्जत तो जूठन है,जैसे मर्जी जहां उछाल दिया?अब इसके बाद हमारा कुछ भी हो (भले ही आप बेअसर हों) लेकिन इस एपिसोड्स की गूंज आपको वर्षों सुनाई देगी। प्रकृति आपको सजा देगी,पाप को प्रभु भी निहार रहा होगा,सजा के लायक बिल्कुल आप उपयुक्त हैं उसके लिए।आपके नाश के आश में सभी हैं जो निश्छल भाव से आपका सहयोग किए।
इन लाइनों के साथ,
फूल बनकर जो जिया वो यहाँ मसला गया,
ज़ीस्त को फ़ौलाद के साँचे में ढलना चाहिए!
और तवारीख में झांके और मगरुरीयत के अंजाम का ख्याल करें –
धीरे धीरे ही सही फिर दिखा गई असर अकड़,
नर्म लहजों में आ गई अचानक इतनी अकड़,
आपसे पहले जाने कितनों को मेरे अजीज,
पी गया जुनून और खा गई अकड़।