मांडलगढ़ 21 नवम्बर 2025,
स्मार्ट हलचल|राम स्नेही सम्प्रदाय के युवा संत दिग्विजयराम ने कहा कि जीवन में भक्ति भाव को अंगीकार करना हो तो गोपी भाव को प्रधानता दे तभी ईश्वर प्राप्ति संभव हैं। संत रमताराम जी के परम शिष्य युवा संत दिग्विजयराम शनिवार को धर्म नगरी मांडलगढ़ में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव के षष्ठम दिवस शनिवार को व्यासपीठ से भागवत कथा अमृतपान करवा रहे थे। उन्होंने शरद पुर्णिमा की मध्य रात्रि को हुए महारास में गौकुल वृद्धावन की समस्त गोपियों एवं देवताओं के साथ वेणुगीत के बीच महारास की चर्चा करते हुए कहा कि वेणुवादन के बाद आई गोपियों को श्री कृष्ण ने जब घर जाने की कहा तो उनका उत्तर था कि अब उनके चरण ही घर की ओर नहीं जा सकते तो वे कहा से जाएंगी । इसी बीच राधा रानी भी महारास में भागीदार बनी। जिसका वर्णन इतना सुंदर था कि महारास मंडप में 9 लाख गोपियों के साथ 9 लाख कृष्ण भी रास करने लगे तभी युवा संत ने निराले अंदाज में राधा नाचे कृष्ण नाचे नाचे गोपीजन भजन की प्रस्तुति दी तो कथा मंडप भी महारास मंडप में निरूपित हो गया। इस दौरान सुदर्शन और शंख चूड़ का श्री कृष्ण द्वारा उद्धार किया गया। वहीं कंस के द्वारा भेजे गए कई असूरों को भी मौत के घाट उतार दिया। कथा व्यास ने बताया कि देव ऋषि श्री नारद ने कंस के दरबार में पहुंचकर बताया कि तुम्हें मारने वाले कृष्ण और बलराम गोकुल में मौजूद हैं, जिन्हें अक्रुर जी को भेज कर मथुरा बुलाए, तब अक्रुर जी ने गोकुल जाकर कृष्ण को कंस वध के बारे में संपूर्ण जानकारी दी और वहां से सूर्योदय से पूर्व मध्यरात्रि में ही गोकुल को 11 वर्ष व 12 दिन बाद छोड़कर मोह सागर त्यागते हुए मथुरा के लिए प्रस्थान कर दिया। मथुरा पहुंचने पर कृष्ण ने धोबी का उद्धार किया। वहीं दर्जी और सुदामा माली जो पूर्व जन्म में सग्रीव थे, उन्होंने कान्हा का स्वागत किया तथा कन्हैया ने कुबजा की वक्रता को दूर किया। इस दौरान कुबलिया पिण्ड पागल हाथी द्वारा कन्हैया पर हमला करने पर एक मुस्ठिका से उसका वध कर मल के मैदान में प्रवेश किया। जहां चाणुर व मुस्ठिक मारे गए और कृष्ण ने कंस का भी वध कर दिया। तत्पश्चात श्री कृष्ण ने कारागार से देवकी वसुदेव को मुक्त कराया, जहां से उन्हें संदीपनी आश्रम में ज्ञानार्जन के लिए भेजा गया। जहां उनकी सुदामा से मित्रता हो गई और संदीपनी ऋषि को गुरू दीक्षा के रूप में गुरूमाता के रूप में प्रभाश क्षेत्र में मारे गए पुत्र को जीवन प्रदान किया और भगवान मथुरा के अधिपति बन गए। इस दौरान श्री कृष्ण ने उद्यव के ज्ञान के अहंकार को विदिर्ण करने के लिए उन्हें अपना संदेश देकर गोकुल भेजा। जहां गो ग्वाल अपने बालसखा की प्रतिक्षा कर रहे थे। वहां पहुंचकर उद्यव जी ने जब नन्द बाबा का ग्रह पूछा तो गोकुल वासियों ने कहा कि अश्रुओं की धार से बह रहे नाले के साथ जाने पर उनके ग्रह पहुंच जाएंगे। इस दौरान भ्रमर गीत के माध्यम से गोपियों ने अपने आराध्य के प्रति भाव प्रकट किए, तब उद्यव ने उन्हें लाख jसमझाने की कोशिश की तो गोपियों ने कहा कि उधो मन नाही दस बीस बताया तो उद्यव के ज्ञान का अहंकार खत्म हो गया और वे छह माह तक गोकुल में रहे। जहां से मथुरा जाने पर श्री कृष्ण ने उन्हें कहा कि उनका मन तो आज भी गोकुल में ही हैं। युवा संत ने कहा कि भगवान मथुरा से द्वारिका पधार गए, जो मोक्ष दायिनी सप्तपुरियों में से एक हैं। इस दौरान जरासंध से युद्ध के बीच मैदान छोड़कर जाने पर श्री कृष्ण रणछौर कहलाएं। जब द्वारिकाधीश ग्यारस वर्ष गोकुल और चौदह वर्ष मथुरा रहने के बाद पच्चीस वर्ष के हुए तो विवाह की तैयारियां होने लगी, तब विदर्भ राज की कन्या रूकमणी का विवाह शिशुपाल से करना तय हो गया था, लेकिन रूकमणी तो मन ही मन श्री कृष्ण को वर चुकी थी, तब उन्होंने संदेश वाहक के साथ अपने भाव प्रकट किए, तो द्वारकाधिश भी रूकमणी विवाह करने के लिए निकल पड़े। इस बीच शिशुपाल की 100 गलतियों के बाद उसका वध कर रूकमणी का अपहरण कर द्वारिका ले गए, जहां ठाठ बाठ से कृष्ण रूकमणी का विवाह हुआ। इस प्रसंग का विस्तार करते हुए जब युवा संत ने अपने ही अंदाम में बन्नो मारो द्वारिका नाथ बन्नी तो मारी रूकमण लाड़ली भजन की प्रस्तुति दी तो समूचा वातावरण वृद्धावन का विवाह मंडप बन गया, तभी कथा मंडप में भगवान श्री कृष्ण के बारात की झांकी व रूकमणी के विवाह का दृश्य हजारों दर्शकों के लिए आनंदित करने वाला हो गया। प्रारंभ में कास्ट परिवार एवं उनके मित्रों द्वारा व्यासपीठ की पूजा अर्चना कर आरती की ।


