राजस्थान सरकार ने प्रदेश के विद्यालयों में वाइस प्रिंसिपल के पद को समाप्त करने का महत्वपूर्ण फैसला लिया है। शिक्षा विभाग की हालिया समीक्षा बैठक में वाइस प्रिंसिपल के पद को “डाइंग कैडर” बनाने पर सहमति बनी। इसके बाद, राज्य के विद्यालयों में इस पद को पुनः नहीं भरा जाएगा, और जिन शिक्षकों ने इस पद पर कार्य किया है, उन्हें पदोन्नति प्रदान की जाएगी। यह कदम शिक्षक संगठनों की लंबे समय से चली आ रही मांग के बाद उठाया गया है।
व्याख्याताओं की कमी बनी प्रमुख कारण
शिक्षा विभाग के अनुसार, स्कूलों में वाइस प्रिंसिपल के पद की आवश्यकता नहीं है, अधिकारियों का कहना है कि इन पदों के कारण व्याख्याताओं की भारी कमी हो गई है, जिससे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है।
प्रिंसिपल और वाइस प्रिंसिपल के मौजूदा पदों की स्थिति:
- प्रिंसिपल: 17,785 स्वीकृत पदों में से 10,296 भरे हुए हैं और 7,489 खाली हैं।
- वाइस प्रिंसिपल: 12,421 स्वीकृत पदों में से 4,900 भरे हुए हैं और 7,521 खाली हैं।
शिक्षा विभाग का मानना है कि वाइस प्रिंसिपल को पदोन्नत कर प्रिंसिपल के रिक्त पदों को भरा जा सकता है। इससे स्कूलों में प्रशासनिक और शिक्षण दोनों स्तरों पर सुधार होगा।
शिक्षकों और संघ का समर्थन
राजस्थान प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेशाध्यक्ष विपिन प्रकाश शर्मा ने इस फैसले का स्वागत किया। उन्होंने कहा, स्कूलों में पहले से ही प्रिंसिपल मौजूद हैं, ऐसे में वाइस प्रिंसिपल का पद अनावश्यक था। इस बदलाव से व्याख्याता सीधे प्रिंसिपल के पद पर पदोन्नत होंगे, जिससे उन्हें लाभ मिलेगा। साथ ही, व्याख्याताओं की कमी दूर होगी और छात्रों को बेहतर शिक्षा मिल सकेगी।
शिक्षा विभाग ने भी माना वाइस प्रिंसिपल की आवश्यकता नहीं
शिक्षक संघ की मांग को लेकर शिक्षा विभाग ने भी जायज माना है, उन्होंने समीक्षा बैठक में इसे स्वीकार किया कि स्कूलों में वाइस प्रिंसिपल पद की कोई आवश्यकता नहीं है। वाइस प्रिंसिपल पद होने से न सिर्फ शिक्षकों की कमी होती है, बल्कि व्याख्याता को आर्थिक नुकसान भी होता है। बता दें कि राजस्थान में 12 हजार 421 वाइस प्रिंसिपल के पद स्वीकृत है। इनमें अधिकांश पद खाली है, सरकार के इस नए निर्णय से अब 12 हजार वाइस प्रिंसिपल व्याख्याता के रूप में अपनी सेवाएं देंगे। बता दें कि गहलोत सरकार के दौरान सरकारी स्कूलों में वाइस प्रिंसिपल का पद सृजित किया गया था।