संदना/स्मार्ट हलचल/सीतापुर पहला आश्रम के महंत रहे श्री श्री 108 श्री भरत दास जी महाराज (डंका वाले बाबा ) जी का आज द्वितीय निर्वाण दिवस है ,दो बरस पूर्व आज ही के दिन इस नश्वर शरीर को त्याग कर उन्होंने समाधि प्राप्त की थी ,
संत परम्परा मे मठो का बड़ा योगदान है ,वे केवल संस्कृति की ही ज्ञान दीक्षा का संदेश नही देते बल्कि सामाजिक समरसता ,संस्कृतिक संरक्षण और सनातनी मूल्यो की स्थापना मे भी अपना बड़ा योगदान करते है ,सृष्टि के प्राचीनतम तीर्थो मे से एक नैमिष का अरन्य क्षेत्र एक कालखंड मे नागवंशी राजाओं की राजधानी था ,वे जितने वीर और पराक्रमी थे उतने ही धर्म भीरु भी ,नतीजन भूपति क्षत्रिय राजा उनसे बड़ा भयभीत रहते थे ,इसी के रहते क्षत्रिय राजाओ ने संतो की शरण ली और उन्हे भूमि प्रदान कर पूरे नैमिष क्षेत्र मे कई मठो की स्थापना की ,विशेष रूप से नैमिष के इर्द गिर्द पंच भैय्यो की मठिया का विशेष उल्लेख मिलता है ,जिन्होंने संस्कृति रक्षा और सनातन मूल्यो की स्थापना मे बड़ा योगदान किया ,बाद मे मुग़ल संस्कृति के आक्रमण के समय भी इन मठो ने ही सनातन को अक्षुन्य रखने मे सबसे बड़ी भूमिका का निर्वहन किया ,अगर संत परम्परा न होती तो सनातन संस्कृति का पूर्ण क्षरण हो गया होता ,19 वी सदी का भी आजादी आंदोलन सन्यासी विद्रोह का साक्षी रहा है ,
पहला आश्रम नागवंशी राजाओं की राजधानी नगवा जैराम और नैमिष के बिल्कुल मध्य मे था ,इस नाते धर्म रक्षा का बड़ा दायित्व इस मठ पर ही था ,सदियों से अनेको संतो ने यहा धर्म साधना कर सनातन संस्कृति पर बड़ा उपकार किया ,दीर्घकालिक अवधि तक यहा के पूज्य महत श्री देवीदास जी महाराज ने संस्कृति संरक्षण और धर्म रक्षा का कार्य किया ,उनके 2008 मे ब्रम्हलीन होने के उपरान्त उनके सयोग्य शिष्य महत श्री भरत दास जी महाराज आश्रम के नये महत और परिक्रमा समिति के अध्यक्ष 2008 मे बने ,राजसत्ता की भांति धर्म सत्ता भी झंझावतो और साजिशो का शिकार होती है ,भरतदास जी महाराज भी इससे जूझते रहे ,जो समय वो सृजन मे दे सकते थे वो बहुत कुछ इन परिस्थितयो से जूझने मे व्यतीत हुआ ,लेकिन इसके बावजूद उन्होंने धर्म और संस्कृति रक्षा मे बड़ा योगदान किया और आश्रम को न सिर्फ शीर्ष तक पहुंचाया बल्कि परिक्रमा समिति को भी ऊंचाइयों तक ले जाने ,परिक्रमा परिपथ मे सुविधाओं के विस्तार और श्रद्धालुवो के लिए वे विशेष चिंतित रहे ,परिक्रमा मे उनका डंका बजाना और भव्य शोभायात्रा दर्शनीय होती थी ,आश्रम मे उनके रहते अनेको विशिष्ट आयोजनों की पहल हुई ,
हरदोई जनपद के सांडी क्षेत्र के गांव मरौली ग्वाल निवासी महाराज जी अपने पिता के पांच पुत्रो मे मध्य अथर्त तीसरे नंबर के थे ,उन्हे आरम्भ से ही धर्म और अध्यात्म मे बड़ी अभिरुचि थी ,वे किशोरवय मे नैमिष मे आ गये और पहला आश्रम मे महाराज देवी दास जी की सेवा मे लग गये ,उन्होंने कठिन साधना ,सेवा और तप किया ,बड़े महाराज् जी देवीदास जी के ब्रम्हलीन होने के बाद 2008 मे भरत दास जी महाराज बने और धर्म रक्षा का कार्य करते हुए 2022 मे आज की ही तारीख को वो ब्रम्हलीन हुए ,उनका समाधि लेना सनातन संस्कृति की बड़ी क्षति रहा ,यदि उनको और समय मिला होता तो नैमिष क्षेत्र के लिए उनका योगदान और महनीय होता ,
आज संत समाज की तरफ से महाराज श्री का पुण्य स्मरण और उनको विनम्र श्रद्धांजलि दी गई
इस अवसर पर पहला आश्रम के श्रीमहंत नारायणदास, विश्व हिंदू परिषद के बजरंगी विमल मिश्र, स्वामी प्रकाशानंद सरस्वती, स्वामी पवन गिरी, महंत अंजनी दास, महंत चंद्रप्रकाश दास, महंत प्रह्लाद दास, महंत राघव दास, रामचरनदास त्यागी, शुभम पांडे, डा सर्वेश यादव सहित सैकड़ों संत, महंत उपस्थित रहे