विवेक रंजन श्रीवास्तव
स्मार्ट हलचल|अमेरिका में मूल अमेरिकी नागरिक संख्या में सीमित हैं। वहां बड़ी संख्या में विदेशों से आकर बस गए लोगों की जनसंख्या है। अपनी मूल मिट्टी से,भले ही पीढ़ियों पहले वह छूट चुकी हो मनुष्य के संबंध समाप्त नहीं होते । कमला हैरिस , ऋषि सुनक, सुंदर पिचाई आदि हस्तियों से भारतीय इसी आधार पर अपनी आत्मीयता जताते हैं जबकि ये सब अब पूरी तरह अमेरिकी नागरिक हैं।
आज अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रंप टैरिफ के जरिए अमेरिका को फिर से महान बनाने के विचित्र रास्ते पर चल पड़े हैं । ऐसे में भारतीय, चीनी , या ब्राजील के मूल नागरिकों की जो अब वहां अमेरिकन नागरिक हैं , क्या भूमिका हो सकती है? अमेरिकन लोगों पर इस परिदृश्य का क्या असर होगा, यह समय बताएगा ।
अमेरिकी टैरिफ का असर सुनते ही सबसे पहले जेब अपनी भाषा में बोलने लगती है, फिर बाजार अपनी चाल चलता है और अंत में राजनीति यह तर्क देती है कि यह सब अमेरिकन घरेलू उत्पादन बचाने के लिए है। किंतु अतीत और वर्तमान के शोध बताते हैं कि आयात शुल्क का बोझ अंततः उपभोक्ता पर ही आता है। 2018 की टैरिफ लहर में यह साफ देखा गया था कि शुल्क का लगभग पूरा भार अमेरिकी आयातकों और उपभोक्ताओं पर पड़ा, दाम बढ़े, विकल्प घटे और वास्तविक आय में कमी आई।
तब वॉशिंग मशीनों पर अमेरिकन शुल्क का परिणाम यह हुआ कि दुकानों में वॉशिंग मशीन और उनके साथ चलने वाले ड्रायर दोनों की कीमत औसतन बारह प्रतिशत बढ़ गई। यह सिर्फ एक उदाहरण है, व्यापक अध्ययन दिखाते हैं कि टैरिफ का असर सीधे आयात कीमतों पर पड़ता है और उपभोक्ता की भलाई घटती है।
हाल ही में अमेरिका ने चीन से आने वाले इलेक्ट्रिक वाहन, उन्नत बैटरियां, सोलर सेल, स्टील, एल्युमिनियम और कुछ चिकित्सकीय उपकरणों पर भारी शुल्क लगाए। बैटरी और कुछ महत्वपूर्ण खनिजों पर दरें पच्चीस प्रतिशत तक कर दी गईं। इस कारण औसत प्रभावी टैरिफ दर 1930 के दशक के बाद सबसे ऊंचे स्तरों पर पहुंच गई है। इसका सीधा अर्थ है कि जिन वस्तुओं के विकल्प तुरंत और सस्ते में उपलब्ध नहीं हैं, उनकी कमी और महंगाई दोनों की संभावना बढ़ जाती है। इसका एक और परिणाम यह होता है कि सामने वाले देश भी जवाबी कार्रवाई करते हैं और सबसे पहले चोट लगती है अमेरिकी कृषि तथा उद्योग पर। पिछली बार के टकराव में अमेरिकी कृषि निर्यात को सत्ताईस अरब डॉलर से अधिक का सीधा नुकसान हुआ था। किसानों की आय में दस से बीस प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज हुई और कई निर्यात बाजार हमेशा के लिए खो गए। जहां विकल्प आपूर्ति संभव है, वहां वस्तुओं की कमी नहीं होती किंतु वे महंगी होकर मिलती हैं क्योंकि नए सप्लायर महंगे पड़ते हैं और घरेलू कंपनियां भी प्रतिस्पर्धा घटने पर दाम बढ़ा देती हैं। पर जहां आपूर्ति जटिल है, जैसे ईवी बैटरी, सोलर वैल्यू चेन या विशेष मेडिकल उपकरण, वहां कमी और कीमत में उछाल दोनों एक साथ देखने को मिलते हैं।
ऐसी परिस्थितियों में वर्तमान ट्रंप टैरिफ वार में भारतीय मूल के उन अमेरिकी नागरिकों की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है जिन्होंने वर्षों पहले वहां की नागरिकता ग्रहण की है। लगभग पचपन लाख की संख्या वाला यह समुदाय उच्च औसत आय, तकनीकी दक्षता और उद्यमशीलता के लिए प्रसिद्ध है। इसी वर्ग के वोटर को प्रभावित करने हेतु ट्रंप ने हाउडी मोदी शो आयोजित किया था। भारतीयों में देश के प्रति आत्मीयता का यह भाव नैसर्गिक होता है। टेक्नोलॉजी, स्वास्थ्य, खुदरा व्यापार और आपूर्ति चेन जैसे क्षेत्रों में भारतीयों की अमेरिका में गहरी उपस्थिति है। यह समुदाय आपूर्ति के नए मार्ग बनाने, उत्पादों के स्थानीय विकल्प विकसित करने और नीति संवाद में सक्रिय होकर टैरिफ के प्रभाव को संतुलित कर सकता है।
भारतीय मूल के उद्यमी मित्र-रीशोरिंग के माध्यम से भारत, वियतनाम और मेक्सिको जैसे देशों से आपूर्ति बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। वे उत्पाद डिज़ाइन में बदलाव लाकर आयातित घटकों पर निर्भरता कम कर सकते हैं। इनके पास भाषा, विश्वास और नियामकीय समझ का ऐसा संयोजन है जो व्यापारिक बदलाव को गति दे सकता है।
इसी तरह चीनी मूल के अमेरिकी नागरिक भी चार से पांच मिलियन की संख्या में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। वे वैज्ञानिक, चिकित्सा, लॉजिस्टिक्स और व्यापार जगत में अग्रणी स्थान रखते हैं। वे वैकल्पिक आपूर्ति का निर्माण, डेटा-आधारित नीति संवाद और संयुक्त उद्यमों को अमेरिकी नियमों के अनुरूप ढालने में सहयोग कर सकते हैं। हालांकि भू-राजनीतिक तनाव के समय उनके लिए सामाजिक दबाव और संदेह का माहौल चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
ब्राज़ील मूल के अमेरिकियों की संख्या अपेक्षाकृत कम, लगभग पांच लाख है, किंतु कृषि, खाद्य प्रसंस्करण और ई-कॉमर्स जैसे क्षेत्रों में उनका योगदान उल्लेखनीय है। स्टील और एल्युमिनियम के व्यापार में भले ही तनाव रहा हो, पर दक्षिण अमेरिका से विविध आपूर्ति और मूल्य स्थिरता बनाए रखने में वे सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं।
इस सब में इन अमेरिकन नागरिकों के उनके मूल देश से जुड़े प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
कुल मिलाकर, टैरिफ बढ़ने का असर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर दबाव, घरेलू कंपनियों द्वारा कीमतें बढ़ाने और निर्यात में कमी के रूप में सामने आता है। जवाबी टैरिफ से कृषि और विनिर्माण दोनों पर चोट लगती है और अंततः करदाता को राहत पैकेज का बोझ उठाना पड़ता है।
इस पृष्ठभूमि में भारतीय, चीनी और ब्राज़ीलियाई मूल के अमेरिकी नागरिक तीन स्तरों पर निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं,उपभोक्ता के रूप में सजगता और सामूहिक सौदेबाजी, उद्यमी के रूप में वैकल्पिक सोर्सिंग और नवाचार, तथा नागरिक के रूप में तथ्यों पर आधारित नीति बहस। प्रवासी समुदायों की ऊर्जा, ज्ञान और नेटवर्क टैरिफ के झटकों को सहन करने योग्य बना सकते हैं। सवाल यह नहीं है कि टैरिफ रहेंगे या नहीं, सवाल यह है कि उन्हें कितनी बुद्धिमानी से साधा जाएगा ताकि दोनों देशों में घरेलू सुरक्षा भी बनी रहे, प्रतिस्पर्धा भी कम न हो और आम उपभोक्ता की थाली व थैले पर अनावश्यक भार न पड़े