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उज्जैन से पैदल कावड़ यात्रा खामोर पहुंची,सैकडो ग्रामीणों ने ढोल नगाड़ों से किया अभिनंदन

कावड़ यात्रा के कलश में शिप्रा नदी के जल से महादेव का किया रूद्राभिषेष

शाहपुरा@(किशन वैष्णव) श्रावण मास में भगवान शंकर की भक्ति और आराधना में हर कोई डूबा हुआ है।श्रावण मास को भगवान शिव ओर माता पार्वती का विशेष माह माना जाता है।और इस माह में कावड़ यात्रा जिसमें तीर्थ स्थलों एवं नदियों का शुद्ध जल लेकर आते हैं और भगवान शिव का विशेष रुद्राभिषेक करते हैं जो पौराणिक मान्यताओं में विशेष माना जाता है।खामोर से नवयुवक मंडल पिछले चार साल से देश के अलग अलग तीर्थ स्थलों से पैदल कावड़ यात्रा लेकर आते हैं।कावड़ यात्री राजू तेली ने बताया कि 11 जुलाई को कावड़ यात्रा लेने के लिए 14 यात्रियों का जत्था अंगुचा रोड स्थित रामनिवास दास महाराज की छतरी ख़ाखी जी महाराज समाधी स्थल पर आशीर्वाद लेकर कावड़ यात्रा के लिए रवाना हुए थे।अबकी बार पैदल कावड़ यात्रा के लिए जत्था उज्जैन स्थित श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित शिप्रा नदी से लेकर आए थे।14 यात्रियों का जत्था 12 जुलाई को वहां पहुंचा और महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के श्रावण मास के लाखों भक्त बीच दर्शन किए,यात्रियों ने बताया कि वहां श्रावण माह में हर कोई भक्त भस्म आरती,जलाभिषेक और शिव नाम संकीर्तन से पूरा शिवमय हो रहा था।यात्रियों ने दर्शन के बाद शिप्रा नदी तट पर नदी जल का विशेष पूजा अर्चना कर कावड़ तैयार कर शिप्रा नदी के शुद्ध जल को कावड़ के दोनों सिरों पर बंधे कलशों में भरा गया और हर हर महादेव के जयकारों के साथ पैदल खामोर के लिए यात्रा शुरू की।यात्री दिनेश सोनाव ने बताया कि 450 किलोमीटर उज्जैन से खामोर 14 यात्री पैदल कावड़ लेकर पहुंचे।रात दिन एक के बाद एक यात्री प्रति 5 किलोमीटर दूरी पर एक दूसरे को कावड़ देते थे साथ ही रात दिन एक क्षण के लिए नहीं रोकी गईं।तीसरे दिन में रात्रि को पैदल भीलवाड़ा पहुंचे जहां शिव भक्तों ने स्वागत किया माला पहनाई और अभिनंदन किया।वही से खामोर पहुंचने पर ग्रामीणों ने जुलूस निकाला,माला व साफा पहनाया,चंदन तिलक लगाया।सभी ग्रामीणों ने पैदल कावड़ यात्रियों के चरण स्पर्श किए तथा शाहपुरा रोड राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय से बस स्टैंड,तेजाजी चौक,चारभुजा मंदिर होते हुए डेयरी चौराहा और नृसिंह मंदिर खामोर पहुंचे जहां महाआरती के बाद कावड़ यात्रियों ने नृसिंह द्वारा मंदिर के महंत छेलबिहारी दास और अयोध्या के संत गोपाल दास महाराज का आशीर्वाद लिया।तथा वहां शिप्रा नदी के शुद्ध जल और कावड़ यात्रियों ने महादेव मंदिर की परिक्रमा की तथा विद्वान पंडित भरोसाराम महाराज ने शिप्रा नदी के शुद्ध जल और पंचामृत से भगवान भोलेनाथ का रुद्राभिषेक करवा।कावड़ यात्रियों के साथ गांव की महिलाओं ने नृसिंह मंदिर में भजन कीर्तन किया।वही ग्रामीणों ने जब अयोध्या से पधारे गोपाल दास महाराज से श्रावण मास की विशेषता पूछी गई तो उन्होंने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के समय जब हलाहल विष निकला तो संपूर्ण सृष्टि के कल्याण के लिए भगवान शिव ने वह विष अपने कंठ में धारण किया।जिससे वे नीलकंठ कहलाए। यह घटना श्रावण मास में ही घटी थी।
उस समय देवताओं ने शिवजी को गंगा जल चढ़ाया ताकि विष की गर्मी शांत हो सके। तभी से श्रावण मास में जलाभिषेक और विशेष पूजन की परंपरा आरंभ हुई।कावड़ यात्रियों में राजू तेली,दिनेश सोनावा,सुरेश वैष्णव, रामप्रशन साहू,नरेश,कमल, प्रकाश,रामकिशन, हगाम तेली सहित यात्री थे।

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