Homeभीलवाड़ाशीतला अष्टमी पर कोठिया में मनाई जाती है बेहद अनोखी होली

शीतला अष्टमी पर कोठिया में मनाई जाती है बेहद अनोखी होली

होलिका दहन की लकड़ी सहित अनेक सामान का उपयोग कर इलाजी बनाए जाते है।

शादी रस्म में गाये जाने वाले गीत ओल्या पढ़े जाते है ।

किशन वैष्णव
स्मार्ट हलचल,शाहपुरा|कोठीया में शीतला अष्ठमी का पर्व अनोखे अंदाज में प्रति वर्ष की भांति इस बार भी मनाया गया।ग्रामीणों में शीतला अष्टमी को लेकर काफी उत्साह नजर आया जिसकी तैयारी लड़को द्वारा जलाई होलिका दहन की लकड़ी से इलाजी का निर्माण किया गया ।
सात दिन युवाओं द्वारा इलाजी का निर्माण धीरे धीरे किया किया गया।
इलाजी के निर्माण में गोबर की बनाई थापडिया से इलाजी का पेट का निर्माण होता है ,कपास की लकडीयो से इलाजी के हाथ और पैर बनाये जाते है इनके साथ तालाब की काली गीली मिट्टी मिक्स की जाती है ।
मुँह को बड़े मटके द्वारा निर्माण किया जाता है फिर अलग अलग तरह के रंग कर इलाजी को सजाया जाता है ।
इलाजी निर्माण पूर्ण होने के बाद शीतला अष्टमी से एक दिन पहले युवाओं द्वारा रात को ढोल नगाड़ों के साथ बिन्दोली निकाली जाती जिसमे ग्राम में जिस परिवार में नई दूल्हन आई हो या परिवार में बच्चे का जन्म हुआ हो या कोई अन्य खुशी का आयोजन हुआ हो उससे नेक लिया जाता है।महिलाओं द्वारा शीतला अष्टमी की रात्रि को घरों में बने पकवान ठंडे का भोग लगाकर शीतला माता की पूजा अर्चना की जाती है और साथ ही निसन्तान महिलाओं द्वारा इलाजी की पूजा अर्चना की जाती है लोगो की मान्यता है कि अगर किसी परिवार में संतान नही हो रही है तो इलाजी की पूजा करने से उसके परिवार में खुशियां जल्द आती है ।
इलाजी की शीतला अष्टमी के दिन शादी की रस्म अदा की जाती है उस दौरान आसपास गांवों से सेकड़ो ग्रामीण इकट्ठा होते है और इलाजी कि शादी रस्म में गाये जाने वाले गीत (ओल्या) पढ़े जाते है ।

वर्षो पुरानी परम्परा आज भी है जिंदा।

कोठिया में आज भी युवाओं और ग्रामवासियों द्वारा वर्षो पुरानी परम्परा को निभाते आ रहे है अलग अंदाज में होली महोत्सव मनाया जाता है।युवा वर्ग जोश के साथ इस पर्व को मनाते है पूर्व ग्राम में इलाजी निर्माण के साथ इली (महिला) भी बनाई जाती थी।पर धीरे धीरे यह परंपरा समाप्त हो गई और अब वर्षो से केवल इलाजी का ही निर्माण होता आ रहा है ।घुटनो तक भरा जाता है पानी। इलाजी के शादी के गीत के बाद इलाजी के पास ही बाजार में घुटनो तक पानी (आला)भरा जाता जिससे इलाजी को भिगोया जाता है और फिर गिराया जाता और लकड़ी से फिर कृत्रिम तालाब में लकडी से खेल खेला जाता है युवाओं की दो पार्टियां बन जाती है फिर लकडी पर युवाओं द्वारा जोर आजमाइश की जाती हैकार्यक्रम को देखने के लिए आस पास के क्षेत्र आगुंच माइंस, कोटड़ी , माली खेड़ा ,शाहपुरा , कनेछन कला, गुलाबपुरा ,हुरड़ा , सहित अनेक क्षेत्र से महिलाये और पुरुष भाग लेते है ।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -