Homeअध्यात्मपौरुष के प्रतीक संकट मोचन वीर हनुमान

पौरुष के प्रतीक संकट मोचन वीर हनुमान

शैलेन्द्र दुबे 
स्मार्ट हलचल/भारत सहित दुनिया में ऐसे अनेक देव स्थान हैं। जहां मूर्ति रूप में ईश्वर की सर्वांगमयी सत्ता से साक्षात्कार होता है। मनुष्य यहां पर सासांरिक प्रपंचों को विस्मृत कर अलौकिक परमानंद की अनुभूति प्राप्त करता है इसीलिए हिन्दू उपासना पद्धति में मूर्ति स्वरूप की पूजा अनुष्ठान का विशेष महत्व है। सांगोपांग विधि से प्रतिष्ठापित विग्रह में साक्षात ईश्वरीय अंश अवतारित होकर साधक भक्त को अभीष्ट सिद्धि प्रदान करते हैं।
पौरुष प्रतीक सूत्र अंजनी पुत्र मारुति नंदन का उल्लेख हिन्दू धर्म ग्रंथों में श्रीराम सीता एवं अनुज लक्ष्मण के साथ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के अनन्य सेवक के रूप में वर्णित है। वानर श्रेष्ठ हनुमंत लाल जी अतुलनीय बल-बुद्धि के सागर हैं। चैत्र पूर्णिमा के दिन मंगलवार को श्री हनुमान जी का जन्म हुआ था। चैत्र पूर्णिमा को महावीर मारुति नंदन का जन्मोत्सव हिन्दू समुदाय द्वारा सारे विश्व में बड़े श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।
हिन्दू धर्म में बाल ब्रह्मचारी, संयम एवं पौरुष के प्रतीक महाबली हनुमान जी को ईश्वरीय दर्जा प्राप्त है। हनुमान जी के आराध्य देव श्रीराम हैं। श्री हनुमान के हृदयरुपी मंदिर में धनुष-बाण धारण किये श्रीराम-सीता निवास करते हैं। सीता हरण के बाद रावण का वध करने में लंका विजय के दौरान श्रीराम को वीर हनुमान जी का योगदान महत्वपूर्ण रहा। युद्ध भूमि में लक्ष्मण को शक्ति की मूर्च्छा से जगाने संजीवनी बूटी के लिए महाबली हनुमान पूरा पर्वत ही उठा लाए थे।
श्री हनुमान जी की जन्मकथा
श्री हनुमान जी के जन्म की कथा विचित्र है। उन दिनों हिमालय पर्वत पर आश्रम में कश्यप मुनि अन्य ऋषि-मुनियों के साथ तपस्या किया करते थे। एक दिन आश्रम में एक मदमस्त हाथी अचानक घुस आया। उन्मुक्त हाथी के भय से आश्रम के ऋषि-मुनि किसी तरह अपने प्राणों की रक्षा कर भागे। उस समय इस क्षेत्र पर वानरों के राजा केसरी का राज्य था। केसरी ने मदमस्त हाथी का वध करके ऋषियों के प्राणों की रक्षा की तब ऋषियों ने प्रसन्न होकर केसरी से वरदान मांगने को कहा। वरदान स्वरूप केसरी ने पवन के समान तेज चलने वाले, बुद्धिबल, चातुर्य और रूप की खान के समान पुत्र की कामना ऋषि मुनियों से की। मुनियों ने यह वरदान केसरी को दे दिया।
केसरी की पत्नी और हनुमान जी की माता अंजनी एक दिन श्रृंगार करके पर्वत पर बैठी थी उस समय उनके स्वरूप को देखकर पवन मुग्ध हो गया और उनके वस्त्र को उड़ाकर अंजनी को स्पर्श किया। इस पर कुपित होकर पतिव्रता अंजनी पवन को श्राप देने तत्पर हो गईं। अंजनी को क्रोध में जानकर पवन ने कहा कि हे अंजनी, मेरा अपराध क्षमा करो, तुम्हारे पति केसरी ने मुनियों से मेरे समान पुत्र की कामना की है- अत: मुनिश्वरों की बातें झूठी नहीं हो सकती इसीलिए तुम मुझसे पुत्र प्राप्त करो। इस प्रकार शुभ घड़ी में हनुमान जी का जन्म हुआ।
श्री हनुमान का नामकरण
एक दिन श्री हनुमान की माता अंजनी शिशु हनुमान को गोद में लिए दुलार रही थीं। आसमान में सूर्य को उदय हुआ देखकर और सूर्य को खेलने की वस्तु समझकर अकस्मात श्री हनुमान स्वर्ग जा पहुंचे। जैसे ही सूर्य को पकड़ने उन्होंने अपना हाथ बढ़ाया, देवों के राजा इंद्र ने बालक हनुमान पर वज्र प्रहार कर दिया। बालक हनुमान वज्र प्रहार से मूर्च्छित हो गए। वज्र के प्रहार से श्री हनुमान की ठोड़ी पर निशान बन गया, जिससे उनका नाम हनुमान पड़ गया।
श्री हनुमान की मूर्च्छा जब भंग हुई तो उन्होंने समूचे सूर्य को अपने मुख में निगल लिया। जिसके फलस्वरूप संसार में अंधेरा छा गया। ऐसी संकट की घड़ी में देवतागण महादेव श्री शंकर के पास पहुंचे। देवताओं ने सूर्य को हनुमान से मुक्त करने को शिव से अनुरोध किया। श्री शंकर ने देवताओं को केसरी के पास जाने की आज्ञा दी। देवतागण घबराकर केसरी के पास पहुंचे। उधर पवन देव ने क्रोधवश अपनी सांस रोक ली, जिससे संसार वायुविहीन हो गया। संसार में चारों तरफ हा-हाकार मच गया। तब केसरी व पवन से सभी देवताओं ने माफी मांगी और सूर्य को श्री हनुमान जी के मुख से मुक्त करने की प्रार्थना की। देवताओं ने सूर्य की मुक्ति पर प्रसन्न होकर केसरी से वरदान मांगने को कहा। तब केसरी ने देवताओ से श्री हनुमान को अजर-अमर करने का से वरदान मांगा। उन्होंने देवताओं से यह भी वरदान मांगा कि हनुमान के बराबर संसार में दूसरा कोई बलशाली न हो और हनुमान श्रीराम की भक्ति में लीन रहें।
श्रीराम-हनुमान मिलन
श्रीराम का हनुमान के प्रति स्नेह सर्वविदित हैं। अयोध्या के राजा दशरथ के द्वार पर एक दिन मदारी बंदर का खेल दिखा रहा था। बालक श्रीराम मदारी का खेल देखकर बंदर लेने की जिद कर मचल उठे, श्रीराम के पिता राजा दशरथ ने बहुत से बंदर मंगवाए लेकिन बालक श्रीराम को एक भी बंदर पसंद नहीं आया। तब गुरु वशिष्ठ के कहने पर पंपापुर के युवराज सुग्रीव के पास से श्री हनुमान जी को बुलवाया गया। बालक राम ने श्री हनुमान को गले से लगा लिया और उन्हें अपना मित्र बनाया। श्रीराम-लक्ष्मण सहित विश्वामित्र के साथ उनके यश की रक्षा करने जब वन में जाने लगे, तब उन्होंने हनुमान को वापस सुग्रीव के पास जाने की आज्ञा दी और कहा कि जब वे सीता की तलाश में आयेंगे तब हमारी पुन: भेंट होगी।
इस तरह भगवान राम के चौदह वर्ष वनवास के दौरान रावण द्वारा सीता का हरण कर लिए जाने पर श्रीराम जब सीता की खोज करने किंष्किंधा पर्वत पर पहुंचे, श्रीराम और श्री हनुमान में पुन: भेंट हुई, लंका विजय अभियान पर वीर हनुमान सहित वानर सेना का श्रीराम को सहयोग आज भी सर्वज्ञात है।
श्री हनुमान को सिंदूर लेपन
श्री हनुमान मंदिरों में स्थापित संकट मोचन हनुमान की प्रतिमा को सिंदूर लेप किया जाता है। प्रतिमा को सिंदूर के लेपन के संदर्भ में यह मान्यता है कि एक समय माता जानकी को श्री हनुमान ने मांग में सिंदूर भरते हुए देखा। अचानक श्री हनुमान के मन में कौतुक जागा और उन्होंने माता सीता से मांग में सिंदूर भरने का कारण जानना चाहा। श्री हनुमान की उत्सुकता जानकर मां सीता हंस पड़ी। हनुमान के भोलेपन का जवाब देते हुए उन्होंने बताया कि वे अपने स्वामी श्रीराम की मंगल कामना एवं उनके दीर्घ जीवन की कामना के लिए मांग में सिंदूर भरती हैं। कुछ देर बाद श्री हनुमान अपने पूरे शरीर पर सिंदूर का लेप करके मां जानकी के समक्ष पहुंचे। मां सीता उनका यह रूप देखकर आश्चर्यचकित हो गईं। तब श्री हनुमान माँ जानकी से बोले कि हे मां, मैं भी तो अपने स्वामी श्रीराम का सेवक हूं, इस नाते उनके जीवन की मंगल कामना करना मेरा भी कर्तव्य है- अत: मैंने अपने पूरे शरीर पर सिंदूर का लेप कर लिया तभी से श्री हनुमंत लाल जी को सिंदूर चढ़ाया जाता है।
पौरुष-बल के प्रतीक
अतुलित बलशाली संकट मोचन श्री हनुमान को पौरुष, संयम एवं बल का प्रतीक अखाड़ों-व्यायामशालाओं में कसरत एवं कुश्ती लड़ने वाले पहलवान मानते आए हैं, अखाड़ों में पहलवान श्री हनुमान की गदाधारी, लंगोट एवं मुकुटधारी प्रतिमा को साक्षी मानकर लाल मिट्टी पर मुगदर एवं झूलों पर कसरत, व्यायाम एवं कुश्ती का अभ्यास करते हैं।

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