शाहपुरा-साहित्य सृजन कला संगम के तत्वावधान में शाहपुरा के 394 वें स्थापना दिवस पर ‘प्रेम- मोहन’ भवन में आयोजित हुई। काव्य गोष्ठी में विविध रंगों में रचनाएं कवियों ने प्रस्तुत की। शाहपुरा जिले को फिर से बहाल करने को लेकर कवियों ने व्यंग्य बाण चलाए। काव्यगोष्ठी का आरंभ प्रसिद्ध साहित्यकार एवं अंतरराष्ट्रीय कवि डॉ. कैलाश मंडेला द्वारा शाहपुरा के इतिहास एवं वर्तमान स्थिति पर लिखित महत्वपूर्ण लेख एवं डॉक्यूमेंट्री “मैं शाहपुरा हूँ” को सुनाया तो लगा कि मानो सम्पूर्ण शहर और शाहपुरा क्षेत्र का इतिहास एवं विशेषताएं जीवन्त हो गई। इस आलेख में शाहपुरा स्थापना से लेकर आज तक की घटनाओं का समावेश दस्तावेज के रूप में प्रस्तुत हुआ है। वरिष्ठ गीतकार कवि बालकृष्ण बीरा की मां शारदे की वन्दना ‘भाव मांडणा मनड़ा म मंडाय दे’ जैसी बेहतरीन रचना से हुआ। सीए अशोक बोहरा ने ‘ मैं हूँ इस देश का आम नागरिक एवं देश के आंतरिक आतंकवाद पर रचना प्रस्तुत कर सबकी दाद बटोरी।
कवि ओम अंगारा ने ‘ओछा मिनख सूं प्रीत राखबो’ जैसी सार्थक रचना सुनाई। गोष्ठी का संचालन कर रहे हास्य कवि दिनेश बंटी ने छोटी – छोटी रचनाओं से आनंदित कर अपनी कविता ‘शहर हमको कह रहा है, ये किला क्यों ढह रहा है’ तथा मैंने जागती आंखों से सपना देखा है, आज भी कई दफ्तरों पर जिला शाहपुरा लिखा है।’ सुनाई। शिव प्रकाश जोशी ने ‘घायल धरती की छाती पर कैसे गीत लिखूं मैं’ एवं ‘हाल क्या है दिलों का बताया नहीं जाता’ पर खूब दाद पाई। वरिष्ठ कवि भंवर भड़ाका ने ‘पनघट, कुआ आज बेजान हो गया, सारी दुनिया का कूड़ेदान हो गया’ रचना का बेहतरीन काव्यपाठ किया।
संस्था अध्यक्ष जयदेव जोशी ने ‘शाहपुरा जो रामस्नेही संतों की पावनपीठ है जहां प्रेम और भक्ति का वैराग्य है।’ सुना कर दाद दी। शायर विष्णुदत्त विकल ने अपनी गजल में ‘इतनी बेशर्मी कहां से लाते, खुद लुटेरे चोर – चोर चिल्लाते हैं ‘ तथा ‘अपनी जन्म भूमि से जो कर रहे दगा वो जननी इन्हीं पर शर्मसार है।’ जैसी पीड़ाओं को रखा। सोमेश्वर व्यास एवं गोपाल राजगुरु ने शाहपुरा के गौरवशाली इतिहास का बखान किया। गीतकार सत्येंद्र मंडेला ने ‘लाडा की भुआ’ पात्र से बेहतरीन हास्य व्यंग्य प्रस्तुत किया। वरिष्ठ गीतकार बालकृष्ण बीरा ने ‘शाहपुरा रो गुणगान करां ई धरती रो सम्मान करां’ प्रस्तुत कर खूब वाहवाही बटोरी। कार्यक्रम के अंत में डॉ. कैलाश मंडेला ने अपनी दार्शनिक हिन्दी ग़ज़ल ‘जिन्हें दुनिया सदा उपलब्धियां कह कर गिनाती है, उन्हें अपनी बताने में मुझे क्यों शर्म आती है। कभी मैं सोचता हूं क्या यही था ध्येय सचमुच में। किसी अज्ञात मंजिल की कसक फिर क्यों सताती है।।’ सुनाकर बढ़िया ढंग से गोष्ठी को समापन तक पहुंचाया। काव्य गोष्ठी में समाजसेवी रामस्वरूप काबरा, अधिवक्ता अनिल शर्मा, अखिल व्यास सहित गणमान्य व्यक्तियों ने अपनी उपस्थित दी।


