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आखिर क्या चाहिए सोनम वांगचुक को

आखिर क्या चाहिए सोनम वांगचुक को

(राकेश अचल-

स्मार्ट हलचल/सोनम वांगचुक पिछले एक पखवाड़े से लद्दाख की खून जमा देने वाली सर्दी में अनशन पर हैं ,लेकिन दुर्भाग्य कि लद्दाख के बाहर किसी को न सोनम दिखाई दे रहे हैं और न सुनाई दे रहे है। सवाल ये है कि सोनम वांगचुक को क्या चाहिए ? सोनम केवल अपनी जन्मभूमि लद्दाख को पूर्ण राज्य बनाने और संविधान की छठी अनुसूची लागू करने की मांग को लेकर अनशन पर हैं।
अभी पूरा देश चुनाव के खुमार में है लेकिन देश की सत्तारूढ़ पार्टी को तो छोड़िये दीगर विपक्षी राजनीतिक पार्टियों को भी सोनम वांगचुक नहीं दिखाई दे रहे है। सोनम अकेले अपने लोगों की लड़ाई लड़ रहे हैं। आपको बता दें कि सोनम की मातृभूमि लद्दाख पहले जम्मू-कश्मीर राज्य का हिस्सा होती थी लेकिन धारा 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा समाप्त कर उसके तीन हिस्से कर दिए गए। सोनम का लद्दाख अब किसी राज्य का हिस्सा नहीं है। लद्दाख केंद्र के आधीन है। सोनम चाहते हैं कि लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाये और वहां संविधान की छठी सूची लागू की जाये।
सरकार से इस दिशा में बातचीत विफल रहने के बाद वांगचुक ने अपना अनशन छह मार्च को शुरू कर दिया था। इसके लिए उन्होंने लेह के नवांग दोरजे मेमोरियल पार्क को चुना । हाड़ कंपा देने वाली ठंड और शून्य से नीचे तापमान के बावजूद उनके प्रदर्शन में हिस्सा लेने वालों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है। आपको बता दूँ कि तीन फरवरी को भी लेह में छठी अनुसूची को लागू करने की मांग को लेकर कड़ाके की ठण्ड में एक बड़ा प्रदर्शन हुआ था, जिसमें हज़ारों लोगों ने भाग लेकर अपनी बात रखी।
सोनम वांगचुक नवाचारी और शिक्षा सुधारक हैं।उनकी अपनी एक छोटी सी राजनीतिक पार्टी न्यू लद्दाख मूमेंट भी है। सोनम छात्रों के एक समूह द्वारा 1988 में स्थापित स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (एसईसीओएमएल) के संस्थापक-निदेशक भी हैं। सोनम ने लद्दाख के युवाओं पर थोपी गयी शिक्षा प्रणाली को ठुकराते हुए एसईसीएमओएल परिसर को डिजाइन किया जो पूरी तरह से सौर-ऊर्जा पर चलता है, और खाना पकाने, प्रकाश ( या हीटिंग) के लिए जीवाश्म ईंधन का उपयोग नहीं करता ।
सोनम वांगचुक से मेरी मुलाकात पिछले महीने ही ग्वालियर में हुई थी । उन्हें ग्वालियर के आईटीएम विश्विद्यालय ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि देने के लिए ग्वालियर आमंत्रित किया था। जो लोग सोनम के बारे में नहीं जानते उन्हें बता दूँ कि सोनम को सरकारी स्कूल व्यवस्था में सुधार लाने के लिए सरकार ने ग्रामीण समुदायों और नागरिक समाज के सहयोग से 1994 में “ऑपरेशन न्यू होप” शुरु करने का श्रेय भी प्राप्त है। सोनम ने बर्फ-स्तूप तकनीक का आविष्कार किया है जो कृत्रिम हिमनदों (ग्लेशियरों) का निर्माण करता है, शंकु आकार के इन बर्फ के ढेरों को सर्दियों में पानी का संचय करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। फिल्म थ्री इडियट्स में आमिर खान का किरदार फुंगसुक वांगडू सोनम की जिंदगी से प्रेरित था।
सोनम के पास कोई बड़ी सियासी ताकत नहीं है ,लेकिन सोनम के पास मौलिक विचारों की कमी नहीं है । उन्होंने पिछले सालों में जब चीन को सबक सिखाने के लिए ‘बुलेट नहीं वॉलेट ‘ का मन्त्र दिया था तब चीन की सरकार तक सनाके में आ गयी थी । उन्होंने चीनी सामान के बहिष्कार की अपील की थी। लद्दाख के लोग सोनम से बेहद प्यार करते हैं ।सोनम वांगचुक के अनशन के 13 वें दिन उनके समर्थन में सैकड़ों लोग भी भूखे रहे और रात को भूखे सोए।उन्होंने स्पष्ट किया कि आखिर उनकी मांग क्या है और इसका मकसद लोगों को लद्दाख में प्रवेश से रोकना नहीं है। उन्होंने बताया कि छठी अनुसूची का मकसद सिर्फ बाहरी लोगों को ही रोकना नहीं है, बल्कि पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील इलाके, संस्कृति एवं जनजातियों को सभी प्रकार के संरक्षण की जरूरत है।
सवाल ये है कि क्या सोनम की मांगे अनुचित हैं ? क्या उन्हें पूरा नहीं किया जाना चाहिए ? आज सोनम की मांगें और आमरण अनशन के चलते मुमकिन है कि सरकार सोनम की बात को सुने ,समझे और मान भी ले। सोनम न कांग्रेसी हैं और न भाजपाई ,वे भूमिपुत्र है, इंजीनियर हैं और अपनी पढ़ाई-लिखाई तथा तजुर्बों से अपने लोगों को लाभान्वित करना चाहते हैं। क्या सोनम की साधना में भी व्यवधान आएगा ? क्या सोनम हार जायेंगे ? क्या ये देश सोनम के साथ खड़ा होगा ? ये ऐसे तमाम सवाल हैं जो केवल दिल्ली की केंद्रीय सत्ता से ही नहीं बल्कि सभी राजनैतिक दलों और आम जनता से किये जा रहे है। क्या आप सोनम के साथ हैं ?(विनायक फीचर्स)

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