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क्या है फिल्म उदयपुर फाइल्स का आधार और कौन होगा इससे प्रभावित ?

>अशोक भाटिया , मुंबई
स्मार्ट हलचल| 28 जून 2022 को, राजस्थान के उदयपुर में दो मुस्लिम पुरुषों ने एक भारतीय दर्जी, कन्हैया लाल तेली का सिर कलम कर दिया । हमलावरों ने इस हमले को कैमरे में लाइव कैद किया और वीडियो ऑनलाइन प्रसारित कर दिया था । बताया जाता है कि लाल की हत्या कथित तौर पर भारतीय राजनेता और भारतीय जनता पार्टी की प्रवक्ता नूपुर शर्मा के समर्थन में एक सोशल मीडिया पोस्ट साझा करने के लिए की गई थी , जिनकी टिप्पणियों के कारण 2022 मुहम्मद टिप्पणी विवाद हुआ था । हमलावरों ने लाल की हत्या करने से पहले ग्राहक बनकर उनके स्टोर में प्रवेश किया। [ हत्या के वीडियो इंटरनेट पर पोस्ट किए गए थे, जिसमें दो कथित हमलावर कसाई के चाकू पकड़े हुए थे और हत्या की जिम्मेदारी लेते हुए खुद की पहचान मुहम्मद रियाज अत्तारी और मुहम्मद गौस के रूप में कर रहे थे।
11 जून को लाल के पड़ोसी नाज़िम ने नुपुर शर्मा के समर्थन में एक विवादास्पद सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर उनके खिलाफ मामला दर्ज कराया था, जिसके कारण लाल की गिरफ्तारी हुई थी। इसके बाद लाल को जमानत पर रिहा कर दिया गया था। 15 जून को लाल ने जान से मारने की धमकी मिलने के बाद स्थानीय पुलिस में सुरक्षा की गुहार लगाई थी। [ 2 ] धान मंडी पुलिस स्टेशन में नाज़िम और पांच अन्य के खिलाफ अपनी शिकायत में लाल ने कहा कि उन्हें नाज़िम और अन्य से धमकियां मिल रही हैं और आरोप लगाया कि समूह ने उनकी तस्वीर सोशल मीडिया पर अपने समुदाय के भीतर एक संदेश के साथ प्रसारित की है कि अगर लाल कहीं भी दिखाई दिए या उन्होंने अपनी दुकान खोली तो उन्हें मार दिया जाना चाहिए। पुलिस ने कहा कि उन्होंने मध्यस्थता की और नाज़िम और लाल के बीच मामले को सुलझा लिया। कन्हैया ने तब पुलिस को बयान दिया कि वह मामले में आगे कोई कार्रवाई नहीं चाहता है। लाल ने कहा कि विवादास्पद पोस्ट उनके बेटे द्वारा अनजाने में अपने फोन पर गेम खेलते समय साझा की। ।
दो आरोपियों में से एक, मुहम्मद रियाज़ अत्तारी ने 17 जून को हमले से कुछ दिन पहले एक वीडियो बनाया था जिसमें उसने पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ टिप्पणी के लिए हत्या करने का इरादा जताया था, एक “वायरल” वीडियो बनाने और आगे के परिणामों के लिए अपनी उपेक्षा की थी ।
बताया गया था कि 28 जून को दो हमलावर ग्राहक बनकर लाल की दर्जी की दुकान में घुसे। जब लाल ने उनमें से एक के लिए नाप लेना शुरू किया तो दोपहर 2।45 बजे उन पर चाकू से हमला कर दिया गया। हमलावरों ने पूरे हमले का वीडियो बना लिया। लाल को काबू में करने के बाद दोनों आरोपी उसे दुकान से बाहर खींचकर ले गए और अपनी वेल्डिंग वर्कशॉप में बने एक अस्थायी खंजर से उसका गला रेत दिया। लाल के शरीर के कई हिस्सों पर चाकू से वार किया गया। लाल के एक दुकान सहायक को भी उसे बचाने की कोशिश में सिर में गंभीर चोटें आईं। अन्य दुकानदारों ने उसे बचाने की कोशिश नहीं की। हमलावर पैदल भाग गए और फिर मोटरसाइकिल पर सवार होकर भाग गए। ऐसा प्रतीत होता है कि दूसरे वीडियो (हमले के बाद लिया गया) में, उन्होंने इस्लाम के अपमान का बदला लेने के लिए हत्या का दावा किया [ 16 ] और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ भी धमकियाँ दीं । जब कि जांच में आया कि वह पोस्ट उनके 8 वर्षीय बच्चे ने गलती से फॉरवर्ड कर दिया था। सिर्फ इतनी सी बात पर कुछ जाहिल युवकों ने उनकी बेहद निर्ममता से हत्या की थी
अब दर्जी कन्हैयालाल की हत्या पर आधारित बनी फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स: की रिलीज पर दिल्ली हाई कोर्ट ने रोक लगा दी है। ये फिल्म 11 जुलाई को रिलीज होने वाली थी। फिल्म को रोक लगाने में जमीयत उलेमा ए हिंद के मुखिया अरशद मदनी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इनके वकील हैं वही कपिल सिब्बल जो मोदी सरकार के हर कार्यों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में नजर आते हैं। ये वही कपिल सिब्बल हैं जो मनमोहन सिंह सरकार में एक खास मंत्री हुआ करते थे। फिलहाल अभी कांग्रेस से दूर होकर समाजवादी पार्टी की सहायता से राज्यसभा में हैं।
यह देश का दुर्भाग्य है कि जिन लोगों ने 3 साल पहले विडियो बनाकर दुर्दांत तरीके से एक शख्स की हत्या की वो अभी हत्या के दोषी साबित नहीं किए जा सके हैं। जबकि राज्य और केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। सारी जांच एजेंसियों पर इनका ही नियंत्रण है। कन्हैया लाल तेली के बेटे कहते हैं कि मेरे पिता के हत्यारों को 3 साल में न्याय नहीं मिल सका पर उनके जीवन पर बनी फिल्म को 3 दिन में बैन कर दिया गया। जाहिर है रोष तो होगा ही।कन्हैया लाल के जीवन पर बनी फिल्म से जाहिर है कि वही डर रहा होगा जो नहीं चाहता कि उनकी कहानी समाज के सामने आए। सोचने वाली बात है कि किसे डर लग रहा है कि कन्हैया लाल तेली की कहानी को फिल्म के माध्यम से सामने लाने से दंगे भड़क सकते हैं। जाहिर है जो यह बात कह रहा है वह स्पष्ट रूप से भारत सरकार और कोर्ट को धमकी दे रहा है।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दिल्ली, गुजरात, और महाराष्ट्र हाई कोर्ट में याचिकाएं दायर कीं थी। उनकी आपत्ति थी कि फिल्म का ट्रेलर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकता है और सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा सकता है। यह सीधे सीधे धमकी ही है कि सांप्रदायिक तनाव भड़क जाएगा। इसका मतलब देश के अधिकतर लोग समझते हैं। याचिका में दावा किया गया कि ट्रेलर देखकर ऐसा लग रहा है कि हत्या को धार्मिक नेताओं और संस्थानों की साजिश के रूप में दर्शाया गया।
हत्याकांड में शामिल एक आरोपी, मोहम्मद जावेद, ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें दावा किया गया कि फिल्म उनके निष्पक्ष मुकदमे के अधिकार को प्रभावित करेगी। जावेद को 2024 में राजस्थान हाई कोर्ट से जमानत मिली थी। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि फिल्म कन्हैया लाल हत्याकांड को फिर से सुर्खियों में ला सकती है। जिसमें आरोपियों के खिलाफ जनता का गुस्सा बढ़ सकता है। इतना ही नहीं गुस्सा तो डबल इंजन की सरकार पर भी लोगों का बढ़ेगा। आखिर केंद्र और राज्य दोनों ही जगहों पर बीजेपी की सरकार है।
जब भी किसी फिल्म को बैन करने की मांग उठती है तो देश में कुछ लोग विचारों की स्वतंत्रता का रोना लेकर बैठ जाते हैं। पर शायद उदयपुर फाइल्स से ऐसे लोग को ठेस नहीं लग रही है। नहीं तो सोशल मीडिया पर इस तरह के लोगों की बाढ़ आ जाती। सोशल मीडिया साइट X पर प्रोफेसर दिलीप मंडल लिखते हैं कि ओबीसी टेलर कन्हैया लाल तेली को क्यों और कैसे मारा गया, उसकी कहानी सामने आने से कपिल सिब्बल घबरा क्यों रहे हैं? वे किसको बचा रहे हैं? यह सुझाव देता है कि कुछ संगठनों को डर है कि फिल्म उनकी छवि को नुकसान पहुंचा सकती है।शायद मंडल का इशारा बिहार में होने वाले चुनाव में शामिल राजनीतिक दलों से है। क्योंकि बिहार चुनावों में एक ओबीसी दर्जी की हत्या में शामिल लोगों के सामने आने से कुछ राजनीतिक दलों का नुकसान होना तय है। एक हैंडल लिखता है कि कन्हैया लाल ने नूपुर शर्मा का समर्थन किया था, लेकिन सपा, कांग्रेस, और आप ने इसकी निंदा नहीं की थी। विपक्षी दल इस फिल्म को भाजपा की रणनीति के रूप में देख रहे हैं, जो सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ा सकती है।
फिल्म को बैन कराने में सबसे बड़ी भूमिका जमीयत उलमा-ए-हिंद की रही है। गौरतलब है कि इस संगठन का आतंकियों को बचाने और पनाह देने का इतिहास रहा है। 2007 में इस संगठन ने अपने नेता अरशद मदनी के नेतृत्व में एक लीगल सेल शुरू किया था, इसका मकसद आतंकवाद में गिरफ्तार हुए मुस्लिम लड़कों को कानूनी मदद देना था।इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अब तक 700 आरोपियों का बचाव किया है। जमीयत ने 7/11 का मुंबई ट्रेन विस्फोट, 2006 मालेगांव विस्फोट, 26/11 मुंबई आतंकी हमला, 2011 मुंबई ट्रिपल ब्लास्ट केस, मुलुंड ब्लास्ट केस, गेटवे ऑफ इंडिया ब्लास्ट केस के तमाम आरोपियों को बचाने में सफल रही । पर दुखद ये है कि जो बचे उनको कोर्ट ने इसलिए नहीं छोड़ा कि वे बेगुनाह थे बल्कि उनके खिलाफ पक्के सबूतों का अभाव था।देवबंद स्थित जमीयत उलेमा-ए-हिंद संगठन ने जून 2021 में उत्तर प्रदेश में कथित अल-कायदा आतंकवादियों के बचाव में अपने वकील लगाए थे। फरवरी 2022 में जमीयत ने उन 49 आतंकवादियों की मदद की जिन्हें अहमदाबाद में 21 बम धमाकों की योजना बनाने और उन्हें अंजाम देने के आरोप में दोषी ठहराया गया था।

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