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कब और क्यों मनाई जाती है शनि जयंती?शनि जयंती पर बन रहा महज 7 मिनट का शुभ योग

ज्योतिष शास्त्र में 9 ग्रह बताए गए हैं। हिंदू धर्म में इन ग्रहों को देवताओं के रूप में पूजा जाता है। शनि भी इन नवग्रहों में से एक है। शनि मानव जीवन पर सबसे ज्यादा असर डालता है, ऐसी मान्यता है। हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या पर शनि जयंती का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी तिथि पर सूर्यपुत्र शनिदेव का जन्म हुआ था। इस बार ज्येष्ठ मास की अमावस्या 2 दिन रहेगी, जिसके चलते शनि जयंती पर्व कब मनाया जाए, इसे लेकर भ्रम की स्थिति बन रही है।

कब है शनि जयंती 2025?
इस बार ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि 26 मई, सोमवार की दोपहर 12 बजकर 12 मिनिट से शुरू होगी, जो अगले दिन यानी 27 मई, मंगलवार की सुबह 08 बजकर 32 मिनिट तक रहेगी। चूंकि अमावस्या तिथि का सूर्योदय 27 मई, मंगलवार को होगा, इसलिए इसी दिन शनि जयंती का पर्व मनाया जाएगा। मंगलवार को अमावस्या होने से ये भौमवती अमावस्या भी कहलाएगी। इस दिन मंगल ग्रह की शांति के लिए भी उपाय किए जा सकते हैं। 27 मई को सुकर्मा, धृति और मातंग नाम के शुभ योग भी बनेंगे, जिसके इस पर्व का महत्व और भी बढ़ गया है।

शनि जयंती पर बन रहा महज 7 मिनट का शुभ योग

इस साल शनि जयंती पर एक बेहद खास योग बन रहा है – सर्वार्थ सिद्धि योग। यह योग केवल 7 मिनट के लिए रहेगा – सुबह 5:25 से 5:32 बजे तक। इस समय में किया गया कोई भी कार्य शुभ फल देता है. इसके अलावा दो और शुभ योग भी बन रहे हैं. उस दिन सुकर्मा योग सुबह से रात 10:54 बजे तक है. उसके बाद से धृति योग बनेगा. ज्येष्ठ अमावस्या तिथि में द्विपुष्कर योग सुबह 5:02 से 5:25 बजे तक रहेगा. यह 28 मई को होगा.

शनि जयंती का महत्व क्या है?

इस दिन व्रत रखने और शनि पूजा करने से जीवन में नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं.जो लोग शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या से परेशान हैं, उनके लिए यह दिन खास होता है. इस दिन शमी के पेड़ की पूजा करें, गरीबों को दान दें, सरसों के तेल से शनि देव का अभिषेक करें और छाया दान करें. ऐसा करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं और जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है.

क्यों मनाते हैं शनि जयंती 2025?
धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान सूर्यदेव का विवाह देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से हुआ था। विवाह के बाद संज्ञा को यम नाम का पुत्र और यमुना नाम की कन्या हुई। लेकिन संज्ञा अपने पति सूर्यदेव के तेज को सहन करने में असमर्थ महसूस करने लगी। तब संज्ञा ने अपनी परछाई छाया को सूर्यदेव की सेवा में छोड़ दिया और स्वयं तपस्या करने चली गई। सूर्यदेव और छाया के मिलन से शनिदेव उत्पन्न हुए। जब शनिदेव का जन्म हुआ उस दिन ज्येष्ठ मास की अमावस्या थी। तभी से हर साल इस तिथि पर शनि जयंती कापर्व मनाया जा रहा है।

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