लाखेरी – स्मार्ट हलचल|लाखेरी कस्बे में संचालित राजकीय विद्यालयों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। कस्बे के शंकरपुरा स्थित पीएम श्री महात्मा गॉंधी विद्यालय की हालात खराब है, यह विद्यालय संचालित होने योग्य नहीं है, फिर भी विद्यार्थियों एवं स्टाफ़ की जिंदगी के साथ खिलवाड़ करके संचालन किया जा रहा है। कुछ दिनों पूर्व झालावाड़ के सरकारी स्कूल में हादसा होने के बाद राज्य सरकार द्वारा प्रदेश में संचालित राजकीय भवनों की जांच करके उनको जर्जर करने की कार्यवाही की ताकि भविष्य में कोई घटना ना हो। शहर के पीएम श्री राजकीय महात्मा गॉंधी विद्यालय में राजकीय सर्वे टीम ने 13 कमरों को सील कर दिया, वर्तमान में विद्यालय में लगभग 140 विद्यार्थी अध्ययनरत है, एवं 11 शिक्षक कार्यरत हैं, जो डर के साए में कार्य कर रहे हैं। क्योंकि विभाग द्वारा कमरे सील करने के बाद अब बरामदे, एवं इधर उधर ही विद्यालय कार्य संपादित करने पड़ रहें हैं। जबकि इस विद्यालय में तीन आंगनबाड़ी स्वीकृत है, एवं वर्तमान में दो आंगनबाड़ी केन्द्र संचालित है। ऐसे में हर समय हादसे के माहौल में कार्य किया जा रहा है। सरकार द्वारा ऐसी स्थिति में अन्यत्र व्यवस्था का प्रावधान है, परन्तु शिक्षा विभाग आंखे मूंद कर बैठा हुआ है, और शायद हादसे का इंतजार कर रहा है। प्रशासन द्वारा कोई ध्यान नही दिया जा रहा है। इस विद्यालय में कुछ वर्षों पूर्व नवनिर्माण के तहत कमरों का निर्माण हुआ था, परन्तु घटिया निर्माण के चलते वो भी अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहे हैं। आखिर जब सरकार द्वारा यह विद्यालय पीएम श्री में परिवर्तित किया गया था, तब क्या आंखे बंद करके ही रिपोर्ट पेश कर दी थी, विद्यालय भवन की स्थिति की जांच भी नहीं की गई, अब ऐसे अधिकारियों पर सवाल उठता है, कि आखिर सरकारी अधिकारी ने इतनी जर्जर इमारत में पीएम श्री विद्यालय की स्वीकृति दे दी। यह तो प्रधानमंत्री के अटल लक्ष्य पर पानी फेरा जा रहा है। कस्बे के बस स्टैंड समीप राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय की हालात भी खराब है, इसमें में कई कमरों को जर्जर घोषित कर दिया, जो उपयोग करने योग्य नहीं है, अब विद्यार्थियों को कहाँ पर बैठाकर शिक्षा प्रदान की जाएं, आखिर इस बात को लेकर विद्यालय प्रशासन एवं अभिभावक चिंतित है, कैसे बच्चों को पढ़ाया जाए। आखिर सरकार, शिक्षा विभाग एवं प्रशासन द्वारा फिलहाल अस्थायी रूप से व्यवस्था क्यों नहीं की जा रही है, ताकि हादसे का अंदेशा नहीं रहे। क्या जिम्मेदारों को हादसा होने का इंतजार रहता है।