Homeसीकरकौन थे 'बिरसा मुंडा' और क्यों मनाते हैं इनकी जयंती ?

कौन थे ‘बिरसा मुंडा’ और क्यों मनाते हैं इनकी जयंती ?

जानिए आदिवासी समाज के योगदान को विस्तार

150वीं जयंती पर पूरे प्रदेश में मनाया जाएगा जनजातीय गौरव दिवस

बिरसा मुंडा ने साहस की स्याही से पुरुषार्थ के पृष्ठों पर रची शौर्य की शब्दावली

मदन मोहन भास्कर

स्मार्ट हलचल|बिरसा मुंडा आदिवासी समाज के ऐसे नायक थे, जिन्होंने जनजातीय समाज के लोगों के लिए संघर्ष किया। देश की आजादी और आदिवासी समाज के उत्थान में उनका बड़ा योगदान था। इसलिए ही उन्हें भगवान का दर्जा दिया गया। बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश शासन के बढ़ते जुल्म के खिलाफ कम उम्र में ही अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया। वे दुनिया के ऐसे पहले लोकनायक थे, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के साथ-साथ समाज सुधार की भी बात की। बिरसा मुंडा देश के इकलौते ऐसे स्वतंत्रता सेनानी हैं, जिन्हें लोग धरती आबा यानी धरती का पिता कहते हैं। इन्होंने सामंती व्यवस्था को समाप्त करने के लिए भी हथियार उठाये। जनजातीय समुदाय की जमीन की रक्षा के लिए आज का छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट (सीएनटी एक्ट) भगवान बिरसा मुंडा की देन है। उनकी शहादत के लगभग एक दशक के बाद 1908 में अंग्रेजों ने छोटानागपुर काश्तारी अधिनियम (सीएनटी) कानून को लागू किया था।

बिरसा मुंडा का जीवन परिचय-

भगवान बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर, 1875 को झारखण्ड के खूंटी जिले के अड़‌की प्रखंड के तलिहातू गांव में आदिवासी दम्पति के घर हुआ था। बिरसा मुंडा का बचपन आम आदिवासी बच्चे की तरह गांव की धूल-मिट्टी में खेलते हुए अपने माता-पिता के साथ गुजरा। उनके पिता का नाम सुगना मुंडा और माता का नाम करमी होतू था। उनकी पत्नी का नाम मांकी मुंडा था और उनके तीन पुत्र और एक पुत्री थी। इनका परिवार बेहद ही गरीब था। एक बेहद मजबूत और सुंदर लड़के के रूप में बड़े होने के बाद उन्होंने जंगलों में भेड़ चराना शुरू किया। उनके जीवन का एक बड़ा हिस्सा गांव के अखाड़ा में बीता। गरीबी से तंग आकर बिरसा मुंडा अपने मामा के घर आयुबहातू चले गए। वहां वे दो साल रहे। उसी दौरान उन्होंने जयपाल नाग द्वारा सलगा गांव में संचालित स्कूल में अपनी प्रारंभिक पढ़ाई शुरू की। बिरसा मुंडा काफी कुशाग्र बुद्धि के थे। बिरसा मुंडा का ईसाई मिशनरियों ने धर्म परिवर्तन करा दिया और उनका नाम बिरसा डेविड रख दिया।

उलगुलान क्या है ?

बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के खिलाफ ‘उलगुलान’ किया था। यह आंदोलन सरदार और मिशनकारियो के खिलाफ था, जो मुख्य रूप से खुटी, तमाड़ और बंदगांव में केंद्रित था। जब जमींदारों और पुलिस का अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था, तब उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई। वह अंग्रेजों को लगान देने के खिलाफ थे। यह तभी संभव था जब जब आग्रेज अफसर और मिशनरी पूरी तरह से हट जाए। उस वक्त स्थिति यह थी कि अंग्रेजों ने आदिवासियों को उनकी ही जमीन के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी। इसके खिलाफ ही भगवान बिरसा मुंडा ने उलगुलान किया था। उलगुलान शब्द का अर्थ है % महान उथल-पुथल या महा-उत्पात होता है।

बिरसा मुंडा का नारा क्या है ?

बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर एक तौर एक कमान सभी आदिवासी एक समान, अबुआ दिसुम अबुआ राज, जय जोहार का नारा है भारत देश हमारा है, के नारे लगाएं। बक्ताओं ने कहा बिरसा ने झारखंड के आदिवासी समाज के लोगों के लिए जल, जंगल, जमीन की लड़ाई लड़ी।

बिरसा मुंडा प्रसिद्ध क्यों है ?

बिरसा मुंडा एक स्वतंत्रता सेनानी, धार्मिक नेता और लोक नायक थे जो मुंडा जनजाति से थे। उन्हें 19वीं सदी के अंत में झारखंड क्षेत्र में ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ आदिवासी विद्रोह का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है।

मिशनरीज के धर्म परिवर्तन को चुनौती दी

बिरसा को लगने लगा कि ईसाई मिशनरी दिखावा कर रही हैं। ऐसे में मुंडा के मन में एक अलग धर्म का विचार आया। इसे मानने वालों को आज बिरसाइत कहा जाता है। इसके बाद बिरसा ने जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ लोगों को जागरूक करने लगे। बिरसा मुंडा ने अपने धर्म के प्रचार के लिए 12 शिष्यों को नियुक्त किया। जलमई (चाईबासा के रहने वाले सोमा मुंडा को प्रमुख शिष्य घोषित किया। उन्हें धर्म-पुस्तक सौंपी। इससे मिशनरीज के धर्म परिवर्तन को चुनौती मिलने लगी, जिससे अंग्रेज बौखला गए।

भगवान का दर्जा कैसे मिला ?

बिरसा मुंडा की मुलाकात आनंद स्वांसी से होती है। स्वांसी उन्हें हिंदू धर्म तथा महाभारत के बारे में बताते हैं। कहा जाता है कि 1895 में ऐसी घटना घटी जिसकी वजह से लोग बिरसा को भगवान का अवतार मानने लगे। लोगों में इस बात का भी विश्वास होने लगा कि बिरसा को छूते ही उनके सभी रोग दूर हो जाएंगे। मुंडा आदिवासी हैजा, चेचक, सांप के काटने, बाप के खाए जाने को ईश्वर की मर्जी मानते, बिरसा उन्हें सिखाते कि चेचक हैजा से कैसे लड़ा जाता है। बिरसा अब ‘धरती आबा’ यानी ‘धरती पिता’ हो गए थे।

इस बीच आदिवासियों में मुंडा की पॉपुलैरिटी बढ़ती जा रही थी। बिरसा मुंडा ने हिन्दू धर्म और ईसाई धर्म का बारीकी से अध्ययन किया तथा इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि आदिवासी समाज मिशनरियों से तो भ्रमित है ही हिन्दू धर्म को भी ठीक से न तो समझ पा रहा है, न ग्रहण कर पा रहा है। बिरसा मुंडा ने महसूस किया कि आचरण के धरातल पर आदिवासी समाज अंधविश्वासों की आधियों में तिनके-सा उड़ रहा है तथा आस्था के मामले में भटका हुआ है। उन्होंने यह भी अनुभव किया कि सामाजिक कुरीतियों के कोहरे ने आदिवासी समाज को ज्ञान के प्रकाश से वंचित कर दिया है। धर्म के बिंदु पर आदिवासी कभी मिशनरियों के प्रलोभन में

आ जाते हैं, तो कभी ढकोसलों को ही ईश्वर मान लेते हैं। भारतीय जमींदारों और जागीरदारों तथा ब्रिटिश शासकों के शोषण की भट्टी में आदिवासी समाज झुलस रहा था। बिरसा मुंडा ने आदिवासियों को शोषण की नाटकीय यातना से मुक्ति दिलाने के लिए उन्हें तीन स्तरों पर संगठित करना आवश्यक सम्झा। पहला तो सामाजिक स्तर पर ताकि आदिवासी-समाज अंधविश्वासों और ढकोसलों के चंगुल से छूट कर पाखंड के पिंजरे से बाहर आ सके। दूसरा आर्थिक स्तर पर सुधार ताकि आदिवासी समाज को जमींदारों और जागीरदारों क आर्थिक शोषण से मुक्त किया जा सके। बिरसा मुंडा ने जब सामाजिक स्तर पर आदिवासी समाज में चेतना पैदा कर दी तो आर्थिक स्तर पर सारे आदिवासी शोषण के विरुद्ध स्वयं ही संगठित होने लगे। आदिवासियों ने बेगारी प्रथा के विरुद्ध जबर्दस्त आंदोलन किया। तीसरा था राजनीतिक स्तर पर इसे आग बनने में देर नहीं लगी। आदिवासी अपने राजनीतिक अधिकारों के प्रति सजग हुए।

बिरसा मुंडा का प्रतीक क्या है?

बिरसा आंदोलन के समर्थकों ने बिरसा राज के प्रतीक के रूप में सफेद रंग के झंडे को अपनाया था। बिरसा मुंडा एक आदिवासी क्रांतिकारी थे। बिरसा मुंडा सही मायने में पराक्रम और सामाजिक जागरण के धरातल पर तत्कालीन युग के एकलव्य और स्वामी विवेकानंद थे। ब्रिटिश हुकूमत ने इसे खतरे का संकेत समझकर बिरसा मुंडा को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया। वहां अंग्रेजों ने उन्हें धीमा जहर दिया था। जिस कारण वे 9 जून 1900 को शहीद हो गए। बिरसा मुंडा की गणना महान देशभक्तों में की जाती है।

स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर 31 जनवरी 2025, Smart Halchal News Paper 31 January 2025
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