आपने अक्सर सुना होगा कि समुद्र के पानी से नमक बनाया जाता हैं। तथा समुद्र के पानी का स्वाद नमकीन होता हैं लेकिन क्या कभी आपके मन में ये ख्याल आया हैं कि क्या हर एक पानी का स्वाद नमकीन ही होता हैं या किसी-किसी पानी का स्वाद मीठा भी होता हैं। तथा इसी के साथ हमे हमेशा कहा जाता हैं कि पानी को बर्बाद ना करे पीने का पानी ज्यादा मात्रा में पृथ्वी पर मौजूद नहीं हैं। जबकि सभी को पता हैं की पृथ्वी का एक बड़ा हिस्सा पानी से घिरा हुआ हैं। इसके बावजूद भी ऐसे सवाल क्यो उठाए जाते हैं कि पृथ्वी पर पानी की कमी हैं, चलिए आज हम आपको इसके बारे में बताते हैं। समुद्र का पानी खारा क्यो होता- समुद्र के पानी में एक हजार ग्राम में जितनी लवणता होती हैं। उसे ही समुद्री लवणता या खारा पानी कहा जाता हैं। तो वहीं महासागर की लवणता प्रति हजार ग्राम में 36 ग्राम मानी जाती हैं। लेकिन हर एक महासागर में इतनी नहीं होती हैं। अलग-अलग महासागरो में इसकी मात्रता अलग-अलग होती हैं। पानी के खारेपन का कारण मुख्य उसमें घुलने वाले पदार्थ हैं जैसे- सोडियम क्लोराइड, मैग्नीशियम क्लोराइड, मैग्नीशियम सल्फेट, कैल्शियम सल्फेट, कैल्शियम कार्बोनेट, पोटैशियम सल्फेट व अन्य इन्ही की वजह से समुद्र का पानी खारा होता हैं। इन्हें नदियाँ चट्टानो को काट समुद्र में ले आती हैं। जिसकी वजह से लगातार महासागरो में इसका जमाव होता रहता हैं। इसके अलावा हवा के साथ रेगिस्तान की बालू भी उड़कर समुद्र के पानी में आता हैं। जिसकी वजह से इसके पानी का स्वाद खारा होता हैं। इसके साथ ही ये खुद भी समुद्र के लहरो को काटकर पानी को खारा बनाता हैं। ज्वालामुखी तथा पृथ्वी के अंदर की हलचल इसके पानी को खारा बनाती हैं। समुद्र के पानी का वाष्पीकरण जितना होता हैं। उतना ही इसका पानी खारा होता हैं। यानि जितना तापमान बढ़ता हैं। क्या समुद्र का पानी पीने योग्य हैं- किसी भी समुद्र का पानी पीने योग्य या मीठा नहीं होता हैं। लेकिन अटलांटिक महासागर के नीचे वैज्ञानिको को कुछ मीठे पानी का स्त्रोत मिला हैं। भूमध्य रेखीय प्रदेशों में समुद्र का पानी थोडा कम खारा होता हैं। हर एक जगह समुद्र के पानी में खारेपन की मात्रा अलग-अलग होती हैं। तो वहीं उसमें घुले खनिजो की मात्रा हर जगह एक समान होती हैं।
पहली मान्यता
पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि दुर्वासा के श्राप से स्वर्ग की सुख-शांति, यश, वैभव सब खत्म हो गया था। जिसके कारण देवताओं के बीच हाहाकार मच गया। इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए सभी मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और अपनी समस्या बताते हुए उनसे इसका हल मांगा। वहीं, श्री हरि ने उन्हें बताया कि यदि वो दानवों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करते हैं और उसमें से निकले अमृत को पीते है तो वो सदैव के लिए अमर हो जाएंगे। जिसके बाद देवताओं और असुरों में इस विषय को लेकर वार्तालाप हुआ और फिर समुद्र मंथन किया गया। इस दौरान अमृत के साथ बहुत सारे रत्न निकले थे। इसलिए ऐसी मान्यता है कि इस कारण समुद्र का पूरा पानी खारा हो गया।
दूसरी मान्यता
वहीं दूसरी मान्यता के अनुसार, इसके पीछे माता पार्वती का हाथ माना जाता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं माता पार्वती भगवान शिव की बहुत बड़ी भक्त थी और वह उन्हें अपने पति के रूप में पाना चाहती थी। जिसके लिए उन्होंने तपस्या करना शुरू किया। अपनी तपस्या में लीन मां पार्वती मन- ही-मन भगवान शिव को अपना स्वामी मान चुकी थी। इसी दौरान समुद्र देव की नजर देवी पार्वती पर पड़ी, जिन्हें देखकर वह मोहित हो गए और उन्होंने उनसे विवाह करने का मन बना लिया। जिसके बाद अपने इस प्रस्ताव को देवी की तपस्या खत्म होने के बाद रखा। जिसे सुनकर माता ने उन्हें जवाब दिया कि प्रभु शंकर को अपना पति मान चुकी हूं, इसलिए मैं आपके इस प्रस्ताव को ठुकराती हूं। उनकी इस बात को सुनकर समुद्र देव को क्रोध आ गया और उन्होंने गुस्से में आकर कहा कि आखिर ऐसा क्या है शिव में जो मुझ में नहीं है। मैं पृथ्वी लोक के समस्त मानव जाति की प्यास बुझाता हूं। इतना सुनते ही माता को क्रोध आ गया। इसके बाद उन्होंने समुद्र देव को श्राप दे देते हुए कहा जिस जल के कारण आज तुम इतना अहंकार कर रहे हो, अब तुम्हारा यह जल किसी के पीने योग्य नहीं रहेगा। तब से ही समुद्र का पानी खारा हो गया और इसका जल किसी के पीने योग्य नहीं रहा।