ऐतिहासिक तालाब गंदगी से पटा, भक्तों ने मुख्यमंत्री व जिलाधिकारी से अवैध कब्जा हटाये जाने की मांग की
(सुघर सिंह सैफई)
इटावा। स्मार्ट हलचल|इटावा में अंग्रेजी हुकूमत में तैनात मजिस्ट्रेट में नौकर की कहानी सुनकर ऐसा बदलाव आया कि वह सुबह अपनी नौकरी छोड़कर जंगल मे जाकर तपस्या करने लगे और सिद्धि प्राप्त की उनके चमत्कारों की चर्चा सुनकर कश्मीर से राजा वीर सिंह रानी के साथ स्पेशल ट्रेन से जसवन्तनगर आये और खटखटा बाबा के दर्शन कर आशीर्वाद लिया। आज उसी आश्रम का अस्तित्व खतरे में है आश्रम के रास्ते पर दुकानदारों ने अवैध कब्जा जमा लिया है। वही ऐतिहासिक तालाब में कस्बे की नालियों का गंदा पानी तालाब में गिरता है। इसके अलावा मंदिर परिसर में बने प्राचीन नक्काशी के स्मारक भी अपनी भव्यता खोते जा रहे है।
हम चाहे कितना भी मान सम्मान, जमीन -जायदाद, दौलत और शौहरत इस संसार में हासिल कर लें… फिर भी यहाँ खाली हाथ आये हैं, और खाली हाथ जाना है।”.. शायद यही बात उस एक डिप्टी कलक्टर के जेहन में आयी होगी, जो उसे दर दर खट-खट कर और लोगों को अध्यात्म का सन्देश देने वाला संत विश्व प्रसिद्ध “खटखटा बाबा” बना गया। 19वी शताब्दी के उत्तरार्ध में मिस्टर सप्रू इटावा के डिप्टी कलक्टर बन कर आये थे। ईमानदार होने के साथ-साथ अंग्रेज सरकार की योजनाओं और जन अपेक्षाओं को पूरा करने के प्रति भी वह काफी प्रतिबद्ध थे। नौकर की एक कहानी सुनकर मजिस्ट्रेट मि० सप्रू सब कुछ छोड़कर यमुना के बीहड़ में चले गए उसके बाद हिमालय पर्वत की कंदराओं में चले गए जहां उन्होंने घोर तपस्या की। और सिद्धियां हासिल की। जसवंतनगर के सेठ बद्री प्रसाद रईस एक दिन अपने शिव मंदिर में पूजा कर रहे थे उसी दौरान उन्होंने देखा कि मंदिर के सामने बने तालाब के पानी पर एक संत लंगोटी लगाए चलते हुए आ रहे है। उन्होंने तुरंत देखा और भागे भागे मंदिर के बाहर आये संत को प्रणाम किया संत ने पूछा कि यह मंदिर किसका है तो सेठ बद्री प्रसाद ने कहा महाराज आपका ही है बस उसी दिन से खटखटा बाबा ने यहीं अपना निवास बनाया। जसवन्त नगर व यमुना बीहड़ के गांवों के सैकड़ो लोग बाबा खटखटा के प्रवचनों को सुनने प्रायः जसवन्तनगर पहुँचने लगे। खटखटा बाबा के शरीर छोड़ने की का अंदाजा 1920 के आसपास बताया गया है लेकिन स्पष्ट नही है।
खटखटा बाबा आश्रम पर भक्तगण प्रत्येक गुरूवार, बसंत पंचमी, गुरुपूर्णिमा, रक्षा बन्धन तथा दीपावली, होली नवरात्रि, महाशिवरात्रि आदि त्योहारों पर आकर माथा टेकते व सूखे पंच मेवों का प्रसाद चढ़ाकर मन्नते मांगते हैं। जसवंतनगर की कुटिया पर वर्षों से सेवारत महंत मोहन गिरी जी महाराज का कहना है कि बाबा की कुटिया पर आने वाले हजारों लोगों में शायद ही किसी की कोई मुराद कभी खाली जाती होगी। यहां बटने वाली प्रसादी भी कभी खत्म नही होती। जसवंतनगर के तालाब मन्दिर पर बाबा की जो कुटिया है, उसमे बाबा की खड़ाऊ, कमंडल और कुछ मिटटी के पात्र और बाबा संग प्रसिद्धनाथ जी की मूर्ति विराजमान है। मंदिर के प्रांगण में प्राचीन ऐतिहासिक प्राचीन स्मारक छतरी भवन व शिव मंदिर भी बने हुए हैं जो इस समय रखरखाव के भाव में जीर्ण – शीर्ण अवस्था में है। जिन्हें सरकार को संरक्षित करने की आवश्यकता है खटखटा बाबा के भक्तों ने प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मांग की है के ऐतिहासिक खटखटा बाबा मंदिर व प्राचीन ऐतिहासिक शिव मंदिर परिसर के स्मारकों का जीर्णोद्धार कराने का आदेश जारी करें। ताकि इटावा जिले की प्राचीन धरोहर संरक्षित रह सके। जिस ऐतिहासिक तालाब में खटखटा बाबा स्नान करते थे उसमें गंदगी का अंबार लगा है। नालियों का पानी तालाब में आ रहा है कूड़ा कचड़ा भी तालाब में डाला जा रहा है। मंदिर के रास्ते पर दुकानदारों ने अवैध कब्जा कर रखा है। वह अपनी दुकानों के आगे सामान लगाकर रास्ते को अवरुद्ध किये हुए है। जिससे भक्त व उनकी गाड़ी मंदिर तक नही आ पाती। सब्जी मंडी में दुकानदारों ने अपनी दुकानों के आगे फड़ लगाकर अवैध कब्जा कर रखा है। मंदिर आने जाने दो रास्ते है और दोनों। रास्ते पूरी तरह अवरुद्ध है। इसकी शिकायत भी कई बात पुलिस प्रशासन से की गई लेकिन अब तक कोई कार्यवाही नही हुई।
👉कश्मीर के महाराजा खटखटा बाबा के दर्शन को स्पेशल ट्रेन से आये थे जसवंतनगर
किवदंती है कि जब मि० सप्रू से खटखटा बाबा बने कश्मीरी ब्राहमण के चमत्कारों की ख्याति जम्मू कश्मीर तक पहुंची तो वहां के महाराजा प्रताप सिंह 1904 में अपनी पत्नी के साथ स्पेशल ट्रेन से जसवंतनगर बाबा का आशीर्वाद लेने आये थे। इस दौरान रेलवे स्टेशन से खटखटा बाबा की कुटिया तक लाल कालीन बिछाई गई थी। और जसवंतनगर रियासत की बग्गी सजाई गई थी। उसी में बैठकर राजा रानी खटखटा बाबा के आश्रम आये थे स्स्टेशन से आश्रम तक रास्ते पर राजा रानी पर पुष्पवर्षा की गई थी।
👉 50 वर्ष पहले हिन्दू मुस्लिम एक साथ खटखटा बाबा मंदिर में करते थे पूजा
जसवंतनगर का खटखटा मंदिर आज से 50 वर्ष पूर्व हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक रहा है यहां हिन्दू मुस्लिम एक साथ बैठकर पूजा करते थे और जब भी परिवार में नए सदस्य का आगमन होता था तो सबसे पहले इसी मंदिर पर मत्था टेकने लाते थे। लेकिन भारत पाकिस्तान 1971 युद्ध के बाद मुस्लिम समाज के लोग आना कम हो गए लेकिन हिन्दू आज भी परिवार में जन्मे बच्चों को सबसे पहले यहां लेकर आते है।
👉 शिकायत के बाद भी नही हटाया गया मंदिर रास्ते का अवैध कब्जा
खटखटा बाबा के भक्तों द्वारा कई बार पुलिस प्रशासन के अधिकारियों को लिखित प्रार्थना पत्र देकर मंदिर आने जाने वालों के लिए रास्ते को खाली कराए जाने के लिए मांग की। लेकिन नगर पालिका के कार्यालय के सामने मुख्य गेट से मंदिर तक दुकानदारों ने पूरे रास्ते को जाम कर रखा है दुकानदार अपनी दुकान के आगे सामान लगाकर आवागमन के रास्ते पर कब्जा किए हुए हैं दूसरे रास्ते पर भी दुकानदारों का अवैध कब्जा है। पैदल भक्त भी बड़ी मुश्किल से मंदिर पहुंच पाता है इस संबंध में कई बार शिकायतें की गई लेकिन अधिकारियों के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का साफ आदेश है कि अवैध कब्जा करने वालों पर कार्रवाई की जाए। लेकिन जसवंत नगर में एक प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर के रास्ते पर अवैध कब्जा हटाने की पुलिस प्रशासन हिम्मत क्यों नहीं जुटा पा रहा है यह सोचने की बात है।


