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साहित्यकार देवेन्द्र भारद्वाज की पुस्तक ” जीवन ठहर गया लगता है ” का हुआ लोकार्पण,Writer Devendra Bhardwaj

Writer Devendra Bhardwaj

बाल गीतों पर झूमें बच्चे

स्मार्ट हलचल/ शशिकांत शर्मा

स्मार्ट हलचल/ वैर/ पं.जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी और सावित्री निकुंज के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित समारोह में वरिष्ठ गीतकारों ने जब बचपन के रंग में ढले गीतों की बौछारें की तो बड़े छोटे सभी झूम उठे।
नाहरगढ़ रोड़ जयपुर स्थिति महर्षि दधीचि स्कूल में आयोजित कार्यक्रम में वैर निवासी साहित्यकार देवेन्द्र भारद्वाज “वैर” ने ” अच्छा होता यदि उम्र में बड़ा न होता,रसगुल्ले की चर्चा सुनकर बड़ा प्रफुल्लित होता” से गोष्ठी का आगाज किया । फिर उन्होंने गीतों की झड़ी लगाते हुऐ याद आ गई गांव की,प्रकाश विद्यार्थी, गुटखावीर,साक्षरता और मच्छरों का व्याख्यान सुना कर वातावरण सरस और लोटपोट कर दिया।
इस अवसर पर राष्ट्रीय स्तर सम्मानित वयोवृद्ध संस्कृत के मूर्धन्य विद्वान 94 वर्षीय पं. प्यारे मोहन शर्मा नें देवेन्द्र भारद्वाज की पुस्तक ” जीवन ठहर गया लगता है” का विमोचन करते हुए कहा कवि सच्चे अर्थों में प्रजापति होता है वह अपने रचना संसार में वह बना देता है जो यथार्थ में है ही नही और वह मिटा देता है जो है ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि और साहित्यकार प्रदीप सैनी ने अपनी रचना लो जी हम भी बच्चे हुए सुनाई। उन्होने ने कहा देवेंद्र भारद्वाज ने अपनी रचनाओं से अपार लोकप्रियता हासिल की है। श्री भारद्वाज राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत कविताओं के लिए ही जाने जाते हैं परन्तु जीवन के हर रस रंग पर आपने कलम चलाई है। आपकी भाषा सरल एवं सरस है जो आम श्रोता के दिल को छू लेती है।
इस समारोह को सम्बोधित करते हुए देवेंन्द्र भारद्वाज ने बताया कि उनको लेखन की प्रेरणा उनके गाँव की माटी जिसके कण कण में साहित्य समाया है व उस माटी में जन्मे अनेकों काव्य ऋषियों से ही मिली है।
साहित्यकार देवेंद्र भारद्वाज की ये पांचवीं कृति है इससे पूर्व ,दंगाई ,द्रोण-प्रतिज्ञा, अपना तो निष्कर्ष यही है, जागा स्वाभिमान देश का , प्रकाशित हो चुकी हैं।
कार्यक्रम में रामनारायण गर्ग, डा.एन.एम.शर्मा, देवेन्द्र शर्मा, महेन्द्र मोहन शर्मा, आशा देवी, सरोज मोहन ,रामप्रसाद धोबी सहित अनेक रचनाकारों ने बाल गीत पढे। अनेक बच्चों ने भी अपनी कविताओं की प्रस्तुति की। कार्यक्रम का संचालन अकादमी सचिव राजेन्द्र मोहन ने किया।

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