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पर्यटन क्षेत्र में करियर बनाने के इच्छुक युवाओं के लिए सुनहरा अवसर, बिना विलंब शुल्क के 15 अगस्त तक ले सकते हैं दाखिला

लखनऊ/स्मार्ट हलचल। उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा संचालित मान्यवर कांशीराम इंस्टीट्यूट ऑफ टूरिज्म मैनेजमेंट (एमकेआईटीएम) में विभिन्न कोर्सों में दाखिले की प्रक्रिया जारी है। पर्यटन और आतिथ्य उद्योग में करियर बनाने के इच्छुक छात्रों के लिए यह एक सुनहरा अवसर है। संस्थान, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) के सहयोग से ओपन एंड डिस्टेंस लर्निंग (ओडीएल) मोड में कई शॉर्ट टर्म कोर्स में प्रवेश प्रदान कर रहा है। इच्छुक छात्र समय सीमा के भीतर प्रवेश ले सकते हैं।
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एमकेआईटीएम और इग्नू द्वारा संचालित डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स में अवसर।
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पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों के क्रम में इग्नू एवं मान्यवर कांशीराम पर्यटन प्रबंधन संस्थान के मध्य दिनांक 24 अप्रैल 2025 को हुए समझौता ज्ञापन के अंतर्गत होटल प्रबंधन के तीन सर्टिफिकेट कोर्स एवं एक डिप्लोमा कोर्स ( जुलाई सत्र) की प्रवेश प्रक्रिया मध्य जून से प्रारंभ हो चुका है I सर्टिफिकेट कोर्सेस में सर्टिफिकेट इन फ्रंट ऑफिस ऑपरेशनस, सर्टिफिकेट इन हाउसकीपिंग ऑपरेशनस एवं सर्टिफिकेट इन फूड एंड बेवरेज सर्विस ऑपरेशनस तथा डिप्लोमा कोर्स के अंतर्गत पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन होटल ऑपरेशंस सम्मलित किया गया है I
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एमकेआईटीएम में पर्यटन पाठ्यक्रमों के लिए प्रवेश प्रक्रिया जारी।
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पाठ्यक्रम से संबंधित सभी थ्योरी एवं प्रैक्टिकल क्लासेस मान्यवर कांशीराम पर्यटन प्रबंध संस्थान, लखनऊ में संचालित होगी I सर्टिफिकेट कोर्सेस के अंतर्गत थ्योरी क्लासेस दो महीने चलेंगी, जबकि 4 महीने की इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग होगी। वहीं, डिप्लोमा कोर्स में 4 महीने की थ्योरी क्लास तथा 8 महीने की इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग होगी I इन पाठ्यक्रमों को करने के बाद पर्यटन एवं होटल प्रबंधन के क्षेत्र में युवाओं का कौशल विकसित होगा तथा वे संबंधित क्षेत्रों में स्वरोजगार एवं नौकरी प्राप्त करने में समर्थ हो सकेंगे I
इन पाठ्यक्रमों का शुल्क न्यूनतम रखा गया है, जिसमें पंजीकरण शुल्क 400 रुपए प्रति पाठ्यक्रम है। छः महीने के सर्टिफिकेट कोर्स की फीस जहां 3000 रुपए प्रति अभ्यर्थी है, वहीं एक वर्ष का कोर्स करने के लिए मात्र 9000 रुपए अभ्यर्थियों से लिया जाएगा l इग्नू द्वारा सर्टिफिकेट कोर्स के लिए 18 क्रेडिट तथा पीजी डिप्लोमा के लिए 48 क्रेडिट निर्धारित किए गए हैं l प्रवेश के लिए न्यूनतम अर्हता 12वीं पास (इंटरमीडिएट) रखी गई है। शिक्षण का माध्यम हिंदी व अंग्रेजी दोनों भाषाओं में उपलब्ध रहेगा।
प्रमुख सचिव पर्यटन मुकेश कुमार मेश्राम द्वारा इन पाठ्यक्रमों के बारे में ज्यादा से ज्यादा लोगों तक जानकारी पहुंचाने हेतु यथासंभव प्रयास करने के निर्देश दिए गए हैं। ताकि, इच्छुक युवा वर्ग लाभान्वित हो सके तथा अपने करियर को नई दिशा दे पाएं। सभी पाठ्यक्रमों में प्रवेश प्रक्रिया जारी है। बिना विलंब शुल्क के 15 अगस्त 2025 तक दाखिला लिया जा सकता है।
इच्छुक अभ्यर्थी प्रवेश प्रक्रिया सहित अन्य जानकारी के लिए एमकेआईटीएम (http://www.mkitm.com) या इग्नू (http://www.ignou.ac.in) की आधिकारिक वेबसाइट पर संपर्क कर सकते हैं। प्रवेश पोर्टल (दूरस्थ शिक्षा): (https://ignouadmission.samarth.edu.in) पर भी इच्छुक अभ्यर्थी कोर्स से संबंधित जानकारी ले सकते हैं।
उत्तर प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने कहा मान्यवर कांशीराम इंस्टीट्यूट ऑफ टूरिज्म मैनेजमेंट की गिनती प्रदेश के प्रतिष्ठित पर्यटन प्रबंधन संस्थानों में होती है। संस्थान  अपनी स्थापना के बाद से ही पर्यटन प्रबंधन एवं आतिथ्य के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका को सिद्ध कर रहा है। यह न केवल उच्च गुणवत्ता की शिक्षा प्रदान कर रहा है, बल्कि अनेकों रोजगार परक प्रशिक्षण द्वारा  कौशल विकास तथा उद्योग जगत को परामर्श सेवाएं देकर  निरंतर नवाचार की दिशा में कार्य कर रहा है।
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स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर 31 जनवरी 2025, Smart Halchal News Paper 31 January 2025
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स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  01 अगस्त  2024, Smart Halchal News Paper 01 August 
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अलविदा रजिस्टर्ड डाक — एक युग की ख़ामोश विदाई लेखिका: डॉ. प्रियंका सौरभ एक सितंबर दो हज़ार पच्चीस को जब भारत डाक की रजिस्टर्ड डाक सेवा औपचारिक रूप से समाप्त कर दी जाएगी, तो संभवतः किसी समाचार पत्र के मुख्य पृष्ठ पर यह नहीं छपेगा, न ही किसी समाचार चैनल पर विशेष चर्चा होगी। यह समाचार जितना सामान्य प्रतीत होता है, उतना ही गहरा असर छोड़ता है — उस पीढ़ी पर, जिन्होंने वर्षों तक डाकिये की साइकिल की घंटी सुनकर अपने दिन की शुरुआत की। जिन्होंने पत्रों के माध्यम से रिश्तों को जिया और डाकघर की कतारों में खड़े होकर संवाद की प्रतीक्षा की। रजिस्टर्ड डाक कोई साधारण सेवा नहीं थी। यह उन दिनों की गवाही थी जब हम कागज़ पर स्याही से अपने जज़्बातों को उकेरा करते थे। जब एक लिफ़ाफ़े में कई अनकही बातें, लंबा इंतज़ार और अनगिनत भावनाएँ समाहित होती थीं। जब एक पत्र, चाहे वह परिवार के किसी सदस्य का हो या सरकारी दस्तावेज़, केवल कागज़ का टुकड़ा नहीं होता था, बल्कि विश्वास का प्रतीक होता था — कि यह ज़रूर पहुँचेगा, सही हाथों में, सही समय पर। रजिस्टर्ड डाक वह सेतु था, जो गाँव को शहर से, माँ को बेटे से, प्रेमिका को प्रेमी से, और नागरिक को शासन से जोड़ता था। वह न केवल संवाद का माध्यम था, बल्कि संबंधों को सुरक्षित रखने वाला प्रहरी भी था। उसकी विशेषता यह थी कि वह खोता नहीं था, वह भटकता नहीं था। उसका पंजीकरण उसकी सुरक्षा थी, और उसकी प्राप्ति की पावती एक तरह का भावनात्मक संतोष। एक समय था जब डाकिया केवल संदेशवाहक नहीं, बल्कि घर का परिचित चेहरा होता था। उसकी आवाज़, उसकी साइकिल की घंटी और उसकी झोली में छिपे लिफ़ाफ़ों का इंतज़ार हर किसी को रहता था। कोई सरकारी पत्र हो, किसी मामा जी की मनी ऑर्डर, किसी दूर बैठे बेटे का समाचार — सब कुछ रजिस्टर्ड डाक के माध्यम से पहुँचता था। और जब पत्र मिलता, तो उसे खोलने से पहले उसे छूकर महसूस किया जाता था — उसके कागज़ की मोटाई, उसके रंग की गहराई और उस पर लगी स्याही की गंध — सबमें अपनापन होता था। लेकिन अब समय बदल चुका है। तकनीकी प्रगति ने हमारे संवाद के तरीक़ों को पूरी तरह से बदल दिया है। आज मोबाइल फ़ोन, त्वरित संदेश सेवाएँ, सामाजिक माध्यम, और अंतर्जाल ने पारंपरिक पत्र-व्यवस्था को लगभग समाप्त ही कर दिया है। अब किसी को इंतज़ार नहीं रहता, सब कुछ पल में भेजा और पल में प्राप्त किया जाता है। ऐसे समय में भारत डाक द्वारा रजिस्टर्ड डाक को औपचारिक रूप से बंद करने और उसे स्पीड डाक में समाहित करने का निर्णय, समयानुकूल और आवश्यक तो है, परंतु भावनात्मक रूप से पीड़ादायक भी। स्पीड डाक, निस्संदेह आधुनिक आवश्यकताओं के अनुरूप एक बेहतर सेवा है। इसमें गति है, निगरानी है, तकनीकी दक्षता है। परन्तु उसमें वह आत्मीयता नहीं है जो रजिस्टर्ड डाक में थी। वह अपनापन, वह धीमा मगर विश्वसनीय संवाद, वह सादगी — अब इतिहास बन जाएगी। रजिस्टर्ड डाक का अंत केवल एक सेवा का अंत नहीं है, यह एक युग का अंत है। वह युग जिसमें शब्दों को सहेजा जाता था, जिसमें उत्तर पाने के लिए दिन नहीं, सप्ताहों की प्रतीक्षा की जाती थी। जब एक उत्तर में प्रेम, सम्मान और भावनाओं की परतें होती थीं। आज हम भले ही एक क्लिक में संवाद कर सकते हैं, लेकिन उस संवाद में स्थायित्व और गहराई का अभाव है। हम संदेश तो भेजते हैं, पर भावनाएँ नहीं। हम पढ़ते तो हैं, पर समझते नहीं। रजिस्टर्ड डाक उस युग की अंतिम निशानी थी, जहाँ संवाद सिर्फ़ बात नहीं, एक भावना होता था। हमारे पुराने संदूक़ों में आज भी ऐसी चिट्ठियाँ मिलती हैं — पीले पड़े कागज़, स्याही से भरे अक्षर, किनारों पर समय की छाप और भीतर वह सब कुछ जो किसी समय अनमोल था। वे चिट्ठियाँ अब केवल स्मृति हैं, किंतु रजिस्टर्ड डाक ने उन्हें आज तक सुरक्षित पहुँचाया। यह उसकी सबसे बड़ी सफलता है — कि उसने शब्दों को अमर बना दिया। इस सेवा के बंद होने से एक भावात्मक सूत्र टूटेगा। यह वह सेवा थी, जिसने दूरी को भी एक बंधन बना दिया था। जिसने माँ के आँचल से बेटे तक, प्रेमिका की आँखों से प्रेमी तक, शिक्षक की सीख से छात्र तक — सबको जोड़ रखा था। अब स्पीड डाक आएगी — तेज़, सुविधाजनक, आधुनिक। परंतु उसमें वह ठहराव नहीं होगा, वह धैर्य नहीं होगा, वह प्रतीक्षा नहीं होगी जो रजिस्टर्ड डाक को विशेष बनाती थी। आज हम तकनीकी दृष्टि से जितने सक्षम हुए हैं, उतने ही भावनात्मक रूप से खोखले भी हो गए हैं। संवाद तो अब भी होते हैं, पर उनमें आत्मा नहीं होती। रजिस्टर्ड डाक केवल चिट्ठी नहीं थी, वह आत्मा का दस्तावेज़ थी। अब जब वह विदा ले रही है, तो यह केवल प्रशासनिक निर्णय नहीं है — यह हमारी सांस्कृतिक विरासत का एक पृष्ठ बंद होना है। रजिस्टर्ड डाक, तुमने केवल पत्र नहीं पहुँचाए, तुमने रिश्ते पहुँचाए। तुमने हमें जोड़ना सिखाया — शब्दों से, भावनाओं से, प्रतीक्षा से, और विश्वास से। तुम भले ही अब औपचारिक रूप से बंद हो जाओ, परंतु हमारी यादों में, हमारे पुराने संदूक़ों में, हमारे दिलों में तुम सदा जीवित रहोगी। आज जब हम तुम्हें विदाई दे रहे हैं, तो यह विदाई नहीं, एक प्रणाम है — उस युग को, उस सादगी को, उस धैर्य को, उस अपनापन को, जिसे तुमने वर्षों तक अपने कंधों पर ढोया। अब भले ही डाकघर बदल जाएँ, डाकिए डिजिटल हो जाएँ, पत्र इतिहास बन जाएँ — परंतु तुम, रजिस्टर्ड डाक, हमारे लिए सदा अमर रहोगी
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