योगी सरकार के मंत्री ब्रजेश पाठक बिहार चुनाव में व्यस्त यूपी में मरीज त्रस्त!
(शीतल निर्भीक ब्यूरो)
प्रयागराज।स्मार्ट हलचल|उत्तर प्रदेश की चिकित्सा व्यवस्था पर एक बार फिर सवालों के बवंडर उठ खड़े हुए हैं। प्रयागराज के स्वरूप रानी नेहरू अस्पताल (एसआरएन) में हुई एक दर्दनाक लापरवाही ने प्रदेश के स्वास्थ्य तंत्र की पोल खोल दी है। गलत ब्लड चढ़ाए जाने से 55 वर्षीय महिला उर्मिला सिंह की जान चली गई, और अब यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट तक पहुंच गया है।
याचिकाकर्ता सौरभ सिंह ने सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता रीना एन. सिंह और अधिवक्ता राणा सिंह के माध्यम से दाखिल याचिका में आरोप लगाया है कि उनकी मां उर्मिला सिंह को 3 दिसंबर 2024 को सिर में चोट लगने के बाद एसआरएन अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डॉक्टरों ने ब्लड की मांग की, ब्लड बैंक ने सैंपल लेकर उनका ब्लड ग्रुप एबी पॉजिटिव बताया और उसी आधार पर रक्त चढ़ा दिया। लेकिन वास्तविकता में उनका ब्लड ग्रुप ओ पॉजिटिव था।
इस गंभीर गलती के बाद उनकी हालत तेजी से बिगड़ने लगी। किडनी ने काम करना बंद कर दिया, शरीर में संक्रमण फैल गया, दवाइयों ने असर करना बंद कर दिया। अस्पताल प्रशासन इलाज में जुटा दिखता रहा, लेकिन हालत बिगड़ती गई और आखिरकार 15 जनवरी 2025 को उर्मिला सिंह ने दम तोड़ दिया।
मृतका के पुत्र सौरभ सिंह ने बताया कि उन्होंने मुख्यमंत्री पोर्टल, सीएमओ और अस्पताल प्रशासन से शिकायत की, लेकिन किसी ने कार्रवाई नहीं की। अस्पताल ने गलती स्वीकारने के बजाय मामले को दबाने की कोशिश की।
इस दर्दनाक घटना पर अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। न्यायमूर्ति अजीत कुमार और न्यायमूर्ति स्वरूपमा चतुर्वेदी की खंडपीठ ने मामले को गंभीर मानते हुए अस्पताल प्रशासन से जवाब मांगा है। अदालत ने पूछा है कि इस लापरवाही के बाद कौन-सी आंतरिक जांच शुरू की गई और अब तक क्या कार्रवाई हुई। कोर्ट ने अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट को भी पार्टी बनाते हुए 6 नवंबर तक विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता रीना एन. सिंह ने अदालत में दलील दी कि यह अस्पताल राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और राज्य सरकार से करोड़ों का फंड प्राप्त करता है, लेकिन मरीजों को दवाएं और जांच की सुविधाएं निजी दुकानों से खरीदनी पड़ती हैं। यह प्रदेश की चिकित्सा व्यवस्था की भयावह तस्वीर है, जहां सरकारी अस्पताल मरीजों के लिए आश्रय नहीं बल्कि संकट बनते जा रहे हैं।
अधिवक्ता राणा सिंह और आशीष सिंह ने कहा कि यह केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश के स्वास्थ्य ढांचे की असफलता का आईना है। उन्होंने कोर्ट से मांग की कि राज्य सरकार रक्त संक्रमण से संबंधित सख्त और पारदर्शी नीति बनाए ताकि भविष्य में किसी की जान ऐसी लापरवाही से न जाए।
इस घटना ने न केवल प्रयागराज बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश की चिकित्सा व्यवस्था को कठघरे में खड़ा कर दिया है। दूसरी ओर स्वास्थ्य मंत्री बृजेश पाठक प्रदेश की बीमार व्यवस्था सुधारने के बजाय बिहार में राजनीतिक कार्यक्रमों में व्यस्त बताए जा रहे हैं।
जनता अब सवाल पूछ रही है — क्या केवल नए मेडिकल कॉलेज खोलना ही विकास है, जब पुराने अस्पताल मौत के अड्डे बनते जा रहे हैं? स्वरूप रानी अस्पताल की यह त्रासदी अब न्यायालय की चौखट तक पहुंच चुकी है, लेकिन असली सवाल यह है कि क्या इस दर्दनाक मौत से व्यवस्था की नींद खुलेगी, या फिर यह भी किसी सरकारी फाइल में दफन रह जाएगी?


