तनवीर जाफ़री
स्मार्ट हलचल/हमारे देश में भ्रष्टाचार मिटाने,भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध कार्रवाई करने जैसे दावे तो लगभग सभी सरकारों द्वारा बड़े ही ज़ोर शोर से किये जाते रहे हैं। परन्तु हक़ीक़त शायद इससे कुछ अलग ही है। दिन प्रतिदिन भ्रष्टाचार बड़े पैमाने पर फलफूल रहा है। भ्रष्टाचार में संलिप्त लोग सत्ता के संरक्षण में स्वयं को सुरक्षित कर रहे हैं। देश के लाखों करोड़ रूपये लेकर तमाम ठग व भगौड़े विदेशों में पनाह ले चुके हैं। बड़े व्यवसाय व ठेकों पर उद्योगपतियों के नेटवर्क का लगभग पूर्ण नियंत्रण हो चुका है। यहाँ तक कि बड़े उद्योगपतियों द्वारा छोटे व्यवसायियों को ‘निगलने ‘ का खेल भी खेला जा रहा है। एक तरफ़ जहाँ भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने और उन्हें गले लगाने के कई उदाहरण सामने हैं वहीँ दुर्भाग्यवश ऐसे भ्रष्टाचारियों की पोल खोलने व उन्हें बेनक़ाब करने वाले ‘व्हिसिल ब्लोअर्स ‘ की सुरक्षा भी एक बड़ी चिंता का विषय बानी हुई है। हमारे देश में ‘व्हिसिल ब्लोअर्स ‘ की हत्या से लेकर उनपर हमलों व मुक़दमों जैसी अनेक घटनाएं हो चुकी हैं। अनेक आर टी आई कार्यकर्ताओं की हत्या व उन पर हमले हो चुके हैं। जबकि हमारे देश में व्हिसल ब्लोअर को ‘व्हिसलब्लोअर्स संरक्षण अधिनियम, 2014’ द्वारा संरक्षित भी किया जाता है। क़ानून में उनकी पहचान की सुरक्षा के साथ-साथ उनके उत्पीड़न को रोकने के लिये कठोर मानदंडों को भी शामिल किया गया है।
परन्तु पिछले दिनों जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मालिक मालिक जैसे वरिष्ठ नेता के क़रीब 30 ठिकानों पर सी बी आई द्वारा की गयी छापेमारी के बाद एक बार यह सवाल फिर उठने लगा है कि सरकार आख़िर किसके साथ है ? भ्रष्टाचारियों या रिश्वतख़ोरों के साथ या ‘व्हिसलब्लोअर्स’ के साथ ? सत्यपाल मलिक ने कहा कि उनके घर पर सीबीआई ने जो छापा मारा है वो “नहीं होना चाहिए था” क्योंकि जिस किरू हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट के सिलसिले में उनके घर पर छापा डाला गया है उसमें वो असल में “व्हिसल ब्लोअर और शिकायतकर्ता” थे। इस छापेमारी के बाद उन्होंने फिर दोहराया कि “ये वही किरु मामला है जिसमें मैंने कहा था कि मुझे 150 करोड़ रुपये की रिश्वत देने की कोशिश की गई थी लेकिन मैंने फ़ाइल पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था। लेकिन मैंने जिन गुनहगारों के नाम लिए थे उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की बजाय सीबीआई ने ‘व्हिसलब्लोअर’ के ख़िलाफ़ ही कार्रवाई करने का फ़ैसला किया.” मालिक ने यह भी आरोप लगाया कि “सरकार अपने आलोचकों को चुप कराना चाहती है। विपक्षी दल भी पूर्व राज्यपाल के ठिकानों पर की गयी सी बी आई छापेमारी को असंतोष की आवाज़ों को दबाने वाला क़दम बता रहे हैं। इसे भारतीय किसानों के ग़ुस्से से ध्यान भटकाने की कोशिश भी बताया जा रहा है। राहुल गाँधी ने तो इस प्रकरण पर अपने ही अंदाज़ में लिखा है कि – “किसान MSP मांगें, तो उन्हें गोली मारो – ये है मदर ऑफ़ डेमोक्रेसी? जवान नियुक्ति मांगें, तो उनकी बातें तक सुनने से इनकार कर दो – ये है मदर ऑफ़ डेमोक्रेसी? पूर्व गवर्नर सच बोलें, तो उनके घर CBI भेज दो – ये है मदर ऑफ़ डेमोक्रेसी? सबसे प्रमुख विपक्षी दल का बैंक अकाउंट फ़्रीज़ कर दो- ये है मदर ऑफ़ डेमोक्रेसी? धारा 144, इंटरनेट बैन, नुकीली तारें, आंसू गैस के गोले – ये है मदर ऑफ़ डेमोक्रेसी? मीडिया हो या सोशल मीडिया, सच की हर आवाज़ को दबा देना – ये है मदर ऑफ़ डेमोक्रेसी?”
♦तो क्या जिसे ‘मदर ऑफ़ डेमोक्रेसी’ बताया जा रहा है उस देश की वास्तविक हक़ीक़त ही यही है कि यहाँ भ्रष्टाचारियों व आर्थिक व व्यवसायिक अनियमितता बरतने वालों को नहीं बल्कि आर टी आई एक्टिविस्ट या ‘व्हिसलब्लोअर्स’ अथवा भ्रष्टाचार पर उंगली उठाने वालों को ही परेशानी उठानी पड़ सकती है ? ग़ौर तलब है कि पूर्व राजयपाल सत्यपाल मलिक द्वारा गत वर्ष अप्रैल-मई महीने में कई प्रमुख पत्रकारों,टी वी चैनल्स व यू ट्यूब मीडिया चैनल्स को साक्षात्कार दिये गए थे जिसमें मलिक ने पुलवामा हमले को लेकर केंद्र की मोदी सरकार पर गंभीर आरोप लगाए थे। उन्हीं साक्षात्कारों में सतपाल मालिक यह भी कह चुके हैं कि कश्मीर का राज्यपाल रहते उनके पास दो फ़ाइलें आई थीं. एक प्रोजेक्ट से आरएसएस के एक बड़े व्यक्ति जुड़े थे और एक प्रोजेक्ट से उद्योगपति मुकेश अंबानी। वे आरएसएस के उस बड़े व्यक्ति का नाम (राम माधव ) भी ले चुके हैं। परन्तु छापेमारी न तो अंबानी के किसी परिसर में हुई न ही राम माधव के किसी ठिकाने पर ? इसी तरह याद कीजिये दो वर्ष पूर्व अयोध्या में कथित ज़मीन घोटाले को लेकर आप सांसद संजय सिंह ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर कई दस्तावेज़ी सुबूत पेश करते हुये विश्व हिन्दू परिषद् नेता चम्पत राय पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाये थे। परन्तु आज, सांसद संजय सिंह तो किसी दूसरे मामले में जेल में हैं जबकि चम्पत राय राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के मुख्य मेज़बान रहे हैं।यहाँ तक कि 22 जनवरी को अयोध्या के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पहला निमंत्रण देने का भी सौभाग्य उन्हीं को हासिल है ?
♦राहुल गांधी अडानी के व्यवसाय सम्बंधित अनेक अनियमितताओं पर मुखरित होकर बोलने वाले देश के इकलौते साहसी नेता हैं। परन्तु उन की न केवल सांसदी छीनने की कोशिश की जा चुकी बल्कि और भी अनेक मुक़द्द्मों में उन्हें उलझाकर उनकी बुलंद आवाज़ को कमज़ोर करने की कोशिश की जा रही है। हैरत की बात तो यह है कि असम के जिस मुख्यमंत्री हिमंत विस्वा सरमा के द्वारा राहुल गाँधी को उलझने की कोशिश हो रही है वह भाजपा में आने से पूर्व स्वयं भाजपा द्वारा सबसे भ्रष्ट बताये जाने वाले नेताओं में प्रमुख थे। इसी तरह अजित पवार एन सी पी में रहने तक महाभ्रष्ट थे परन्तु अब भाजपा के सहयोगी व महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री बनने के बाद शायद उनसे बड़ा ‘ईमानदार ‘ ही कोई नहीं ? अडानी व सत्ता के विरुद्ध संसद में जमकर बोलने वाली तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा की लोकसभा सदस्यता तो जा ही चुकी अभी उन पर और भी शिकंजा कसने की तैयारी हो रही है। ठीक इसी तरह सतपाल मलिक के जम्मू कश्मीर के राज्यपाल रहते उनके कार्यालय द्वारा रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन लिमिटेड को जम्मू-कश्मीर में सरकारी कर्मचारी व स्वास्थ्य देखभाल बीमा योजना का ठेका देने और एक निजी फ़र्म को किरू हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट के सिविल कार्यों के संबंध में ठेका देने में अनियमितता के आरोप लगाये गये थे। इन मामलों में वित्त विभाग, बिजली विकास विभाग और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो से रिपोर्ट मांगी गई थी। इन रिपोर्टों पर विचार करने के बाद इन मामलों को जांच के लिए सीबीआई को भेजने व सीबीआई से इन मामलों की जांच करने का अनुरोध किया गया था। परन्तु न अम्बानी से कोई पूछताछ न ही बिचौलिये व दलाली करने वालों से कोई सवाल ? उल्टे आरोपी संघी नेता की ओर से ही कथित तौर पर सतपाल मालिक के ख़िलाफ़ ही मान हानि का दावा किये जाने की ख़बर आई थी। और अब सतपाल मालिक के ठिकानों पर की गयी सी बी आई की छापेमारी के बाद फिर वही सवाल बलवती हो रहा है कि आख़िर भारत में बढ़ते भ्रष्टाचार के मध्य निशाने पर ‘व्हिसिल ब्लोअर्स ‘ ही क्यों हैं भ्रष्टाचारी क्यों नहीं ?
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