राजेश शर्मा धनोप।
फुलिया कलां उपखंड क्षेत्र के धनोप गांव में हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी दड़ा महोत्सव मनाया गया। रविवार दोपहर 12 बजे से लेकर 1:30 बजे तक ग्रामीणों द्वारा दड़ी फेक कार्यक्रम चला। फिर नगाड़े के साथ धनोप गढ़ में करीबन 14 किलो दड़े की गढ़ के ठाकुर सत्येंद्र सिंह राणावत व जेनेंद्र सिंह राणावत ने पूजा अर्चना कर 2 बजे पटेल महावीर गुर्जर द्वारा दड़े को फेंका गया। इस बार दड़ा हवाला की तरफ सुनारों के घर तक दो बार गया, कल्याण धणी मंदिर की तरफ बिल्कुल नहीं गया और एक बार बालाजी की तरफ गया। इस बार दड़ा ज्यादातर गढ़ चौक के बीच में ही रहा। दड़ा महोत्सव 2 बजे से 4 बजे तक चला यह खेल बिना रेफरी के खेला गया। शांतिपूर्ण व्यवस्था के साथ दड़ा महोत्सव का 4 बजे समापन हुआ। इस खेल में खिलाड़ी के बीच कभी भी अव्यवहार व मनमुटाव नहीं रहता। इस खेल में गांव व बाहर से पधारे छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्ग तथा महिलाओं सहित सभी ने शांति व्यवस्था बनाए रखी और खेल का आनंद लिया। दड़ा महोत्सव में हजारों की संख्या में ग्रामीण उपस्थित हुए।
ग्रामीणों द्वारा पटेल की मौजूदगी में दड़ा को गढ़ से निकालकर चौक में लाया गया।फिर दो घंटे तक लगातार लोगो ने इस खेल का आनंद उठाया। धनोप गांव में दड़ा बताता है कैसा रहेगा अगला साल सुकाल या अकाल। रियासत काल से दड़ा महोत्सव आयोजन की परंपरा चल रही है।मकर संक्रांति 14 जनवरी को महोत्सव में करीब 14 किलो वजनी इस दड़ा (गेंद) को ग्रामीणों का हुजूम चार छोटे तथा चार बडे कड़ो की सहायता से खींचता है। ग्रामीणों का कहना है कि दड़े (गेंद) में बालाजी व माता जी की मूर्ति स्थापित रहती है। जैसा चक्र चलता है वह उस चक्र में घुमा देते हैं। कल्याण धणी व बालाजी के जयकारों के साथ दड़ा खेल को खेला जाता है।
इससे आगामी वर्ष का मौसम तथा मिजाज का फैसला होता है। अगला साल कैसा होगा यह जानने के लिए बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं।
जब दड़ा महोत्सव शुरू होता है तो ग्रामीणों की भीड़ उमड़ पड़ती है। मकानों की गैलरियों छतों पर काफी संख्या में भीड़ दिखी। यह खेल देखने आसपास के 20 किलोमीटर क्षेत्र के गांव के ग्रामीण,महिलाएं व बच्चे आए। इस खेल की खास बात यह है कि इस खेल में खिलाड़ी सैकड़ों की संख्या में होते हैं लेकिन कोई रेफरी नहीं होता है। पूरी ईमानदारी से खेल का समापन होता है। हर साल इसको रसियो से गुथा जाता है जिससे इसका वजन बढ़ जाता है। दड़े को गुथने का कार्य स्थानीय लोग ही करते हैं। दड़ा खेल की समाप्ति पर इसे वापस गढ़ में अगले साल मकर सक्रांति पर खेलने के लिए सुरक्षित रखा जाता है। धनोप में आज भी यह अद्भुत और रोचक खेल जिंदा है। दड़ा गढ़ की तरफ से हवाले की ओर जाता है तो वर्ष का चक्र शुभ होता है।अगर पश्चिम दिशा में फकीरों के मोहल्ले की ओर जाता है तो साल अशुभ मानते है। इस बार दड़ा खेल ज्यादातर गढ़ चौक में ही खेला गया और समापन में भी गढ़ में खत्म होने से मध्यम साल माना गया। खेल समाप्ति के बाद सभी खिलाड़ियों को गढ़ की तरफ से गुड तथा पालीवाल बोहरा की तरफ से गुड अफीम प्रसाद के रूप में वितरित की गई। इस बार दडे का नतीजा सामान्य रहा। इसलिए इस वर्ष का संकेत जमाना की तरफ है। खिलाड़ी 30 से 45 वर्ष की आयु के युवा थे, जिनमें जोश भरा हुआ था। ग्राम पंचायत द्वारा खिलाड़ियों की सुरक्षा के लिए सीसी रोड पर बालू मिट्टी बिछाई। दड़ा महोत्सव में फुलिया थाना अधिकारी मन्नीराम चोयल सहित जाप्ता मौजूद रहा।