भीलवाड़ा । भीलवाड़ा साँसद दामोदर अग्रवाल ने आज भारत के संविधान के 75 वर्ष की गौरवशाली यात्रा पर चर्चा के दौरान सदन के पटल पर रखा अपना व्यक्तव्य। सांसद प्रवक्ता विनोद झुरानी ने बताया कि भीलवाड़ा सांसद दामोदर अग्रवाल ने संसद के पटल पर अपना व्यक्तव्य रखते हुए कहा कि मैं इस महान सदन को अवगत करना चाहता हूँ कि,12 जून 1975 को इलाहबाद उच्च न्यायालय के जस्टिस श्री जगमोहन खन्ना ने श्री राज नारायण जी की अपील पर फैसला देते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गाँधी के रायबरेली के लोकसभा चुनाव में मतदाताओं को प्रलोभन व सत्ता का दुरूपयोग करने के आरोप सिद्ध होने से इंदिरा जी का लोक सभा का निर्वाचन रद्द कर उन्हें 6 वर्षों के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित कर दिया ।
न्यायलय के निर्णय की अनुपालना के स्थान पर इंदिरा जी को सुप्रीम कोर्ट से भी पूरी राहत नहीं मिलने पर उन्होंने संविधान की आत्मा पर चोट कर देश में आपातकाल की घोषणा करने का षड़यंत्र रचा । पूरे देश में इंदिरा जी की तानाशाही के विरूद्ध लोकनायक स्व. जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में जन आंदोलन परवान पर था । 25 जून 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में एक ऐतिहासिक जन सभा में “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है” का उद्घोष हुआ | अपनी सत्ता जाते देख इंदिरा जी ने स्वयं की कुर्सी बचाने के लिए संविधान का दुरूपयोग कर जनता को, संसद को यहाँ तक कि उनके मंत्रिमंडल को भी बिना विश्वास में लिए तत्कालीन राष्ट्रपति महोदय से देश में आपातकाल थोपने के निर्णय पर हस्ताक्षर करवा लिए । 12 जून से ही चल रहे कूटरचित षड़यंत्र के तहत, 25 जून 1975 की मध्य रात्रि को ही आपातकाल की घोषणा कर , प्रेस पर सेंसरशिप लगा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ सहित अन्य संगठनों पर प्रतिबन्ध लगाकर, उसी काली रात्रि को सभी अख़बारों की प्रेस के बिजली के कनेक्शन काट दिए, आधे अधूरे छपे अख़बारों को जब्त कर लिया गया, देश भर के लगभग 10,000 नेताओं, समाज सेवियों, इंदिराजी विरोधी तमाम लोगो को भी MISA में जेल की सीखचों में निर्दयिता से ठूंसकर नजरबन्द कर दिया गया । प्रतिपक्ष में बैठे सी पी एम, सी पी आई, समाजवादी, अकाली सहित अनेक दलों के शीर्ष नेताओं को भी जेलों में कैदकर यातनाएं दी गई, जेलों में भीषण यातनाओं के कारण लगभग 100 लोकतन्त्र सेनानियों ने प्राण न्योछावर कर दिए, सैकड़ों विक्षिप्त हो गए, 21 महीनों तक बिना कारण बताएं जेलों में रहने को विवश कर दिया गया । नो अपील, नो दलील, नो बेल, नो चार्जशीट “जैसे हालत पैदाकर संविधान व लोक तांत्रिक अधिकारों का निर्ममता पूर्वक हनन किया गया । संत विनोबा भावे जैसे तपोपूत को नजरबन्द किया, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, चंद्रशेखर, चौधरी चरण सिंह, मोरारजी देसाई, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, जॉर्ज फर्नांडेस, बाला साहेब ठाकरे, बाला साहब देवरस जी सहित तमाम ख्यातिनाम हस्तियों को भी क्रूर यातना का शिकार होना पड़ा । समाचार पत्रों में एक भी शब्द बिना सेंसर के नहीं छापा जा सकता था, इंदिरा जी या केंद्र सरकार के जन विरोधी कृत्यों के विरूद्ध आवाज उठाने वाले सभी व्यक्तियों को निरुद्ध कर दिया गया । आज संविधान की प्रति हाथ में लेकर संविधान बचाने का ढोंग रचने वाले तमाम नेता, तनिक आपातकाल के काले पृष्ठ पर नज़र डाले । देश भर में लोकतान्त्र की रक्षा के लिए ऐतिहासिक सत्याग्रह हुआ, एक लाख नौजवानों ने अपना यौवन दाव पर लगाकर, आवाज बुलंद की, सभी को MISA- DIR एवं 151 सहित अन्य धाराओं में गिरफ्तार कर अमानवीय यातनाएं दी गई । 21 माह बाद मार्च 1977 में सभी जेलों में ठुसे गए लाखों लोकतंत्र सेनानियों को रोष, विरोध व ताप से विवश होकर इंदिरा जी को विवश होकर आपातकाल हटाना पड़ा ।।
प्रेस की सेंसरशिप हटी, स्वयंसेवी संगठनों से प्रतिबन्ध हटा, राजनैतिक दलों के दफ्तर व संघ के कार्यालयों की सीलें टूटी और फिर 1977 की ऐतिहासिक चुनावों में जनता जनार्दन ने अपने विराट स्वरूप का प्रदर्शन कर इंदिरा जी सहित कांग्रेस को आईना दिखा, मोरारजी देसाई के नेतृत्व में “जनता पार्टी की सरकार” बनाने का आशीर्वाद दिया । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित इस सदन में मेरे जैसे अनेक नेताओं ने उस इमरजेंसी की असहनीय पीड़ा सही हैं । संविधान के 75 वर्ष के इस दौर में हमें सभी लोकतंत्र सेनानियों को नमन कर उनका पुण्य स्मरण करना चाहिए ।।लोकतंत्र के उस काले अध्याय को यादकर हम सब संकल्प ले की भविष्य में कोई संविधान की आत्मा को कुचलने का दुःसाहस नहीं कर सके ।