अशोक भाटिया , मुंबई
स्मार्ट हलचल/भारत और ईरान ने मई में ओमान की खाड़ी पर चाबहार बंदरगाह के संचालन के लिए 10 साल के समझौते पर हस्ताक्षर किए थे । भारत ने लैंडलॉक्ड अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से यह समझौता किया गया था । हालांकि ईरान के साथ समझौते को लेकर भारत पर दबाव आता रहा है । लेकिन भारत को इस दबाव से कोई फर्क नहीं पड़ा है। यह 2024-25 के बजट में भी दिखा है। यहां भारत ने चाबहार बंदरगाह के लिए 100 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं।भारत और ईरान के बीच चाबहार के शाहिद बेहिश्ती बंदरगाह के सामान्य कार्गो और कंटेनर टर्मिनलों के उपकरण और संचालन के लिए अनुबंध के अनुसार आईपीजीएल बंदरगाह को सुसज्जित करने में लगभग 120 मिलियन अमरीकी डालर का निवेश करेगा। भारत ने चाबहार से संबंधित बुनियादी ढांचे में सुधार लाने के उद्देश्य से पारस्परिक रूप से पहचानी गई परियोजनाओं के लिए 250 मिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर आईएन क्रेडिट विंडो की भी पेशकश की थी । चाबहार बंदरगाह एक भारत-ईरान फ्लैगशिप परियोजना है जो अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापार के लिए एक महत्वपूर्ण पारगमन बंदरगाह के रूप में कार्य करती है, जो भूमि से घिरे हुए देश हैं। चाबहार बंदरगाह के विकास और संचालन में भारत एक प्रमुख खिलाड़ी हो रहा है।
भारत क्षेत्रीय व्यापार खासकर अफगानिस्तान से संपर्क बढ़ाने के लिए चाबहार बंदरगाह परियोजना पर जोर दे रहा है। यह बंदरगाह अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (आईएनएसटीसी) परियोजना के एक प्रमुख केंद्र के तौर पर पेश किया गया है। आईएनएसटीसी परियोजना भारत, ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल-ढुलाई के लिए 7,200 किलोमीटर लंबी एक बहुस्तरीय परिवहन परियोजना है। विदेश मंत्रालय (एमईए) ने ईरान के साथ संपर्क परियोजनाओं पर भारत की अहमियत को रेखांकित करते हुए 2024-25 के लिए चाबहार बंदरगाह के लिए 100 करोड़ रुपये आवंटित किए है ।
चाबहार बंदरगाह पर भारत ने जो भारी निवेश किया है वह दिल्ली के लिए रणनीतिक और आर्थिक महत्व रखता है। यह भारत को कराची और ग्वादर में पाकिस्तान के बंदरगाहों को बायपास करने और भूमि से घिरे अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों तक पहुंचने की अनुमति देता है। इसके अलावा, इस बंदरगाह को चीन की सबसे चर्चित बेल्ट एंड रोड पहल का प्रतिउत्तर भी माना जाता है। यह व्यापारिक समुदायों के लिए संवेदनशील और व्यस्त फारस की खाड़ी और होर्मुज जलडमरूमध्य से वैकल्पिक पारगमन मार्ग का पता लगाने के लिए आर्थिक अवसरों का एक नया द्वार भी खोलता है। हालाँकि, ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से इसका असर इस प्रोजेक्ट पर पड़ा था। ईरान के माध्यम से दक्षिण एशिया और मध्य एशिया के बीच एक नया व्यापार मार्ग खोलेगा। कनेक्टविटी के मामले में अफगानिस्तान, मध्य एशिया और यूरेशियन क्षेत्रों के बीच चाबहार पोर्ट काफी अहम साबित होगा।
उधर अमेरिका ने चेताते हुए कहता रहता है कि जो भी ईरान के साथ कारोबार करने पर विचार कर रहा है, उसे हमारी ओर से संभावित प्रतिबंधों के जोखिमों से वाकिफ रहने की जरूरत है। अमेरिका के विदेश विभाग के प्रधान उप प्रवक्ता वेदांत पटेल से जब चाबहार पोर्ट को लेकर भारत और ईरान के एग्रीमेंट को लेकर सवाल किया गया था तो पटेल ने कहा कि हम इन खबरों से वाकिफ हैं कि ईरान और भारत ने चाबहार पोर्ट को लेकर एक डील की है। भारत सरकार की अपनी विदेश नीति है। ईरान के साथ चाबहार पोर्ट को लेकर की गई डील और ईरान के साथ उनके द्विपक्षीय संबंधों को वह बेहतर तरीके से समझता है। लेकिन जहां तक अमेरिका की बात है। ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध जारी रहेंगे।
ये पूछने पर कि क्या इसका मतलब है कि भारतीय कंपनियों पर भी प्रतिबंध लग सकते हैं। इस पर उन्होंने कहा कि आपको बता दूं कि कोई भी अगर ईरान के साथ बिजनेस डील करने पर विचार कर रहा है तो उन्हें इसके संभावित जोखिम पता होने चाहिए। उन्हें पता होना चाहिए कि उन पर भी प्रतिबंध लग सकते हैं।
गौरतलब है कि चाबहार में दो पोर्ट हैं। पहला- शाहिद कलंतरी और दूसरा- शाहिद बहिश्ती। शिपिंग मिनिस्ट्री की इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल शाहिद बहिश्ती का काम संभालती है।भारत वैसे तो पहले से ही इस पोर्ट का कामकाज संभाल रहा था। लेकिन ये शॉर्ट-टर्म एग्रीमेंट था। समय-समय पर इसे रिन्यू करना पड़ता था। लेकिन अब 10 साल के लिए लॉन्ग-टर्म एग्रीमेंट हो गया है।सालों से भारत और ईरान के बीच लॉन्ग-टर्म एग्रीमेंट को लेकर बातचीत चल रही थी। लेकिन कई कारणों की वजह से इसमें देरी आ रही थी। बीच में भारत और ईरान के बीच भी रिश्तों में थोड़ी तल्खी आ गई थी। इसके अलावा ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण भी इस समझौते में देरी हुई।बताया जा रहा है कि इस डील के तहत इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल चाबहार बंदरगाह में लगभग 12 करोड़ डॉलर का इन्वेस्टमेंट करेगा। भारत चाबहार पोर्ट का एक हिस्सा डेवलप कर रहा है, ताकि ईरान, अफगानिस्तान और मध्य एशिया के देशों तक सामान पहुंचाया जा सके। नई डील से पाकिस्तान के कराची और ग्वादर पोर्ट को बायपास किया जा सकेगा और ईरान के जरिए दक्षिण एशिया और मध्य एशिया के बीच कारोबारी रास्ता खुलेगा।
ईरान और अफगानिस्तान तक भारत की सीधी पहुंच के लिए चाबहार पोर्ट अहम जरिया है। एक ओर, अमेरिकी प्रतिबंधों के प्रभावों से निपटने में चाबहार पोर्ट से ईरान की मदद हो सकती है। दूसरी ओर, हिंद महासागर तक पहुंच के लिए अफगानिस्तान की निर्भरता पाकिस्तान पर कम हो सकती है।2016 में भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच इंटरनेशनल ट्रेड कॉरिडोर को लेकर समझौता हुआ था। इस कॉरिडोर में चाबहार को भी शामिल किया जाएगा। इसके बाद भारत ने शाहिद बहिश्ती का काम तेज कर दिया था।
शाहिद बहिश्ती के पहले फेज का काम दिसंबर 2017 में पूरा हो गया था। तब भारत ने यहीं से अफगानिस्तान तक गेहूं की पहली खेप भेजी थी। 2019 में पहली बार चाबहार पोर्ट के जरिए अफगानिस्तान से कोई सामान भारत आया था।शाहिद बहिश्ती पोर्ट का काम चार फेज में पूरा होना है। काम पूरा होने के बाद इसकी क्षमता 8।2 करोड़ टन सालाना हो जाएगी। यहां पर एक क्रूज टर्मिनल भी बनकर तैयार हो गया है, जिससे इस पोर्ट की क्षमता और बढ़ गई है।
ईरान में बन रहे चाबहार पोर्ट को चीन और पाकिस्तान के लिए जवाब भी माना जा रहा है। इस कारण भारत की यहां दिलचस्पी बहुत है। ग्वादर पोर्ट में चीन की मौजूदगी की वजह से चाबहार पोर्ट में भारत का होना फायदेमंद है।चीन पाकिस्तान में ग्वादर पोर्ट बना रहा है। ग्वादर पोर्ट और चाबहार पोर्ट के बीच सड़क के रास्ते 400 किलोमीटर की दूरी है। जबकि, समंदर के जरिए ये दूरी 100 किलोमीटर के आसपास है। पाकिस्तान और चीन ईरानी सरहद के क़रीब ग्वादर पोर्ट को विकसित कर रहे हैं। भारत, ईरान और अफ़ग़ानिस्तान को जोड़ने वाले चाबहार पोर्ट को ग्वादर पोर्ट के लिए चुनौती के तौर पर देखा जाता है। सामरिक दृष्टि से भी पाकिस्तान में चीन के नियंत्रण वाले ग्वादर पोर्ट के पास भारतीय मौजूदगी अहम मानी जा रही है।