Congress in shock
स्मार्ट हलचल/उत्तर प्रदेश की राजनीति में अखिलेश यादव ने इस समय कांग्रेस को चौंका दिया है। विपक्षी गठबंधन इंडिया के तहत पिछले दिनों सहयोगी दलों के साथ गठबंधन पर खूब चर्चा हुई। बात नहीं बन पाई। एक तरफ ममता बनर्जी बंगाल में इंडिया के पक्ष में नहीं दिख रही हैं। दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी पंजाब, हरियाणा, दिल्ली को लेकर तेवर दिखा रही है।इंडिया गठबंधन को आकार देने वाले नीतीश कुमार अलग ही लाइन पर हैं उन्होंने इंडिया गठबंधन छोड़ कर भाजपा के साथ सरकार बना ली है । अब बिहार की सरकार में कांग्रेस का कोई रोल नहीं है । क्योकि इंडिया के नेताओं ने साइडलाइन किया तो उन्होंने लाइन बदलने के लिए संकेत दे दिए थे । आज का दिन बिहार की राजनीति में अहम रहने वाला है। वहीं, शनिवार को अखिलेश ने उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की लाइन तय कर दी है। अब पार्टी या तो उस लाइन के दायरे में रहेगी या फिर उनके पास बे-गठबंधन का एक विकल्प बचेगा। ऐसे में पार्टी की चुनौती और ज्यादा बढ़ सकती है। अखिलेश के एक्शन को मौके पर चौका के तौर पर देखा जा रहा है।
उधर तमिलनाडु में डीएमके ने कहा है कि कॉन्ग्रेस सिर्फ लोकसभा चुनाव में अधिक सीटों के लिए पार्टी चला रही है। मंत्री राजा कन्नप्पन ने कहा कि कॉन्ग्रेस एक बड़ी और पुरानी पार्टी है, लेकिन उसने अब अपनी ताकत खो दी है। उन्होंने पूछा कि केवल चुनाव लड़ने के लिए सीटें लेने का क्या फायदा है? उन्होंने कहा है कि कॉन्ग्रेस इसीलिए काम नहीं करती कि जनता का अच्छा हो, जब चुनाव आता है तो वो आ जाते हैं। लोगों के बीच ये सब काम नहीं करता। उन्होंने गुरुवार 24 जनवरी, 2024 को पुडुचेरी में भाषा संघर्ष में मरे लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित करने हुए ये बातें कही। मंत्री ने कहा कि भाजपा को हम देख लेंगे।
इस परिस्थिति में कांग्रेस पश्चिम बंगाल, बिहार, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में अकेली पड़ती दिख रही है। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में पार्टी किसी भी स्थिति में अपनी स्थिति कमजोर नहीं होने देना चाहेगी। अखिलेश यादव भी यह समझ रहे थे। ऐसे में उन्होंने कांग्रेस के लिए सीटों की घोषणा कर अपनी मंशा साफ कर दी है। पिछले दिनों अखिलेश लगातार इंडिया की बैठक से पहले उत्तरप्रदेश में सीट बंटवारे की बात कर रहे थे। लेकिन, उनकी बात सुनी नहीं गई। अब उन्होंने अपनी सुना दी है।
इसके विपरीत पिछले दिनों सूत्रों के हवाले से खबर सामने आई थी कि उत्तरप्रदेश में कांग्रेस 80 में से 23 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है।सपा की तरफ से साफ किया गया है कि सपा ने कांग्रेस को 11 सीटें ऑफर की हैं, अगर कांग्रेस अखिलेश यादव को और सीटों पर जिताऊ उम्मीदवारों के बारे में बताती है तो यह सीटें बढ़ाई भी जा सकती हैं। शुरुआती तौर पर सपा ने कांग्रेस को उत्तरप्रदेश में 11 सीटें ऑफर की हैं। कांग्रेस प्रदेश नेतृत्व ने अखिलेश यादव के 11 सीटें देने के प्रस्ताव पर नाराजगी जताई है। प्रदेश के शीर्ष कांग्रेस नेतृत्व ने कहा है कि यह अखिलेश यादव का एकतरफा यानि अपना फैसला है जिससे वो सहमत नहीं है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने अखिलेश यादव की पोस्ट पर प्रतिक्रया दी है। उन्होंने कहा कि बातचीत अभी भी जारी है। तस्वीर साफ होने के बाद हम घोषणा कर सकेंगे।वहीं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि जो मेरी जानकारी में है कि अभी बातचीत चल रही है। हमारी राष्ट्रीय कमेटी इस पर जो बातचीत कर रही है। मुकुल वासनिक के नेतृत्व में जो कमेटी है, उसकी समाजवादी पार्टी के सीनियर लीडर्स के साथ अभी बातचीत चल रही है। 11 सीटों को लेकर हुए समझौते की बात की अभी जानकारी में नहीं है। अभी कुछ फाइनल नहीं हुआ है।
आपको बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में एसपी का कांग्रेस के साथ कोई औपचारिक गठबंधन नहीं था, लेकिन अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली पार्टी ने रायबरेली और अमेठी सीटों पर कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था, जहां कांग्रेस नेताओं सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी ने चुनाव लड़ा था। कांग्रेस ने सूबे की 80 में से 67 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। पार्टी 6।4 फीसदी वोट शेयर के साथ केवल एक सीट ही जीत सकी और तीन सीटों पर दूसरे स्थान पर रही। तब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे राहुल गांधी अपनी सीट भी नहीं बचा पाए थे।
सपा, कांग्रेस और आरएलडी, तीनों ही दलों के अपने-अपने दावे के समर्थन में अपने-अपने तर्क हैं। लेकिन आंकड़े क्या कहते हैं? इसकी चर्चा भी जरूरी है। साल 2019 के चुनाव की बात करें तो सपा, बसपा और आरएलडी से गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरी थी। सपा ने 37 और बसपा ने 38 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। आरएलडी के हिस्से तीन सीटें आई थीं। सपा-बसपा-आरएलडी के गठबंधन ने सोनिया गांधी की सीट रायबरेली और अमेठी में राहुल गांधी के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारे थे। तब सपा ने 18।1 फीसदी वोट शेयर के साथ 37 में से पांच सीटें जीती थीं और 31 सीटों पर पार्टी के उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे थे। एक सीट पर पार्टी तीसरे स्थान पर रही थी। सपा को कुल 1 करोड़ 55 लाख 33 हजार 620 वोट मिले थे।
कांग्रेस अगर अखिलेश यादव के 11 सीटों के ऑफर के विकल्प को ठुकराती है तो उनके सामने ऑप्शन अधिक नहीं दिख रहे हैं। लोकसभा चुनाव 2024 में अब अधिक वक्त नहीं रह गया है। उत्तरप्रदेश जैसे राज्य में पार्टी ने प्रदेश स्तर पर कोई अभियान शुरू नहीं किया है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी से मुकाबले के लिए कांग्रेस को एक मजबूत साथी चाहिए। अगर सीटों के मसले पर सपा से कांग्रेस की बात नहीं बनी तो पार्टी बसपा का रुख कर सकती है। मायावती की टीम के साथ पिछले दिनों प्रियंका गांधी की टीम के संपर्क में रहने की बात सामने आई थी। हालांकि, कांग्रेस की ओर से सपा से ही गठबंधन की बात कही गई। लेकिन, सपा की ओर से सीट के मसले पर साफ किए जाने के बाद कांग्रेस क्या गठबंधन बदलेगी? यह देखना दिलचस्प रहने वाला है।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए स्थिति अनुकूल होती नहीं दिख रही है क्योकि कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी समस्या निचले स्तर पर संगठन को मजबूत करने की है। पार्टी के वोट बैंक को मजबूत बनाने के लिए बड़े प्रयास की जरूरत है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी अजय राय को दिए जाने के बाद ऊपरी स्तर पर गतिविधियां बढ़ी है, लेकिन बूथ स्तर तक पार्टी को मजबूत बनाने के लिए बड़े स्तर पर काम करना होगा। पार्टी के संगठन को मजबूत करने का प्रयास हो रहा है, लेकिन यह एक लंबी प्रक्रिया है। पार्टी अभी भी अंदरूनी कलह में फंसी हुई दिखती है। ऐसी स्थिति में लोकसभा चुनाव 2024 के लिए उत्तर प्रदेश में किसी बड़े दल के साथ गठबंधन करना कांग्रेस के लिए मजबूरी बन गया है।
देखा जाए उत्तरप्रदेश चुनाव 2022 में समाजवादी पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी को तगड़ी टक्कर दी थी। कई स्थानों पर आमने- सामने के मुकाबले में समाजवादी पार्टी उम्मीदवार नजदीकी अंतर से हारे। ऐसे में समाजवादी पार्टी के ग्राउंड लेवल कार्यकर्ताओं का नेटवर्क कांग्रेस ये काफी बढ़िया दिख रहा है। उसका इस्तेमाल कांग्रेस अपने उम्मीदवारों के पक्ष में करने की कोशिश में दिख रही है।
उत्तरप्रदेश में कांग्रेस का प्रदर्शन लगातार खराब होता रहा है। लोकसभा चुनाव 2014 में कांग्रेस को दो सीटों पर जीत मिली थी। रायबरेली और अमेठी सीटों पर ही पार्टी जीत दर्ज कर सकी। रायबरेली से सोनिया गांधी और अमेठी से राहुल गांधी चुनाव जीते थे। लेकिन, 2019 में कांग्रेस अमेठी सीट भी हार गई। केवल रायबरेली से सोनिया गांधी जीत सकीं। ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाने की कोशिश करती दिख रही है। इसमें समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन से फायदा मिलने की उम्मीद दिख रही है।लोकसभा चुनाव 2019 में मायावती की पार्टी बसपा ने अखिलेश यादव के साथ गठबंधन किया था। इसका फायदा मायावती को मिला । 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा खाता भी नहीं खोल पाई थी। वहीं 2019 में महागठबंधन के जरिए मायावती की पार्टी 10 सीटें जीतने में कामयाब हो गई। कांग्रेस भी कुछ इसी प्रकार की उम्मीद में है। ऐसे में उनके सामने अधिक विकल्प का अभाव दिख रहा है।
अशोक भाटिया,