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क्या लोकसभा में डिप्टी स्पीकर के लिए अवधेश प्रसाद का नाम सुझा कर ममता बनर्जी ने एक तीर से दो निशाने साधे है ?

>अशोक भाटिया , मुंबई
स्मार्ट हलचल/इस बात में कोई दो राय नहीं कि तकरीबन 28 दलों की एकता से खड़े हुए INDI अलायंस पर कांग्रेस लगभग कब्जा कर चुकी है। अलायंस के महत्वपूर्ण फैसलों में कांग्रेस का दबदबा रहा है। यहां तक कि हालिया लोकसभा के स्पीकर चुनाव में खुद का कैंडिडेट उतारकर पार्टी अपने सहयोगियों को संदेश दे चुकी है कि उसके फैसले ही INDI गठबंधन के फैसले हैं। ऐसा नहीं है, कांग्रेस की ‘दादागिरी’ का विरोध किसी ने किया नहीं है, नीतीश कुमार इसी पार्टी की गठबंधन को हथियाने वाली नीति को जिम्मेदार बताकर INDI को छोड़ चुके हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी भली-भांति समझ रही हैं कि गठबंधन लगभग कांग्रेस के कब्जे में जा चुका है। खैर, अब ममता बनर्जी ने एक ऐसा दांव चल दिया है, जिससे सिर्फ कांग्रेस की परेशानी नहीं बढ़ेगी, बल्कि खुद ममता बनर्जी का पक्ष मजबूत हो जाएगा।
संसद में सांसदों का संख्याबल बढ़ा है तो विपक्ष लोकसभा स्पीकर पद से लेकर डिप्टी स्पीकर पद पर कब्जे की कोशिश में लगा है। खैर, लोकसभा स्पीकर का चुनाव संपन्न हो चुका है और भाजपा के ओम बिरला लगातार दूसरी बार इस कुर्सी पर बैठे हैं। हालांकि डिप्टी स्पीकर का पद खाली है, जिसके लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों में मुकाबला हो सकता है। इसी बीच ममता बनर्जी ने डिप्टी स्पीकर पद के लिए एक नाम सुझाया है, जिससे कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फिर सकता है।
ममता बनर्जी ने कैसे एक तीर से दो निशाने साध लिए हैं, इसको ऐसे समझ सकते हैं कि जब लोकसभा स्पीकर का चुनाव हुआ तो कांग्रेस ने खुद ही अपने सांसद के सुरेश को कैंडिडेट के रूप में उतार दिया, लेकिन इस एकतरफा फैसले से ममता बनर्जी खुश नहीं थीं। टीएमसी ने एक बयान में कहा था कि स्पीकर चुनाव में उम्मीदवार उतारने से पहले उससे सलाह नहीं ली गई थी। इसे टीएमसी ने ‘एकतरफा’ फैसला करार दिया था। यही नहीं, टीएमसी ने एक सुरेश के नामांकन पर साइन भी नहीं किए थे। इस पूरे घटनाक्रम में दिखा था कि ममता बनर्जी अकेले पड़ चुकी हैं, क्योंकि किसी और दल ने के सुरेश को उम्मीदवार बनाए जाने पर आपत्ति नहीं जताई थी। मसलन ममता बनर्जी को पीछे हटना पड़ा था।
फिलहाल डिप्टी स्पीकर पद के लिए संभावित चुनाव की तैयारी चल रही है। वैसे डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को देने की परंपरा रही है, लेकिन भाजपा बिना चुनाव के ये पद विपक्ष को नहीं देना चाहती है। इस स्थिति में विपक्ष की तरफ से ममता बनर्जी ने एक नाम का प्रस्ताव रख दिया है। पुष्टि तो नहीं है, लेकिन सूत्र बताते हैं कि ममता बनर्जी ने डिप्टी स्पीकर के लिए समाजवादी पार्टी के सांसद अवधेश प्रसाद के नाम का प्रस्ताव केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह को दिया है। सूत्र कहते हैं कि राजनाथ सिंह ने ममता बनर्जी से फोन पर बात करके डिप्टी स्पीकर के मुद्दे पर चर्चा की थी।
पिछला घटनाक्रम कहता है कि टीएमसी सुप्रीमो का ये दांव बहुत बड़ा है। ममता बनर्जी ने कहीं ना कहीं एक तीर से दो निशाने साध लिए हैं, क्योंकि कांग्रेस अपनी प्लानिंग कर रही थी कि वो अपना स्पीकर बनाएगी। अब अवधेश प्रसाद के नाम का प्रस्ताव बताता है कि विपक्ष में कांग्रेस सबसे बड़ा दल होने के बावजूद टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी चाहती हैं कि डिप्टी स्पीकर गैर-कांग्रेसी हो। उसके अलावा अवधेश प्रसाद के नाम का प्रस्ताव अखिलेश यादव के लिए बड़ी खुशी जैसा फैसला होगा। इससे जाहिर है कि अखिलेश यादव का झुकाव ममता बनर्जी की तरफ होगा जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो INDI गठबंधन में ममता बनर्जी और मजबूत नेता बन जाएंगी।
इसमें कोई दोराय नहीं है कि ममता बनर्जी की महत्वाकांक्षा भी प्रधानमंत्री बनने की रही है। कई बार मीडिया के सहारे टीएमसी के नेताओं ने INDI गठबंधन में ममता बनर्जी की दावेदारी को मजबूत किया है। अभी इसकी गुंजाइश बची नहीं है, क्योंकि देश की जनता ने INDI गठबंधन को सत्ता में बैठने का मौका नहीं दिया है। हालिया लोकसभा चुनावों में गैर-एनडीए दल मिलकर भी सरकार नहीं बना पाए हैं। ये जरूर है कि विपक्षी की स्थिति बीते 10 साल में अब आकर सुधरी है।
एक पक्ष यह भी है कि अवधेश प्रसाद दलित समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जिसके चलते इंडिया गठबंधन उनके पीछे खड़े रह सकता है, लेकिन भाजपा के लिए एक कठिन प्रस्ताव है।कांग्रेस विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी है, बावजूद इसके ममता बनर्जी ने लोकसभा डिप्टी स्पीकर के लिए सपा सांसद अवधेश प्रसाद के नाम का प्रस्ताव रखा है। कांग्रेस की तरफ से पहले दलित समुदाय से आने वाले वरिष्ठ सांसद के सुरेश के नाम की चर्चा थी, लेकिन ममता ने अवधेश का नाम आगे बढ़ा दिया है। अखिलेश यादव की बिना मर्जी से ममता ने यह फैसला नहीं लिया होगा।
यह स्पष्ट है कि सपा और टीएमसी में एक राय बनने के बाद ममता ने मास्टर स्ट्रोक चला है। कांग्रेस वक्त की नजाकत को देखते हुए अवधेश प्रसाद का विरोध नहीं करेगी, क्योंकि अभी उसके टारगेट पर भाजपा औरप्रधानमंत्री मोदी हैं। ऐसे में गठबंधन राजनीति के दूरगामी हितों को देखते हुए कांग्रेस डिप्टी स्पीकर पद के लिए अवधेश प्रसाद के नाम का समर्थन कर सकती है।
लोकसभा डिप्टी स्पीकर चुनाव के मौके पर संयुक्त उम्मीदवार के तौर पर अवधेश के नाम को इंडिया गठबंधन आगे बढ़ाएगा। गठबंधन उनके नाम को आगे कर दलित समुदाय को खास संदेश देना चाहता है। इससे पहले स्पीकर के लिए दलित वर्ग से आने वाले के. सुरेश को विपक्ष ने उम्मीदवार बनाया था।
बताया जाता है कि उत्तर प्रदेश में दलित वोटों को और अधिक एकजुट करने की यह रणनीति है। खास तौर पर अयोध्या हारने का भाजपा के जख्मों को भी हरा करने की है। इसीलिए ममता बनर्जी ने यह चतुराई के साथ उनके नाम को आगे किया। इस तरह कांग्रेस बनाम भाजपा के बजाय अब विपक्ष बनाम भाजपा के नैरेटिव बनाने का दांव चला है।
ममता बनर्जी और अखिलेश यादव ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी के साथ दोस्ताना रवैया दिखाया है। डिप्टी स्पीकर के लिए गैर-कांग्रेस उम्मीदवार होने से सभी विपक्षी दलों का समर्थन हासिल हो सकता है। खासकर वो दल जो कांग्रेस के साथ खड़े नहीं होना चाहते हैं, वो भी इस मुद्दे पर साथ आए सकते हैं। अवधेश प्रसाद के नाम पर इंडिया गठबंधन के घटकदलों के साथ-साथ आम आदमी पार्टी, अकाली दल और निर्दलीय सांसद चंद्रशेखर आजाद जैसे नेताओं का भी समर्थन मिल सकता है।
अवधेश प्रसाद के नाम को आगे बढ़ाकर विपक्ष ने भाजपा को कश्मकश में डाल दिया है। टीएमसी और सपा को लगता है कि फैजाबाद सांसद अवधेश प्रसाद एक अलग तरह के कैंडिडेट होंगे और उनकी उम्मीदवारी एक मजबूत संदेश देगी। सूत्रों की माने तो राहुल गांधी और अखिलेश से बातचीत में ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने कहा कि लोकसभा डिप्टी स्पीकर पद के लिए इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार का चयन एक ‘मजबूत संदेश’ देना चाहिए, क्योंकि संसद में संख्या बल के हिसाब से इंडिया गठबंधन कमजोर है।
इसलिए प्रतीकात्मकता पर मैसेज देने की कोशिश करनी चाहिए। यूपी की उस पार्टी के नेता का नाम डिप्टीस्पीकर के लिए बढाया है, जो 37 सांसदों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है।
हालांकि, 1990 से लेकर 2014 तक डिप्टी स्पीकर का पद भी सत्ता पक्ष के पास था। 2019 से 2024 तक डिप्टी स्पीकर का पद खाली था लेकिन 2014 में मोदी सरकार ने डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को देने के बजाय एनडीए में अपने सहयोगी एआईएडीएमके को दिया था। माना जा रहा है कि इस बार भाजपा डिप्टी स्पीकर का पद एनडीए के सहयोगी टीडीपी को दे सकती है। ऐसे में ममता ने अवधेश प्रसाद का नाम चलाकर भाजपा को कशमकश में डाल दिया है।
मोदी सरकार भले ही अभी तक उपसभापति पद के लिए किसी उम्मीदवार पर सहमति नहीं बना पाई हो लेकिन विपक्ष की ओर से इस पद के लिए उम्मीदवार पर आम सहमति बनाना स्वाभाविक है। स्पीकर के लिए के। सुरेश भले ही चुनाव हार गए, लेकिन विपक्ष को लगता है कि वह अपनी बात को रेखांकित करने में सक्षम था कि मोदी सरकार को और अधिक उदार होने की आवश्यकता है।
खासकर हाल के चुनावों में भाजपा को अपने दम पर बहुमत नहीं मिल सका। इसीलिए केंद्र में बनी मोदी सरकार भाजपा की नहीं बल्कि एनडीए की सरकार है। विपक्ष के नैरेटिव कि भाजपा संविधान बदल सकती है और दलितों के आरक्षण अधिकारों को छीन सकती है। ऐसे में भाजपा के लिए अवधेश प्रसाद की उम्मीदवारी का विरोध करना मुश्किल नजर आ रहा है।
अवधेश प्रसाद का डिप्टी स्पीकर के लिए विरोध करके भाजपा खुद दलित विरोधी कठघरे में खड़ी नहीं होना चाहेगी। अवधेश प्रसाद दलितों पासी जाति से आते हैं, जो अनुसूचित जातियों में जाटवों के बाद दूसरा सबसे बड़ा समूह है और जो यूपी की आबादी 3 फीसदी है। इस बार पासी जाति से आठ सांसद यूपी से जीतकर आए हैं।
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के कुछ महीने बाद लोकसभा चुनाव में भाजपा का फैजाबाद सीट हार जाना सियासी तौर पर बड़ा झटका था। अवधेश प्रसाद के जरिए विपक्ष भाजपा को उलझन में डाल देना चाहता है। प्रधानमंत्री मोदी को छोड़कर यूपी से कोई भी नेता संवैधानिक पद पर नहीं है। राष्ट्रपति ओडिशा से आती हैं और उपराष्ट्रपति, लोकसभा के स्पीकर दोनों ही राजस्थान से आते हैं। राज्यसभा में उपसभापति बिहार से आते हैं। ऐसे में देश में सबसे ज्यादा सीटें देने वाले यूपी से लोकसभा में डिप्टी स्पीकर बनाने की स्ट्रैटेजी विपक्ष ने बनायी है।भाजपा अगर अवधेश प्रसाद का विरोध करती है तो विपक्ष का संदेश देने की कोशिश करेगी कि अयोध्या से जीते हुए सांसद को डिप्टी स्पीकर के लिए स्वीकार नहीं कर रही है। विपक्ष इसे लगातार सियासी मुद्दा बनाएगा और पिछले दस सालों से मिल रहा दलित वोटर जो इस बार चुनाव में सपा-कांग्रेस में शिफ्ट हुआ है।

स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  01 अगस्त  2024, Smart Halchal News Paper 01 August 
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