Homeभीलवाड़ाधनोप में दड़ा महोत्सव, साल का आकलन बताने वाला अनोखा पर्व

धनोप में दड़ा महोत्सव, साल का आकलन बताने वाला अनोखा पर्व

शाहपुरा, मूलचन्द पेसवानी
भीलवाड़ा जिले के अंतिम छोर पर अजमेर जिले की सीमा से सटे धनोप गांव में हर साल मकर संक्रांति पर आयोजित होने वाला दड़ा महोत्सव न केवल मनोरंजन का प्रतीक है, बल्कि ग्रामीणों के लिए आने वाले वर्ष के हालात का आकलन करने का माध्यम भी है। इस साल 14 जनवरी को होने वाले इस पारंपरिक उत्सव को लेकर पूरे क्षेत्र में उत्साह का माहौल है।
दड़ा महोत्सव ग्रामीणों के बीच विशेष महत्व रखता है। मकर संक्रांति के दिन खेले जाने वाले इस अनोखे खेल के आधार पर वर्षभर के जमाने का अनुमान लगाया जाता है। क्या यह साल सुकाल रहेगा या अकाल का सामना करना पड़ेगा, फसल के लिए बारिश का रुख कैसा होगा, इन सब बातों का आकलन ग्रामीण दड़ा खेल के परिणाम से करते हैं।
यह खेल ग्रामीण संस्कृति और सौहार्द का प्रतीक है। शाहपुरा पंचायत समिति के अंतिम छोर पर स्थित धनोप शक्तिपीठ में यह खेल सदियों से खेला जा रहा है। इसे देखने के लिए सैकड़ों ग्रामीण और आसपास के क्षेत्रों के लोग बड़ी संख्या में जुटते हैं। ग्रामीणों की परंपरा और आपसी मेलजोल का यह खेल प्रदेश में अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए है।
धनोप मंदिर प्रन्यास ट्रस्ट के अध्यक्ष सत्येंद्र सिंह राणावत ने बताया कि दड़ा खेल की विशिष्टता इसे पूरे राज्य में प्रसिद्ध बनाती है। 7 किलो वजनी रस्सियों से बनी गेंद, जिसे दड़ा कहते हैं, इस खेल का केंद्र होती है। यह गेंद गांव के लोगों द्वारा तैयार की जाती है और इसे खेल के दौरान दो टीमों के बीच रखकर खींचा जाता है।
खेल की शुरुआत धनोप के प्राचीन कल्याणधणी मंदिर और माता धनोप की पूजा-अर्चना के साथ होती है। दड़ा को गढ़ से निकालकर चैक में लाया जाता है, जहां दोपहर 2 बजे से यह खेल शुरू होता है और शाम 4 बजे तक चलता है। खेल के दौरान अगर दड़ा उत्तर-पूर्व दिशा में जाता है, तो वर्ष शुभ माना जाता है। यदि यह पश्चिम दिशा में फकीर मोहल्ले की ओर जाता है, तो अशुभ संकेत माना जाता है।
दड़ा खेल में दो दल होते हैं, जो गांव के ऊपर वाले पाड़ा और नीचे वाले पाड़ा के आधार पर बनाए जाते हैं। खिलाड़ियों की संख्या निर्धारित नहीं होती। गांव का हर व्यक्ति इसमें भाग ले सकता है। यह खेल बिना किसी रेफरी के अनुशासन और ग्रामीण जोश के साथ खेला जाता है।
यह खेल ग्रामीणों के आपसी भाईचारे और मेलजोल को बढ़ावा देने वाला यह महोत्सव क्षेत्रीय सांस्कृतिक जीवन की धरोहर है। खेल के दौरान छतों पर बैठे दर्शक लगातार ताने मारकर और जोश बढ़ाकर खिलाड़ियों का उत्साहवर्धन करते हैं। खेल के अंत में गढ़ की ओर से सभी खिलाड़ियों को गुड़ और प्रसाद वितरित किया जाता है। इस खेल में जूते-चप्पल पहनने और नशा करने की सख्त मनाही होती है, जिससे खेल की पवित्रता और अनुशासन बनाए रखा जाता है।
यह उत्सव शाहपुरा रियासत के पूर्व शासक सरदार सिंह के समय से मनाया जा रहा है। ग्रामीण इसे मां धनोप का आशीर्वाद मानते हैं। दड़ा को खींचने के लिए बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक पूरे उत्साह और ताकत के साथ भाग लेते हैं। धनोप के पुजारी ने बताया कि दड़ा महोत्सव के दौरान बाजार और बिजली पूरी तरह बंद रहती है। यह खेल केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि गांव के सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन का अभिन्न हिस्सा है। गांव के लोग इसे मां धनोप और भगवान कल्याणधणी के आशीर्वाद से जोड़ते हैं।
दड़ा महोत्सव अपनी परंपरा और मौलिकता के कारण आज भी प्रासंगिक है। जहां आधुनिक खेलों ने ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी जगह बनाई है, वहीं दड़ा महोत्सव अपने सांस्कृतिक महत्व के कारण ग्रामीणों के दिलों में बसता है। इस बार भी यह खेल आस-पास के गांवों के लिए आकर्षण का केंद्र होगा। लोग सवारी बसों, मोटरसाइकिलों और पैदल चलकर इस आयोजन का हिस्सा बनने आते हैं। मकानों और दुकानों की छतों पर दर्शक खेल का भरपूर आनंद उठाते हैं।
धनोप का दड़ा महोत्सव न केवल मनोरंजन और खेल का अवसर है, बल्कि यह गांव की संस्कृति, परंपरा, और भविष्यवाणी का महत्वपूर्ण माध्यम भी है। 14 जनवरी 25 को इस महोत्सव में उमड़ने वाली भीड़ इस बात का प्रतीक होगी कि यह आयोजन ग्रामीणों के दिलों में कितना खास स्थान रखता है।

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