विश्वराज सिंह मेवाड़ और लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ एक ही दादा भगवंत सिंह मेवाड़ के पोते हैं। विश्वराज सिंह मेवाड़ सिटी पैलेस उदयपुर में स्थित धूणी माता के दर्शन करना चाहते हैं जबकि लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ सिटी पैलेज में मंदिर तक जाने वाले रास्ते का दरवाजा खोलने को तैयार नहीं हैं। दूसरे दिन 26 नवंबर को भी विश्वराज सिंह मेवाड़ धूणी माता के दर्शन नहीं कर पाए।
सिटी पैलेस उदयपुर विवाद टाइमलाइन
> 25 नवंबर को सुबह 11 बजे विश्वराज सिंह मेवाड़ का राजतिलक कार्यक्रम शुरू हुआ। दोपहर 3 बजे विश्वराज सिंह मेवाड़ अपने समर्थकों संग उदयपुर सिटी पैलेस में धूणी माता के दर्शन करने के लिए निकले। शाम 5 बजे विश्वराज सिंह मेवाड़ समर्थकों के साथ राजमहल उदयपुर पहुंचे। शाम 5.30 बजे उदयपुर के राजमहल पहुंचने से पहले ही समोर बाग के पास पुलिस से विवाद हो गया। शाम 6 बजे उदयपुर के जगदीश चौक पर पुलिस से बातचीत शुरू हुई। शाम 8 बजे विश्वराज सिंह मेवाड़ व उनके समर्थक फिर सिटी पैलेस उदयपुर की ओर बढ़े। शाम 8.10 बजे सिटी पैलेस का दरवाजा बंद मिला तो विश्वराज सिंह मेवाड़ समर्थकों के साथ वहीं पर धरने पर बैठ गए। रात 10.30 बजे सिटी पैलेस उदयपुर के दरवाजे के पास पथराव शुरू हो गया। रात 11 बजे उदयपुर पुलिस ने बीच में आकर पथराव रोका। रात 11.25 बजे प्रशासन ने सिटी पैलेस उदयपुर के बाहर नोटिस चस्पा किया। थानेदार को रिसीवर नियुक्त किया। रात 1 बजे उदयपुर जिला व पुलिस प्रशासन और पूर्व राजपरिवार के बीच फिर बातचीत हुई। रात 1.16 बजे विश्वराज सिंह मेवाड़ ने समर्थकों को संबोधित किया। रात 2 बजे विश्वराज सिंह मेवाड़ और समर्थक वहां से चले गए।
कहां है धूणी माता के मंदिर व मान्यता? (Dhuni Mata Temple in Udaipur Rajasthan)
उदयपुर की स्थापना के साथ ही महाराणा ने सिटी पैलेस (राजमहल) परिसर में मेवाड़ राजघराने की कुलदेवी धूणी माता का मंदिर भी बनवाया था। मेवाड़ राजघराने में वर्षों से परम्परा चली आ रही है कि कोई भी शुभ कार्य करने के अवसर पर राजपरिवार के सदस्य धूली माता के दर्शन करते हैं। राज परिवार के लोगों में मान्यता है कि कुलदेवी धूणी माता के दर्शन करने से शुभ कार्य में कोई बाधा नहीं आती है। कहा जाता है कि धूणी माता की प्रतिमा की स्थापना महाराणा प्रताप ने करवाई थी। उनके द्वारा चलाई गई परंपरा को आज भी उनका परिवार निभा रहा है।
भारतीय इतिहास में वीरता के लिए प्रसिद्ध अमर नायक थे ‘महाराणा प्रताप’। राजस्थान के कुम्भलगढ़ में महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था। वह सिसोदिया राजवंश के महाराणा उदयसिंह एवं माता रानी जीवत कंवर के पुत्र थे।
महाराणा प्रताप की मां जीवत कंवर पाली के सोनगरा राजपूत अखैराज की पुत्री थीं। प्रताप का बचपन का नाम ‘कीका’ था। मेवाड़ के राणा उदयसिंह द्वितीय की 33 संतानें थीं। उनमें प्रताप सिंह सबसे बड़े थे। स्वाभिमान तथा धार्मिक आचरण उनकी विशेषता थी। प्रताप बचपन से ही बहादुर थे। बड़ा होने पर वे एक महापराक्रमी पुरुष बनेंगे, यह सभी जानते थे। सर्वसाधारण शिक्षा लेने से खेलकूद एवं हथियार बनाने की कला सीखने में उनकी रुचि अधिक थी।
इतिहास में उल्लेख मिलता है कि वर्ष 1576 में हल्दीघाटी के युद्ध के बाद मेवाड़ शासक इतिहास पुरुष महाराणा प्रताप ने विपत्ति के दिनों में सुंधा माता की शरण ली थी। सुंधा माता महाराणा प्रताप की कुलदेवी थीं। सुंधा माता मंदिर जालौर जिला मुख्यालय से करीब 105 किलोमीटर एवं भीनमाल उपखंड से 35 किलोमीटर दूर रानीवाड़ा तहसील के दांतलावास गांव के पास यह ऐतिहासिक एवं प्राचीन तीर्थस्थल है।
अरावली पर्वतमाला के इस पहाड़ का नाम सुंधा होने के कारण इस देवी को सुंधा माता के नाम से भी जाना जाता है। मां की प्रतिमा बिना धड़ के होने कारण इसे अधदेश्वरी भी कहा जाता है।
सुंधा माता मंदिर राजस्थान का वही स्थान है जहां देवी-देवताओं की खंडित मूर्ति को इस स्थान पर रख जाते हैं। सुंधा पर्वत का पौराणिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से भी कम महत्व नहीं है। त्रिपुर राक्षस का वध करने के लिए आदि देव की तपोभूमि यहीं मानी जाती है।
धूणी माता के दर्शन क्यों करना चाहते विश्वराज सिंह मेवाड़?
मेवाड़ राज परिवार के सदस्य विश्वराज सिंह नाथद्वारा से भाजपा विधायक भी हैं। इनके पिता महेंद्र सिंह मेवाड़ का 10 नवंबर को निधन हो गया। उनके निधन के बाद 25 नवंबर को विश्वराज सिंह मेवाड़ राजतिलक कार्य हुआ, जिसके बाद वे उदयपुर सिटी पैलेस पहुंचकर कुलदेवी धूणी देवी के दर्शन करना चाहते थे। विश्वराज सिंह मेवाड़ धूणी माता के मंदिर में आखिरी बार 1984 में गए थे। विश्वराज सिंह मेवाड़ को क्यों नहीं करने दिया धूणी माता के दर्शन सिटी पैलेस उदयपुर में जहां मेवाड़ की कुलदेवी धूणी माता का मंदिर बना हुआ है, वजह जगह अरविंद सिंह मेवाड़ व उनके बेटे लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ के अंडर में हैं। लक्ष्यराज मेवाड़ व विश्वराज सिंह के दादा के समय से ही दोनों परिवार में संपत्ति विवाद चल रहा है। ऐसे में लक्ष्यराज मेवाड़ परिवार ने विश्वराज सिंह मेवाड़ के राजतिलक को अनुचित ठहराया और जब वे धूणी माता के दर्शन करने आए तो सिटी पैलेस का दरवाजा बंद कर दिया, जिससे विवाद बढ़ गया। विश्वराज सिंह मेवाड़ के समर्थकों ने जमकर पथराव व प्रदश्रन किया। दरअसल, साल 1955 में भगवंत सिंह मेवाड़ महाराणा बने थे। तब उन्होंने अपनी पैतृक संपत्तियों को बेचना या लीज पर देना शुरू किया था। भगवंत सिंह मेवाड़ के दो बेटे अरविंद सिंह मेवाड़ और महेंद्र सिंह मेवाड़। भगवंत सिंह के बड़े बेटे महेंद्र सिंह को पसंद नहीं आई तो वे उनसे नाराज हो गए और पैतृक संपत्तियों को हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत बांटने की मांग की। अपने पिता के खिलाफ केस तक दायर कर दिया था। तब से दोनों परिवारों में संपित्त विवाद चल रहा है।