भीलवाड़ा । धर्म गुरूओं के इतिहास से बताए मार्ग पर चलने की सीख हर समाज देता है और युवा पीढ़ी उसको अपने जीवन में किस तरह उतारती है, साथ ही हजारों लोगों के बीच परिवार के संस्कारों व मान मर्यादा का निर्वहन किस तरह किया जाता है। यह नजारा सिंधुनगर स्थित गुरुद्वारा साहिब में गुरु नानकदेव जी के प्रकाश पर्व के रूप में मनाए गए 555वे जन्मोत्सव के दौरान देखने को मिला, जहां निस्वार्थ भाव से नन्हे सेवादारों द्वारा अटुट लंगर में तन मन से सेवा दी जा रही थी। यहां हर सेवादार बस गुरु प्रसाद की सेवा में लगा हुआ था। लेकिन नन्हे नन्हे सेवादारों की सेवा को देखकर हर कोई हैरान था। अक्सर देखने को मिलता है की कई बार परिजनों द्वारा बच्चों को बताया गया कोई भी काम वह बेमन और बिना रूचि के करते हैं। लेकिन, यहां बिना किसी के बताए व कहे मन और रूचि से जुटे नन्हे सेवादारों की काबिल ए तारीफ करते दिखा। अटुट लंगर के दौरान नन्हे सेवादारों ने पुरी तन्मयता के साथ प्रसादा वाहे गुरु, दाल वाहे गुरु कहते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे और सेवा के लिए कुछ ना कुछ हाथ में थाम रखा था। इसी के साथ जुते चप्पल के स्टेंड पर नन्हे सेवादारों की सेवा तारीफें काबिल रही। आस्था के दरबार में नन्हे सेवादारों की सच्ची सेवा ने हजारों लोगों को बहुत बड़ी सीख दी की धर्म गुरूओं की बताएं रास्ते पर बिना किसी स्वार्थ के ऐसे ही चला जा सकता है। जहां कोई गरीब नहीं, कोई अमीर नहीं, कोई छोटा नहीं, कोई बड़ा नहीं। बस जो इस दरबार में मत्था टेकता है, वह निहाल हो जाता है। मत्था टेकने के पीछे उद्देश्य अपने अंहकार को त्यागना बताया गया है तो अच्छी शिक्षा, पारिवारिक वातावरण और व्यक्तित्व में नम्रता भी बताया जाता है। इसके साथ ही सिक्ख समाज द्वारा अटूट लंगर के दौरान झुठन नहीं छोड़ने की बड़ी मुहीम भी देखने को मिली की प्रसाद के रूप में लिए जाने वाला अन्न का एक एक कण किमती है।