Homeराज्यउत्तर प्रदेशन्यायमूर्ति नलिन कुमार श्रीवास्तव की अदालत के फैसला!

न्यायमूर्ति नलिन कुमार श्रीवास्तव की अदालत के फैसला!

बलिया से ट्रायल कोर्ट का रिकॉर्ड गायब,42 साल बाद कोर्ट ने हत्या के आरोपी को किया बरी

शीतल निर्भीक
प्रयागराज।स्मार्ट हलचल यह फैसला न्यायमूर्ति नलिन कुमार श्रीवास्तव की अदालत ने बलिया के श्रीराम सिंह की आपराधिक अपील पर सुनवाई करते हुए दिया। कोर्ट ने अपीलार्थी श्रीराम सिंह को हत्या और साक्ष्य नष्ट के मामले में सुनाई गई चार वर्ष कैद की सजा रद्द कर दिया। साथ ही मुकदमे की कार्रवाई को समाप्त करते हुए ट्रायल कोर्ट से सुनाई गई सजा से बरी कर दिया।इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 42 साल पुराने हत्या मामले से जुड़े रिकॉर्ड ट्रायल कोर्ट से गायब होने पर आरोपी को बरी करने का फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि अपील में यदि ट्रायल कोर्ट का रिकॉर्ड गायब है तो उस केस में हुए निर्णय और आदेश को लागू रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इस स्थिति में केस बंद कर देना चाहिए यही एकमात्र विकल्प है।

यह फैसला न्यायमूर्ति नलिन कुमार श्रीवास्तव की अदालत ने बलिया के श्रीराम सिंह की आपराधिक अपील पर सुनवाई करते हुए दिया। कोर्ट ने अपीलार्थी श्रीराम सिंह को हत्या और साक्ष्य नष्ट के मामले में सुनाई गई चार वर्ष कैद की सजा रद्द कर दिया। साथ ही मुकदमे की कार्रवाई को समाप्त करते हुए ट्रायल कोर्ट से सुनाई गई सजा से बरी कर दिया।

मामला वर्ष 1982 का है। हाईकोर्ट में अपील की सुनवाई शुरू हुई तो पता चला कि मुकदमे से संबंधित सभी रिकाॅर्ड व दस्तावेज गायब हैं। हाईकोर्ट ने जिला जज बांदा से रिपोर्ट मांगी तो बताया गया कि पुराना मामला होने के कारण मुकदमे से संबंधित रिकाॅर्ड नष्ट किए जा चुके हैं। ऐसे में कोर्ट के समक्ष प्रश्न उठा कि यदि किसी मुकदमे का रिकॉर्ड गायब हो जाए और उसे पुनः तैयार करना या उस मुकदमे की फिर से सुनवाई करना संभव न हो तो अपीलीय न्यायालय के समक्ष क्या वैधानिक स्थिति होगी।

हाईकोर्ट ने इस मामले में पूर्व में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए कई निर्णयों के हवाले से कहा कि यदि ट्रायल कोर्ट का रिकॉर्ड गायब है तो पहला प्रयास होना चाहिए कि उसे फिर से तैयार कराया जाए। यदि यह संभव नहीं है तो मुकदमे की पुनः सुनवाई करने का प्रयास करना चाहिए। मगर महत्वपूर्ण दस्तावेजों के अभाव में यदि पुनः सुनवाई करना भी संभव न हो तो इस स्थिति में ट्रायल कोर्ट के आदेश को लागू रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती है और केस को बंद कर देना चाहिए। हाईकोर्ट ने अपीलार्थी श्रीराम सिंह के खिलाफ मुकदमा समाप्त करते हुए उसे सजा से बरी कर दिया।

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